Working Mothers : २५ साल की नेहा नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. शादी और प्रैगनैंसी के बाद जब उस की गोद में प्यारा सा बेटा आया तो उसे लगा जैसे जीवन की सारी खुशियां उसे हासिल हो गईं. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद जब वह दोबारा जौब पर लौटी तो वहां सब का यह सवाल था कि अब आप कैसे मैनेज करेंगी? पहले जैसा काम अब कर सकेंगी या नहीं? घर वाले भी नहीं चाहते थे कि वह बच्चे को छोड़ कर जौब पर जाए. इधर बेबी को घर पर छोड़ने की गिल्ट उसे खुद भी महसूस होने लगी थी. चीजों को खुल कर सामने रख पाना मुश्किल लगने लगा था. इस बीच बच्चे की तबीयत खराब हुई तो आखिर उस ने हिम्मत हार दी और घर पर बैठ गई.

कई साल बाद जब बेटा स्कूल और पढ़ाई में बिजी हो गया और अपनी दुनिया में मगन रहने लगा तो नेहा को जीवन में खालीपन का एहसास हुआ. दिनभर उस के पति औफिस में रहते थे, बेटा अपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहता और सास ऊपर जा चुकी थीं. आज नेहा के पास न अपनी पहचान थी और न ही अपने कमाए रुपए. घर में किसी के पास उस के लिए समय भी नहीं था. नेहा को अब जौब छोड़ने के अपने उस फैसले पर बहुत पछतावा होने लगा था. वह सोचने लगी थी कि काश उस समय उस ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती और नौकरी न छोड़ती तो कहां की कहां पहुंच चुकी होती.

अकसर महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है. दरअसल, एक वर्किंग वूमन की लाइफ में शादी और बच्चे दोनों अहम भूमिका निभाते हैं. शादी के बाद घर की जिम्मेदारी संभालना और परिवार आगे बढ़ाने के लिए बच्चे को जन्म देना स्त्री का कर्तव्य माना जाता है. बच्चे के जन्म के बाद उसे संभालना और परवरिश करना महिला की प्राथमिकता बन जाती है. ऐसे में जब वह कैरियर और परिवार में से किसी एक चुनने को मजबूर हो जाती है तो अकसर वह परिवार और बच्चे को ही चुनती है. घर वाले भी उसे ऐसा करने को मजबूर करते हैं.

मां बनने के बाद कैरियर

आज के समय में महिलाएं या लड़कियां पुरुषों से किसी बात में कम नहीं हैं. पहले के समय में महिलाएं कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में काम ही किया करती थीं जैसेकि टीचर की नौकरी या फिर बैंक इत्यादि में काम करना. लेकिन अब महिलाएं हर फील्ड में आगे आ रही हैं और अपनी काबिलीयत भी दिखा रही हैं.

उन के काम करने की क्षमता यकीनन पुरुषों से कहीं अधिक है. वह न सिर्फ औफिस या बिजनैस बखूबी संभालती हैं वहीं घर की उन जिम्मेदारियों से भी मुंह नहीं मोड़तीं जो औरत होने की वजह से उन पर लादी जाती हैं. मसलन, बच्चों को संभालना, उन्हें पढ़ाना, बीमार पड़ने पर दिनरात सेवा करना, खाना बनाना, घर के बुजुर्गों की देखभाल, घर साफसुथरा रखना और ऐसी ही और तमाम जिम्मेदारियां. मगर यह सब एकसाथ निभाना इतना आसान नहीं.

एक चुनौती

किसी भी कामकाजी महिला के लिए अपने काम या कैरियर में सब से बड़ी समस्या होती है मां बनने के बाद औफिस में उसी जोश और एकाग्रता के साथ काम करना. मां बनना कोई सरल काम नहीं होता है और इस के लिए महिला को केवल शुरू के 9 महीने ही नहीं अपितु शिशु होने के लगभग 1 से 2 साल तक कड़ी मेहनत व बदलते जीवन से गुजरना होता है. वैसे भी बच्चों के बाद उस की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

घर के बुजुर्ग भी उसे काम के बजाय घर और बच्चों को संभालने में अधिक ध्यान देने की बात करते रहते हैं खासकर जो महिलाएं निजी नौकरी करती हैं या अपने खुद का व्यवसाय चलाती हैं उन के लिए मां बनने के बाद अपने कैरियर को मैनेज करना एक चुनौती बन कर सामने आता है. महिला के लिए इन बदलावों को अपनाना और उन के साथ ही अपने कैरियर पर ध्यान देना बहुत मुश्किल हो जाता है.

