Writer - Nidhi Mathur
‘‘अनन्या, चल न, घर जा कर फोन पर बात कर लेना,’’ नंदिनी ने अपनी सखी अनन्या का हाथ खींचते हुए कहा.
‘‘अरे, बस एक मिनट. मेरी होने वाली भाभी का फोन है,’’ अनन्या बोली.
तीसरी सहेली वत्सला कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘तू तो अब हमारे साथ शौपिंग करेगी नहीं. दुनिया में सिर्फ तेरे भाई की शादी नहीं हो रही है जो तू घंटों फोन पर अपनी होने वाली भाभी से चिपकी रहती है. आज इतनी मुश्किल से हम तीनों ने अपना शौपिंग का प्रोग्राम बनाया था. तू फिर से फोन पर चिपक गई.’’
नंदिनी बोली, ‘‘तुम दोनों को भूख लगी है या नहीं? मुझे तो जोर की भूख लगी है.’’
शौपिंग करते हुए अनन्या बोली, ‘‘न बाबा मेरी भाभी एम.जी. रोड के एक रैस्टोरैंट में मुझे लंच के लिए बुला रही है, तो आज तुम दोनों मुझे माफ करो. मैं तो अपनी भाभी के साथ ही लंच करने वाली हूं. अपना प्रोग्राम हम लोग फिर किसी दिन बना लेंगे.’’
वत्सला और नंदिनी के कुछ कहने के पहले ही अनन्या ने एक औटो एम.जी. रोड के लिए किया और फिर वह फुर्र हो गई.
‘‘नंदिनी, इस की भाभी को वाकई गर्व होना चाहिए कि उसे अनन्या जैसी ननद मिल रही है,’’ वत्सला बोली, ‘‘अरे तू उस की दीदी को क्यों भूल गई? वान्या दीदी भी तो अपनी भाभी को उतना ही प्यार करती है.’’
‘‘हां भई,’’ नंदिनी ने कहा, ‘‘फैमिली हो तो इस अनन्या के जैसी, इतना प्यार करते हैं सभी घर में एकदूसरे को. वह तो भैया ने थोड़ी सी शादी में लापरवाही कर दी.’’