Infertility : बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डावांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत पहले तो एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.

कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में तो कोई कमी नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणु की संख्या तो कम नहीं हो गई. उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है. चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न पत्नी को सुख दे पाता है. जिस की वजह से दोनों एकदूसरे से खींचेखींचे रहते हैं.

खुद को दोषी

ऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी समझते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा? या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन करवाया होता है, यह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को. ऐसे में गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाता है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती. तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या पत्नी से विमुख होते किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.

कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आए दिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है. यों अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का एक कारण बन सकता है.

समय और पैसे की बरबादी

कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख कोशिश के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल अनपढ़ वैद, हकीम या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलतसलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं और ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.

लेकिन ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर, सारे टैस्ट करवा कर उचित समाधान का रास्ता अपनाते हैं.

बांझपन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर ओरिएंटेड लड़केलड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं, ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं. हर काम उम्र रहते हो जाने चाहिए यह नहीं सोचते.

ऊपर से मौजूदा समय में बदलती जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है. माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बांझपन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.

बांझपन मैडिकल कंडिशन यानी एक बीमारी है. जहां एक दंपति कई वर्षों से अधिक समय तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10% से 15% जोड़े प्रभावित होते हैं. साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हार्मोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब या सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.

डाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 को मानते हैं. इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.

सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए नहीं तो प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.

जरूरी हैल्दी सैक्स लाइफ

पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदान ए जंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे, जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी अधिक बढ़ जाएगी.

ऐसे में जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपत्ति के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसे कि आईयूआई ट्रीटमैंट या आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसी, यह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टेप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और व फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहे है. पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.

सफलता की दर

इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़े जाते हैं. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15% होती है. कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.

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