कौमेडी को एक अलग ही अंदाज में सफलता के अंजाम तक पहुंचाने वाले निर्मातानिर्देशक, राइटर और हंसमुख अभिनेता, सतीश कौशिक ने कभी कैलेंडर तो कभी मुत्थूस्वामी बन कर दर्शकों को हमेशा गुदगुदाया है. पेश हैं, स्टार टीवी पर आ रहे नए शो ‘सुमित संभाल लेगा’ के प्रमोशन पर उन से हुई बातचीत के खास अंश:
फिल्म ‘मि. इंडिया’ के कैलेंडर से ले कर आज तक आप कौमेडी में क्या बदलाव देखते हैं?
जिस तरह फिल्मों में बदलाव देखने मिला है, उसी तरह कौमेडी में भी बदलाव आया है. पहले विषयप्रधान फिल्में होती थीं पर आज की फिल्मों को देखिए, उन के सिरपैर का भी कुछ पता ही नहीं चलता. इसी तरह कौमेडी में भी बदलाव आया है. पहले फिल्मों में अलग से कौमेडियन होते थे, जिन में जौनी वाकर, महमूद जैसे कलाकार एक अच्छे कौमेडियन के साथसाथ अच्छे ऐक्टर भी थे.
आजकल फिल्मों में एक नया ट्रैंड आया है. ऐडल्ट या डबल मीनिंग कौमेडी. क्या यह आज की कौमेडी का बिगड़ा हुआ रूप है?
ऐसी फिल्में पहले भी बनती थीं, लेकिन उन पर इतना होहल्ला नहीं होता था क्योंकि ऐसी फिल्मों की संख्या बहुत कम थी. पर आज मल्टीप्लैक्स दौर में ऐसी बहुत सी फिल्में बन रही हैं, उन की चर्चा भी खूब होती है. दरअसल, समय में बदलाव के साथसाथ दर्शकों की सोच में भी बदलाव आया है, तभी तो लगातार ऐसी फिल्में बन रही हैं. कौमेडी का रूप नहीं बिगड़ा है. उस में वक्त के साथ बदलाव जरूर आया है.
आज की फिल्मों में अलग से कौमेडी करने वाले नहीं होते. क्या यह बदलाव इंड्रस्ट्री से इन को बाहर नहीं कर देगा?
टैलेंट कभी मारा नहीं जाता. आज के दौर में नए कौमेडी करने वाले बहुत से कलाकारों ने छोटे परदे का सहारा ले लिया है, लेकिन राजपाल यादव जैसे कलाकार आज भी फिल्मों में अपनी जगह बनाए हुए हैं और मैं भी लगातार काम कर रहा हूं. कोई भी अच्छी स्क्रिप्ट चाहे, वह फिल्मों की हो या टीवी शो की, मेरे पास आती है तो मैं उस में काम जरूर करता हूं.
जमाना स्लिमट्रिम और सिक्सपैक का है. पर आप लगातार अपना वजन बढ़ा रहे हैं. कभी वजन घटाने की सोची है?
दूसरों को हंसातेहंसाते जब मैं थक जाता हूं तो जम कर खाना खाता हूं. वैसे मुझे खाना तो पसंद है ही, लेकिन इतना नहीं जितना लोगों को मेरा वजन देख कर लगता है. वैसे भी जो ज्यादा हंसता है उस का वजन ज्यादा होता है और कौमेडियन वही अच्छे लगते हैं, जिन को सुनने से पहले देख कर ही हंसी आ जाए.