फरवरी के पहले सप्ताह में हैदराबाद में एक नाती का 86 वर्षीय नाना की संपत्ति के Pगड़े में 70 से ज्यादा चाकू के वार कर के हत्या कर देना एक नए ट्रैंड की घटना है जिस में अब बेटोंपोतों के साथसाथ बेटियों और नातियों को भी उलझते देखा जा रहा है. हिंदू विरासत के कानूनों में लड़कियों को बराबर की जगह तो मिल गई है पर अभी भी बेटे अपनी बहनो को बराबर का नहीं मान रहे और यह नए कुरुक्षेत्रों को जन्म दे रहा है.
पिता की संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर हिस्सा मिले यह चाहे कानूनी और नैतिक दृष्टि से सही लगे पर समाज को अभी भी ऐसा है कि यह व्यावहारिक नहीं लग रहा. शादी होने तक बेटियां चाहे बराबर की हैसियत से घरों में रह रही हों, शादी के बाद वे अपना अलग घर बसा लेती हैं और पति के साथ मातापिता के सुखदुख से अलग हो कर रहने लगती हैं.
आज की बेटियां शादी के बाद चाहे पराई न हों पर वे पूरी तरह अपनी भी नहीं रहतीं. उन का घर मातापिता का नहीं पति का हो जाता है. मातापिता की जिंदगी की देखभाल और अगर बिजनैस है तो उसे संभालने की जिम्मेदारी बेटों के सिर आ जाती है. जहां बेटे किसी भी कारण मातापिता से अलग रहते हैं, वहां भी पहली जिम्मेदारी बेटों की ही रहना आज भी नहीं बदला है.
संपत्ति के मामलों में जब विवाद उठते हैं तब तक बेटे अपने मातापिता का अकेले, बिना बहनों के, 10-15 साल ध्यान रख चुके होते हैं और बेटियां अपने बच्चों, पति और पति के घर वालों में बिजी रहती हैं. मातापिता की संपत्ति को ले कर विवाद उठना स्वाभाविक है क्योंकि संपत्ति चाहे छोटी हो, बड़ी हो या बहुत बड़ी, अब बेटियों की रजामंदी के बिना माता या पिता की संपत्ति का ट्रांसफर नहीं हो सकता.
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