अशोका यूनिवर्सिटी के जेनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप के सर्वे की मानें तो 27त्न महिलाएं ही बच्चे को जन्म देने के बाद अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं. वहीं देश में

50त्न वर्किंग महिलाओं को 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद उन महिलाओं के लिए सिचुएशन ज्यादा टफ हो जाती है जो बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग करा रही होती हैं.

मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देना आसान है मगर यह एक गलत फैसला साबित होता है क्योंकि स्त्री का वजूद केवल घरगृहस्थी में सिमट कर रह जाता है. वह अपनी काबिलीयत का उपयोग नहीं करती तो इस बात की गिल्ट मन में रहने लगती है. घर में भी उसे वह सम्मान नहीं मिलता जो एक कमाऊ स्त्री को मिलता है.

बच्चे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उन की अपनी दुनिया बन जाती है और तब मांएं अपने उस फैसले पर पछताती हैं जो उन्होंने बच्चों के जन्म के बाद कैरियर छोड़ कर घर में रहने को अहमियत दी थी. यही नहीं बच्चे की बेहतर परवरिश और घर की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए वर्किंग वूमन को कभी अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. आप की जौब आप के सम्मान और आत्मविश्वास के लिए जरूरी है.

कुछ बातों का खयाल रख कर आप परिवार और काम में बैलेंस बना सकती हैं:

खाली समय का करें सदुपयोग

अब जब आप मां बनने वाली हैं तो अवश्य ही आप ने औफिस से कई महीनों की छुट्टियां ली होंगी या वहां से त्यागपत्र दे दिया होगा. कई महिलाएं कुछ महीनो की छुट्टी पर चली जाती हैं तो किसीकिसी को रिजाइन करना पड़ता है. फिर वे लगभग 1 से 2 वर्ष का गैप ले कर फिर से अपने कैरियर पर लौटती हैं.

ऐसे में यदि आप भी अपनी गर्भावस्था और मां बनने के बाद कुछ समय के लिए घर पर हैं और अपनी और बच्चे की देखभाल करने में लगी हैं तो क्यों न उस समय का सदुपयोग किया जाए. इस के लिए आप कुछ न कुछ क्रिएटिव करती रहें. आप को जो कुछ आता है उस में कुछ नया और बेहतर करने का प्रयास करें.

जब भी समय मिले तो अपनी स्किल्स पर काम करें. अब जो लोग निरंतर नौकरी पर जा रहे हैं उन्हें तो कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है. ऐसे में आप घर बैठे ही अपनी स्किल को अपडेट करेंगी तो यह आप के लिए बहुत ही सही रहेगा. यह आप को अपने काम से भी जोड़े रखेगा और निरंतर आप को कुछ न कुछ नया सिखाता भी रहेगा.

औफिस के पास हो डे केयर

औफिस जौइन करने के बाद बच्चे की चिंता बनी रहती है. जो महिलाएं फैमिली के साथ रहती हैं उन्हें अपनी गैरमौजूदगी में बच्चे को घर पर रखने की चिंता नहीं होती है. मगर अगर घर पर बच्चे के साथ रहने वाला कोई नहीं है तो औफिस के नजदीक ही अच्छा सा डे केयर चुन लें ताकि बच्चे को अच्छी नर्सिंग मिल सके. लंच ब्रेक में आप बच्चे को फीड कराने या इमरजैंसी में आसानी से वहां जा सकती हैं.

औफिस में कंफर्टेबल फील करें

मां बनने के बाद कई शारीरिक बदलावों का होना नौर्मल है. ऐसे में औफिस में कंफर्टेबल फील करें. पहनावा भी कंफर्टेबल ही रखें. अगर आप बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तो डाइट में शामिल सभी फूड आइटम्स को भी बैग में रखें ताकि आप को अंदर से कमजोरी महसूस न हो. अपनी सेहत का पूरा खयाल रखें.

