Meri Bitiya : केशवी... यथा नाम तथा रूप... कमर तक लहराते बाल. गेहुआं रंग, तीखे नैननक्श. छरहरी काया और आवाज तो मानो वीणा झंकृत होती हो. मंदिम स्वर कुछ सांचे तो कुदरत तराश कर ही बनाती है.

‘‘मैं आई कम इन सर,’’ धीमा सा, डरा सा स्वर, सहसा कक्षा में गूंजा.

‘‘यस कम इन... लेकिन तुम लेट कैसे हो गई और तुम्हें पहले कभी देखा भी नहीं?’’ सर की आवाज के साथ सारी कक्षा का ध्यान उस मनमोहक चेहरे पर था.

‘‘वह सर मेरा न्यू एडमिशन है और मुझे सही समय का पता नहीं था इसलिए आने में देरी हो गई,’’ केशवी का कंपित स्वर सुन कर बच्चों की दबी हंसी मानो गुंजित हो रही हो.

‘‘बैठ जाओ आगे से समय का ध्यान रखना,’’ सर ने सीट की तरफ इशारा करते हुए कहा और उपस्थिति लेने में मशगूल हो गए.

बच्चों को तो मानो कुतूहल का विषय मिल गया हो. मानो उस का ऐक्स रे ही निकाल रहे हो. उपस्थिति के बाद जब सर ने पढ़ाना शुरू किया तो भला आज कहां किसी को समझ में आने वाला था. एक नया अध्याय जो क्लास में आ गया था. जब तक उस की तहकीकात नहीं हो जाती कहां चैन आने वाला था? किशोर मन बड़ा जिज्ञासु होता. अधूरा ज्ञान अधूरा मन. जिस में संभावनाओं की अनंत डगर... ऐसा लग रहा था आज पीरियड खत्म ही नहीं हो रहा. शायद चपरासी घंटी बजाना भूल गया? जैसे ही घंटी बजे और केशवी का नाम तो पूछ ही लें.

इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और सर ने प्रस्थान किया. इस से पहले कि दूसरे सर का आगमन हो कुछ तहकीकात तो कर ही लेते हैं. कुछ किशोर चंचलाएं फुरती से उठ कर उस के पास पहुंचीं और पता होने के बाद भी उस का नाम पूछने लगीं.

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