अकसर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी चीजें या पोस्ट वायरल हो जाती हैं, जो लोगों को काफी पसंद आती हैं, उन के दिलों को छू जाती हैं. साथ ही दुनिया को एक नई सीख भी देती हैं. हम आप को एक ऐसी ही पोस्ट के बारे में बताएंगे जो एक पिता ने शेयर की है.
दरअसल, बैंगलुरु के रहने वाले अजित शिवराम नामक शख्स की एक पोस्ट सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से वायरल हो रही है. उन्होंने अपनी 2 बेटियों की परवरिश से मिले अनुभवों को बेहद सच्चे और मार्मिक शब्दों में साझा किया है, जिसे पढ़ कर लोग भावुक हो उठे.
अजित, यू ऐंड आई नाम की एक संस्था के कोफाउंडर हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा में मदद करती है.
उन का कहना है कि बेटियों की परवरिश ने उन्हें वह सब सिखाया जो किसी बिजनैस स्कूल का एमबीए भी नहीं सिखा सकता. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “बेटियों की परवरिश एक शांत क्रांति है…”
अपने वायरल पोस्ट में अजित लिखते हैं, “हर सुबह मैं अपनी बेटियों को स्कूल यूनिफौर्म पहनते हुए देखता हूं. वे मुसकराते हुई उस दुनिया में जाती हैं जो असल में उन के लिए नहीं बनी. जहां उन की हंसी को दबाया जाएगा, उन के सपनों को छोटा बताया जाएगा और उन की चुप्पी को उन की सहनशीलता समझा जाएगा…”
उन का मानना है कि भारत में बेटियों को बड़ी करना किसी आंदोलन से कम नहीं, क्योंकि हर दिन उन्हें सामाजिक रूढ़ियों और पुराने विचारों से लड़ना पड़ता है. आएदिन उन्हें कहीं न कहीं अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है. यह एक ऐसा संघर्ष है जिस में मांबाप, खासकर मां, हर रोज समाज की दकियानूसी सोच, भेदभाव और अनगिनत सवालों से जूझती है.
बेटियों को बड़ी करना क्यों आंदोलन जैसा
‘लड़की हुई है…’ यह वाक्य आज भी कई घरों में निराशा की तरह कहा जाता है। ‘पढ़ कर क्या करोगी, शादी तो करनी ही है,’ इस सोच से बाहर निकलना ही एक बड़ी जंग है।
‘घर के काम सीखो, बाहर जाने की क्या जरूरत है,’ आज भी बेटियों की आजादी को ले कर सवाल उठते हैं.
हर कदम पर रोकटोक : कपड़ों से ले कर कैरियर तक, हर चीज पर समाज की नजर और टिप्पणी बनी रहती है.
सुरक्षा का डर : बाहर भेजने से पहले मांबाप सौ बार सोचते हैं कि बेटी को कहीं कुछ हो न जाए।
लेकिन इस के बावजूद आज की बेटियां अपने हौसलों से इस सोच को बदल रही हैं। वे डाक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, खिलाड़ी, फाइटर पायलट और नेता बन रही हैं.
लीडरशिप बोर्डरूम में नहीं, घर की टेबल पर सिखाई जाती है
अजित कहते हैं, “जब आप की बेटी आप से पूछती है कि किसी अंकल ने यह क्यों कहा कि लड़कियां ऐसा नहीं करतीं, तो आप को सदियों पुरानी सोच से लड़ कर जवाब देना होता है. वही असली लीडरशिप की शुरुआत होती है. बेटियों के नजरिए से दुनिया को देखने पर अजित को औफिस की जैंडर इनइक्वैलिटी भी साफ दिखने लगी.”
वे कहते हैं, “कंपनियों को अब सिर्फ वूमन ऐंपावरमैंट पर पैनल डिस्कशन नहीं, बल्कि ऐसे पुरुषों की जरूरत है जो अपनी बेटियों की आंखों से दुनिया देखना सीखें।”
यूजर्स हुए भावुक
अजित की यह पोस्ट लिंक्डइन पर वायरल हो गई और हर कोने से सराहना मिल रही है. किसी ने लिखा, “इसे पढ़ते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गए,” तो एक यूजर ने सवाल उठाया, “जिन की बेटियां नहीं हैं, वे यह नजरिया कैसे अपनाएं?”
अजित की बातों ने न केवल पेरैंटिंग को नए सिरे से परिभाषित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि बेटियां समाज को बदलने की सब से शांत लेकिन सब से प्रभावी ताकत हैं. सच में, बेटियों को बड़ा करना अब एक क्रांति है, एक ऐसी क्रांति जो धीरेधीरे समाज को बदल रही है.