विकल्प के रूप में वर्क फ्रौम होम

आज के समय में वर्क फ्रौम होम का कल्चर काफी पसंद किया जाने लगा है. कोरोना के बाद से ही बहुत से बदलाव इस दुनिया में देखने को मिले हैं. इन्हीं में एक बहुत बड़ा बदलाव है वर्क फ्रौम होम का. ऐसा बहुत सा काम है जो घर बैठे ही आसानी से किया जा सकता है.

अगर मां बनने के बाद कुछ साल आप प्रौपर औफिस जा कर 9 से 5 की जौब नहीं कर पा रही हैं तो इस के लिए बौस से वर्क फ्रौम होम की सिफारिश करें. यही नहीं आप बड़ीबड़ी कंपनियों की वैबसाइट पर जा कर विजिट करें जैसेकि ग्लो ऐंड लवली, टाटा, एचसीएल, विप्रो इत्यादि. वहां पर समयसमय पर कई तरह की वर्क फ्रौम होम नौकरियों के बारे में अवसर आते रहते हैं जिन्हें आप ट्राई कर सकती हैं.

पति की सहायता लें

आप मां बनी हैं तो आप के पति भी तो पिता बने हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि कैरियर से जुड़े सारे सैक्रिफाइस आप ही करें. आप अपने पति की भी इस में सहायता ले सकती हैं. अब यह सहायता किसी भी तरह की हो सकती है. उदाहरण के तौर पर आप अपने पति से कभीकभी घर के काम निबटाने का आग्रह कर सकती हैं.

कभी बच्चा बीमार है और आप के लिए औफिस जाना जरूरी है तो आप पति से छुट्टी ले कर बच्चे को संभाल लेने को कहें. कभी पति काम से छुट्टी लें तो कभी आप. इस तरह से कई चीजों में आप अपने पति का सहयोग ले सकती हैं. इस से सब आसानी से मैनेज होगा और पति के सहयोग से आप बैलेंस बना सकेंगी.

क्या कहती हैं यंग वर्किंग मदर्स

यंग वर्किंग मदर्स किस तरह परिवार और काम एकसाथ मैनेज कर सकती हैं इस पर हम ने कुछ खास वर्किंग मदर्स से बात की. उन्होंने अपने अनुभव और बातें हम से शेयर कीं:

औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता

-गजल अलघ, मामाअर्थ की को फाउंडर

होनासा कंज्यूमर कंपनी की को फाउंडर गजल अलघ एक ऐसी यंग मदर और सक्सैसफुल बिजनैस वूमन हैं जिन्होंने अपने बेटे को बीमारी से बचातेबचाते एक बड़ी कंपनी खड़ी कर दी. दरअसल, उन के बच्चे की स्किन बहुत सैंसिटिव थी और टौक्सिन वाले प्रोडक्ट इस्तेमाल करते ही उसे समस्या हो जाती थी. ऐसे में गजल अलघ को जब मार्केट में अपने बेटे के लिए टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट नहीं मिले तो उन्हें टौक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स बनाने का आइडिया आया.

इस के बाद उन्होंने अपने पति वरुण के साथ मिल कर 2016 में होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया. इस तरह उन्होंने प्रौब्लम का न सिर्फ सौल्यूशन निकाला बल्कि इस से एक बड़ा बिजनैस भी खड़ा कर दिया. ब्यूटी प्रोडक्ट्स की मार्केट में मामाअर्थ आज जानामाना नाम है.

मामाअर्थ की मूल कंपनी होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड ही है. किस तरह घर और बिजनैस का काम एकसाथ मैनेज करती हैं? इस सवाल के जवाब में गजल अलघ कहती हैं, ‘‘औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता लेकिन अच्छा सपोर्ट सिस्टम हो तो काम थोड़ा आसान हो जाता है. मेरे 2 बच्चे हैं, एक 10 साल का और दूसरा 3 साल का. मेरे पति वरुण और मुझे अपने परिवार का पूरा साथ मिलता है जो बच्चों का खयाल रखने में मदद करता है. इस से हम काम पर भी ध्यान दे पाते हैं और बच्चों की देखभाल भी अच्छे से हो जाती है.

