राइटर- वीणा राज

Hindi Kahaniyan 2025 : नदी के किनारे खड़ी सुमन तरहतरह की थौट्स से घिरी हुई थी.  वह सुबह जैसे ही सो कर उठी उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वह होटल के कमरे से बाहर निकल आई और टहलते हुए गंगा के किनारे आ खड़ी हुई.

सूर्य की किरणें मिल कर पानी में इंद्रधनुषी रंग पैदा कर रही थीं जो आंखों को सुकून दे रहा था. लेकिन क्या करे मन का जिसे कहीं सुकून नहीं था.

अपने अंदर कीबेचैनी को दूर करने के लिए सुमन 2 दिन पहले बनारस आई थी पर यहां भी उसे शांति नहीं मिली. 2 दिन तो वह होटल के कमरे में बंद रही, पर आज हिम्मत कर गंगा के पास आ गई थी. उस ने सुन रखा था कि गंगा की चंचल लहरें अस्थिर मन को शांत कर देती हैं. पर यहां आ कर भी उसे चैन नहीं मिला और वह अतीती में खो गई…

4 साल पहले वह बनारस आई थी और गंगा के किनारे बैठ अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी तभी किसी ने आ कर पूछा, ‘‘मैम, अगर आप को एतराज न हो तो मैं यहां बैठ सकता हूं?’’

उस ने नजरें टेढ़ी कर उसे देखा. बेहतरीन पर्सनैलिटी का सुदर्शन युवक. वह बोली, ‘‘जी… जगह तो बहुत है यहां. आप कहीं और जा कर भी बैठ सकते हैं.’’

‘‘जी पर मैं 3-4 दिनों से रोज शाम को आप को यहां बैठ लिखते हुए देख रहा हूं. शायद लिखने का शौक है आप को,’’ कहतेकहते वह उस की बगल में आ कर बैठ गया.

‘‘जी…’’ न चाहते हुए भी उस के सामने वह खुलने लगी, ‘‘यह गंगा का तट, घाट की सीढि़यां और सब से बढ़ कर मणिकर्णिका घाट ने हमेशा से आकर्षित किया है मुझे. इसलिए जब भी मैं फुरसत में होती हूं या अकेलापन खलने लगता है, मैं बनारस आ जाती हूं. ऐसा लगता है जैसे आवाज दे कर बुला रहा हो यह मुझे,’’ सुमन ने मुसकराते हुए कहा.

‘ओह, तब से मैं अपने बारे में ही बताए जा रही हूं,’ मन में सोच उस ने अपने दांतों से होंठ को दबा लिया, ‘‘और आप कहां से आए हैं?’’

‘‘मैं तो यहीं का रहने वाला हूं. जब कभी घरपरिवार, काम आदि से मन उचाट हो जाता है तो गंगा की गोद में आ जाता हूं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा पर उस की मुसकराहट में भी एक उदासी सी छिपी हुई थी.

अंधेरा घिर आया था. सड़कों और घाट के किनारे स्ट्रीट लाइट जगमगाने लगी थी. उस ने अपनी डायरी और कलम को बैग में रखा और चलने को उद्धत हुई ही थी कि उस ने फिर से कहा, ‘‘मैं अधर और आप?’’

एक अनजान को अपना नाम बताते हुए उसे झिझक महसूस हुई, फिर कहा,

‘‘मैं सुमन.’’

‘‘कब तक रुकेंगी आप यहां?’’ फ्रैंक होते हुए उस ने पूछा. फिर थोड़ी देर रुक कर बोला, ‘‘अगर आप इजाजत दें तो जब तक आप यहां ठहरेंगी मैं आप से मिलने आ सकता हूं?’’

‘‘जी… 2-4 दिन और…’’

‘‘फिर तो ठीक है. मेरा घर पास में ही है. बिना मुश्किल मैं आप से मिल सकता हूं… वह क्या है न कि साहित्य में मु?ो भी रुचि है पर पारिवारिक दबाव के कारण लिखनापढ़ना हो नहीं पाता,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

फिर तो जब तक वह बनारस में रही वह रोज उस से मिलने आता रहा. कभी कचौडि़यां ले कर तो कभी लस्सी ले कर. कभीकभी वहीं चाय बेचने वाले से चाय ले कर दोनों पी लेते.

इन 2-4 दिनों में ही दोनों के बीच साहित्य को ले कर कितनी ही चर्चाएं हुईं. महाश्वेता देवी, जयशंकर प्रसाद से ले कर अमृता प्रीतम, शिवानी, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव. नए लेखकों के बारे में भी उन्होंने ढेर सारी बातें कीं. उन के लिखने का तरीका. विषय सबकुछ.

बातोंबातों में पता चला कि घर में पत्नी

और बेटे के अलावा उस के पिताजी भी रहते हैं. पत्नी अकसर बीमार रहती है, जिस कारण वह ज्यादा बातचीत नहीं करती और वैसी बातें तो बिलकुल नहीं जिन से उसे थोड़ा भी तनाव हो.

