Famous Hindi Stories : एकतरफ दाल का तड़का तैयार करते और दूसरी तरफ भिंडी की सब्जी चलाते हुए मेरा ध्यान बारबार घड़ी की तरफ जा रहा था. मन ही मन सोच रही थी कि जल्दी से रोटियां सेंक लेती हूं. याद है मुझे जतिन के स्कूल से लौटने से पहले मैं रोटियां सेंक कर रख लेती थी फिर हम मांबेटे साथ में लंच करते. जिस दिन घर में भिंडी बनती वह खुशी से नाचता फिरता.

एक दिन तो बालकनी में खड़ा हो चिल्लाचिल्ला कर अपने दोस्तों को बताने लगा, ‘‘आज मेरी मां ने भिंडी बनाई है.’’

आतेजाते लोग भी उस की बात पर हंस रहे थे और मेरा बच्चा बिना किसी की परवाह किए खुश था कि घर में भिंडी बनी है. यह हाल तब था जब मैं हफ्ते में 3 बार भिंडी बनाती थी. खुश होने के लिए बड़ी वजह की जरूरत नहीं होती, यह बात मैं ने जतिन से सीखी.

अब साल में एक ही बार आ पाता है और वह भी हफ्तेभर के लिए. इतने समय में न आंखें भरती हैं उसे देख कर और न ही कलेजा. कितना कहता है कि मेरे साथ चलो. मैं तो चली भी जाऊं लेकिन नरेंद्र तैयार नहीं होते. कहते हैं कि अपने घर में जो सुकून है वह और कहीं नहीं, कोई पूछे इन से बेटे का घर अपना घर नहीं होता क्या. किसी तरह के बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते.

खाना बन गया, खुशबू अच्छी आ रही थी. शिप्रा को मेरी बनाई दाल बहुत पसंद है इसलिए जब बच्चे आते हैं तो मैं दोनों की पसंद का खयाल रखते हुए खाना बनाती हूं. उम्र के साथ शरीर साथ नहीं देता मगर बच्चों के लिए काम करते हुए थकान महसूस ही नहीं होती. सारा काम निबटा डाइनिंगटेबल पर जा बैठी और शाम के लिए मटर छीलने लगी. नरेंद्र बाहर बरामदे में उस अखबार को फिर से पढ़ रहे थे जिसे वे सुबह से कम से कम 4 बार पढ़ चुके थे. सच तो यह है कि यह अखबार सिर्फ बहाना है वे बरामदे में बैठ कर बच्चों का इंतजार कर रहे थे. पिता हैं न, खुल कर अपनी भावना जता नहीं सकते.

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