‘‘हम घर पर कोशिश करते हैं कि बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. हर महीने उन के साथ कुछ खास करते हैं जैसे उन के फैवरिट गेम्स खेलना, बिना फोन और इंटरनैट के पूरा दिन साथ बिताना या फिर पिकनिक पर जाना. ये छोटेछोटे पल हमें खुशी देते हैं और यह भी याद दिलाते हैं कि असल में सब से जरूरी क्या है.

‘‘औफिस में मैं वर्किंग मांओं की दिक्कतें समझती हूं. इसलिए हम ने फीडिंगरूम्स और जरूरी सैनिटरी प्रोडक्ट्स की सुविधा दी है. मेरी बाकी मांओं से यही कहना है कि अपने सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा करें. जो सब से जरूरी है उसे पहले रखें और मदद मांगने से पीछे न हटें. घर और औफिस दोनों संभालना मुश्किल है लेकिन सही सपोर्ट और प्लानिंग से यह मुमकिन है.’’

मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है

-गार्गी मलिक, पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल

गार्गी मलिक एड फैक्टर्स पीआर में पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल के रूप में काम करती हैं. घर के साथ औफिस का काम मैनेज करना उन के लिए आसान नहीं था.

गार्गी बताती हैं कि यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब आप बिना परिवार और रिश्तेदारों के एक बिलकुल नए शहर में सबकुछ अकेले संभाल रही होती हैं.

अपने बच्चे के जन्म के साथ उन्होंने खुद से एक वादा किया कि मैं एक मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए कभी भी अपना कैरियर नहीं छोड़ूंगी.

गार्गी कहती हैं, ‘‘ऐसे दिन होते हैं जब घर, एक छोटे बच्चे और काम की प्रतिबद्धताओं को संभालना बहुत मुश्किल लगता है खासकर हमारा पेशा 9 से 5 की टाइमिंग नहीं मानता. लेकिन किसी तरह मैं ने अपने अंदर एक ऐसी ताकत खोज ली है, एक ऐसी प्रेरणा जो मुझे आगे बढ़ने की शक्ति देती है. इतनी छोटी उम्र में भी मेरा बच्चा महसूस कर लेता है कि कब मुझे उस के सहयोग की जरूरत है और मुझे वह ताकत देता है जो मुझे जरूरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. दोनों में संतुलन बनाना आसान नहीं है लेकिन हम माताओं का प्यार और दृढ़ता सच में पहाड़ों को हिला सकती है. मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है जो मुझे हर दिन याद दिलाता है कि मैं यह सब क्यों कर रही हूं.’’

गार्गी को अपने परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता क्योंकि वे उन से दूर रहती हैं. हालांकि उन के सहकर्मी सब से बड़ी ताकत हैं और दूसरे परिवार जैसे बन गए हैं. वे हमेशा हर परिस्थिति में जब भी जरूरत होती है अपना सहयोग देने के लिए तैयार रहते हैं. वे कहती हैं कि एक वर्किंग मदर को परफैक्शन की सोच को छोड़ देना ठीक है. आप के बच्चे को एक परफैक्ट मां की नहीं एक खुश और प्यार करने वाली मां की जरूरत है. मातृत्व और कैरियर के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी खुद की कीमत कभी न भूलें. औरत के अंदर पहाड़ों को हिलाने की ताकत है जब वे अपना मन बना लें.

अपनी समस्याओं के बारे में बात करते हुए गार्गी कहती हैं, ‘‘सब से बड़ी चुनौती जो मैं एक मां के रूप में महसूस करती हूं वह यह है कि मैं अपने बच्चे की छोटीछोटी जरूरतों के लिए हमेशा उपलब्ध नहीं हो पाती. हर रोज जब मैं काम पर जाती हूं तो एक अपराधबोध महसूस करती हूं जैसे मैं कोई बड़ी गलती कर रही हूं. ऐसे क्षण आते हैं जब मेरी नौकरी और मेरा बच्चा दोनों मेरा ध्यान चाहते हैं और अकसर मु?ो काम को चुनना पड़ता है. कई महीनों से मैं ठीक से सो नहीं पाई हूं क्योंकि मेरा बच्चा रात को खेलना चाहता है. कभीकभी मैं थकी हुई घर आती हूं, बस आराम करना चाहती हूं लेकिन मेरा बच्चा खेलना चाहता है और मैं थकी होने के बावजूद खुश रहने की कोशिश करती हूं. ये क्षण मेरे सामने आई सब से कठिन चुनौतियों में से कुछ हैं.

