Health Tips : भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक संस्कार या कहें हमारे कल्चर का हिस्सा बन चुका है. बहुत से लोगों को तो जब तक सुबह बिस्तर पर हाथ में चाय की प्याली न थमाई जाए उन की सुबह नहीं होती. फिर काम की थकन उतारनी हो, शाम की हलकी भूख या मौसम सुहाना हो, तो सब को बस चाय की याद आती है. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि चाय, चाय नहीं एक फीलिंग है जिस के बिना उन का गुजारा नहीं.
मजेदार बात तो यह भी है कि यह पेय हमारे पुरखों की देन नहीं है, बल्कि हमें अंगरेजों की दी गई एक लत है, जिसे हम ने खुद ही अमृत बना लिया है. आज समाज में चाय को ले कर हालात यस है कि अगर किसी मेहमान को चाय न दी जाए, तो इसे अपमान समझा जाता है. लेकिन क्या यह हमारी असली संस्कृति थी? क्या हमारे पूर्वज भी दिन में 5-6 कप चाय पीते थे? और अगर यह हमारे स्वास्थ्य के लिए इतनी ही अच्छी है तो डाक्टर कुछ भी बीमारी होने पर चाय पर लगाम क्यों लगाने की सलाह देते हैं?
चाय का आगमन और हमारी बदलती संस्कृति
चाय ने कैसे हमारे रसोई पर कब्जा किया उस से पहले बात करते हैं कि चाय का बीज हमारे अंदर आखिर आया कैसे? अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पाएंगे कि चाय भारतीय संस्कृति का मूल हिस्सा नहीं थी. भारत में चाय की लोकप्रियता ब्रिटिश शासन के दौरान बढ़ी. अंगरेजों को अपने चाय के व्यापार को बढ़ावा देना था, इसलिए उन्होंने भारतीयों को इसे पीने के लिए प्रेरित किया.
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