सुमन ने भी अपने बारे में बताया, ‘‘उस के पति के देहांत को काफी वर्ष गुजर गए. 2 बच्चे हैं जो होस्टल में रहते हैं. अकेलेपन की साथी ये किताबें और लेखनी ही है. किसी से ज्यादा दोस्ती भी नहीं. परिवार में लोग हैं पर वे भी अपनी लाइफ में व्यस्त हैं. सब से बड़ी बात कि मैं बेचारी नहीं बनना चाहती.’’

‘‘ओह. तब तो खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे साहित्य के दीवाने,’’ अधर ने ठहाका लगाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. आज रात

की मेरी ट्रेन है,’’ कह सुमन चलने को हुई कि आधार ने झट कहा, ‘‘कृपया आप अपना नंबर

दे दें और मेरा यह कार्ड रख लीजिए. आप मुझे कभी भी याद कर सकती हैं,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जरूर…’’

तब से ले कर अब तक 4 साल हो गए थे. सुमन जब भी बनारस आती, अधर उस से जरूर मिलता. सुमन उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जहां उसे किसी का स्पर्श नहीं बल्कि उस के मनोभावों को समझने वाला चाहिए था. वह चाहती थी इमरोज सा प्रेम. जो अमृता के लिए था. वह ‘गुनाहों के देवता’ के चंदर सा प्रेम चाहती थी.

एक सुबह वह सो कर उठी ही थी कि मैसेज आया, ‘‘क्या तुम मुझसे प्रेम करती हो?’’

पढ़ कर वह सन्न रह गई. कब वह आप से तुम पर उतर आया था. फिर हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘शायद क्योंकि प्रेम के कई रूप होते हैं.’’

‘‘कैसे, कभी जता भी दिया करो.’’

‘‘जब भी बनारस से लौटती हूं, तब साथ में गंगाजल भर कर ले आती हूं जो मु?ो तुम्हारी याद दिलाता है और रात में जल्दी सोने की कोशिश करती हूं ताकि सपने में तुम्हारे लिए एक नई कहानी रच सकूं.’’

‘‘ओहो.’’

‘‘यह क्या बात हुई.’’

‘‘प्रेम ऐसे होता है क्या?’’

‘‘तो?’’

‘‘जैसे मैं करता हूं कभीकभी गंगा तट पर चला जाता हूं ताकि तुम्हारी यादों में विचर सकूं. शाम में जब तुम नहीं होती तब मैं छत पर जा कर चांद को निहारता हूं और सोचता हूं कि तुम भी चांद को निहार रही होगी. इस तरह हम दोनों ही एकसाथ होते हैं.’’

उस के मैसेज पढ़ उस की नादानी पर वह मुसकरा पड़ी. वह जानती थी कि प्रेम करना हर किसी के वश की बात नहीं. फिर भी गर्वित थी अपनेआप पर.

अभी 2 दिन पहले अकेलेपन से ऊब वह बनारस आई थी. अधर को इत्तिला कर दी थी. पर कल शाम के धुंधलके में होटल की बालकनी में बैठ जब वह चाय का कप लिए क्षितिज की ओर देख रही थी. भर रही थी आंखों में धरती और अंबर का मिलन. तभी मोबाइल पर अधर का मैसेज नमूदार हुआ, ‘‘मैं अब नहीं मिल पाऊंगा तुम से. मेरी बीवी और बच्चे मेरा इंतजार कर रहे हैं. भटक गया था मैं शायद. एक स्त्री और लेखिका होने के नाते तुम मेरी मनोस्थिति सम?ा सकती हो.’’

उस के आत्मसम्मान की तरह अंदर कुछ दरका हो जैसे उफ. इतनी घटिया सोच.

मतलब वह मुझे किसी और तरीके से परिभाषित कर रहा था. पावन प्रेम या दोस्ती पर उस की

ऐसी नजर थी. ठगी सी रह गई वह. चाय का कप हाथ से छूट कर चकनाचूर हो गया था. बिलकुल तब से नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. और सुबह होते ही वह दशाश्वमेध घाट की ओर चल पड़ी.

पति की मौत के बाद कितनी मुश्किल से संभाला था उस ने खुद को. अपने आत्मसम्मान को बचाए रख कर. किसी से कोई सहायता या एहसान नहीं लिया उस ने अपना और अपने बच्चों का सम्मान बरकरार रखा हमेशा.

और आज उस की थौट्स उस की जिंदगी में हलचल मचा रही थीं. सोच कर ही उस का दिमाग बोझिल हो गया. काफी देर तक वह गंगा को बहता हुआ देखती रही. मन में हजारों सवालजवाब उठ खड़े हुए गंगा को बहता देख.

तभी उस की नजर गंगा किनारे कचरे के ढेर पर पड़ी. ओह. मैं भी कितनी पागल हूं नदी जब अपने साथ लाए कचरे को किनारे पर झटक आगे निर्मल पावन हो बहती रहती है तो मैं ऐसे कचरे को अपने अंदर क्यों जगह दूं? अधररूपी कचरे को नहीं छोड़ मैं अपनी जिंदगी के बहाव को क्यों न धार दूं. सोचतेसोचते उस का मन हलका हो चला था.

वह प्रफुल्लित मन से उठी और होटल की ओर चल दी और नदी बहती रही.

कभीकभी अकेले ही पूरे करने होते हैं जिंदगी के कुछ सफर.

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