‘‘दूसरी मांएं भी ऐसी समस्याओं से जूझती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप शांत, धैर्यवान और सकारात्मक रहें. हमेशा खुद को याद दिलाएं कि आप जो भी चुनाव कर रही हैं चाहे वह काम हो या आप का बच्चा वह उस पल में आप दोनों के लिए सही है. जब जरूरी हो काम को प्राथमिकता देना या जब जरूरत हो बच्चे पर ध्यान केंद्रित करना कोई अपराध नहीं है. इन चुनौतियों से पार पाने की कुंजी मानसिक खुशी है. एक खुश और मानसिक रूप से मजबूत मां किसी भी परिस्थिति से निबट सकती है और अपने बच्चे के लिए खुद का सब से अच्छा रूप पेश कर सकती है.’’

काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हूं

-आराधना डालमिया, फाउंडर, आर्टेमिस्ट

आर्ट कंसल्टैंट आराधना डालमिया जो द आर्टेमिस्ट नाम की कंपनी की फाउंडर हैं बताती हैं कि उन के 2 बच्चे हैं 1 बेटा और 1 बेटी. बेटा 4 साल का है जबकि बेटी की उम्र 2 साल है. वह अपने काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हैं. सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के औफिस के लिए निकल जाती हैं. जब बच्चों के स्कूल में कोई प्रोग्राम होता है तो उस में जरूर शामिल होती हैं. बच्चों के स्कूल आदि से जुड़ी हर गतिविधि एवं कार्यक्रम का पूरा ध्यान रखती हैं. शाम को औफिस से लौटने के बाद बच्चों को खाना खिलाना और फिर उन के साथ वक्त बिताना उन्हें पसंद है. उन्हें अपने परिवार से पूरा सहयोग मिलता है.

जब बच्चे बीमार पड़ते हैं तो हर मां की तरह उन को भी असुविधा और टैंशन होती है खासतौर से उस समय परेशानी और भी बढ़ जाती है जब घर पर बच्चे बीमार हों और औफिस में भी कोई बड़ा प्रोजैक्ट या जरूरी काम चल रहा हो जिसे आप को करना ही है. ऐसी स्थिति में परिवार ही उन का सहारा बनता है.

मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत हो

-शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी

की फाउंडर

शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी की फाउंडर हैं. यह एक रिसर्च और इनोवेशन स्टूडियो है. शिप्रा संयुक्त परिवार में रहती हैं जिस में सासससुर, पति और

2 बेटियां शामिल हैं. वे कहती हैं कि घर और औफिस का काम मैनेज करना चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन प्राथमिकताओं और समय प्रबंधन पर ध्यान दे कर इसे संतुलित करना सीखा है. परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग इसे आसान बनाता है.

गिल्ट फीलिंग: शिप्रा कहती हैं कि मां होने के नाते कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रही. ऐसे में मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत और ब्यूटीफुल हो.

शिप्रा के अनुसार, वर्किंग मदर्स को चाहिए कि अपने परिवार और बच्चों को अपनी जर्नी का हिस्सा बनाएं. एक सहायक और खुले संवाद वाले माहौल में काम और घर दोनों संतुलित करना आसान हो जाता है. कई बार थकावट या तनाव महसूस होता है. इस से निबटने के लिए रैग्युलर ऐक्सरसाइज और एंटरटेनमैंट ब्रैक्स लें. इन से न केवल ऐनर्जी मिलती है बल्कि मूड भी रिफ्रैश होता है. वर्किंग मदर्स को परिवार के साथ काम बांटने और सहयोग मांगने में झिझकना नहीं चाहिए.

परफैक्शन का प्रैशर नहीं लेना चाहिए. हर दिन परफैक्ट नहीं होगा लेकिन हर दिन महत्त्वपूर्ण होता है. बच्चों को जिम्मेदारी सिखा कर उन्हें स्वतंत्र बनने में मदद करनी चाहिए. खुद के लिए समय निकालना नहीं भूलना चाहिए. एक खुश और आत्मनिर्भर मां ही बच्चों और परिवार के लिए सब से अच्छा उदाहरण होती है.

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