Writer- Naresh Kaushik
नवंबर का महीना. हलकी ठंड और ऊपर से झामाझम बारिश. नवंबर के महीने में उस ने अपनी याद में कभी ऐसी बारिश नहीं देखी थी. खिड़की से बाहर दूर अक्षरधाम मंदिर रोशनी में नहाया हुआ शांत खड़ा था. रात के 11 बजने वाले थे और यह शायद आखिरी मैट्रो अक्षरधाम स्टेशन से अभीअभी गुजरी थी.
‘‘अंकल... अंकल... प्लीज आज आप यहीं रुक जाओ मेरे पास,’’ रूही की आवाज सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ.
बर्थडे पार्टी खत्म हो चुकी थी. पड़ोस के बच्चे सब खापी कर, मस्ती कर अपनेअपने घर चले गए थे. अब कमरे में केवल वे 3 ही लोग थे. समीरा, 6 साल की बेटी रूही और प्रशांत.
‘‘मम्मा? आप अंकल को रुकने के लिए बोलो,’’ रूही ने प्रशांत का लाया गिफ्ट पैकेट खोलते हुए कहा.
बार्बी डौल देख कर वह फिर खुशी से चिल्लाई,’’ अंकल यू आर सो लवली. थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू...’’ कहते हुए रूही प्रशांत के गले से लिपट गई, ‘‘अब तो मैं आप को बिलकुल नहीं जाने दूंगी,’’ रूही ने फिर से कहा और उछल कर सोफे पर बैठे प्रशांत की गोदी में बैठ गई.
रूही ही क्यों, आज तो समीरा का भी मन था कि प्रशांत यहीं रुक जाए. उस के पास उस के करीब. बेहद करीब, समीरा की सोचने भर से धड़कनें बढ़ने लगीं.
प्रशांत ने नजरें उठा कर समीरा की ओर देखा, ‘‘रूही बेटा, अंकल तो रुकने को तैयार हैं लेकिन मम्मा से तो परमिशन लेनी ही पड़ेगी न,’’ उस की नजरों में एक शरारत थी.
प्रशांत की नजरों से समीरा की नजरें टकराईं. वो समझ गई थी. एक बारिश बाहर हो रही थी और एक तूफान दोनों के भीतर घुमड़ रहा था. सारे बांधों को तोड़ने को बेताब. उसे एक डर सा लगा और उस ने न जाने क्या सोच कर रूही को मना कर दिया