कैथोलिक ईसाइयों के लिए तलाक अब तक एक टेढ़ी खीर था, क्योंकि पोप का चर्च इस की इजाजत नहीं देता. विवाह को कभी हुआ ही नहीं समझ कर एक लंबा उबाऊ तरीका बना रखा है, जिसे अनलमैंट कहते हैं. इस का अर्थ है कि विवाह कभी हुआ ही नहीं. यह तरीका करोड़ों कैथोलिक औरतों को ऐसे विवाह में मजबूरी से रहने को कहता है. विवाह रजामंदी का मामला है पर चाहे बच्चे हों या न हों, रजामंदी न हो तो विवाह एक बोझ बन कर रह जाता है. यह रजामंदी तथाकथित भगवानों के आशीर्वाद के बावजूद क्यों नहीं होती? इस का सवाल पूछें तो जवाब मिलेगा कि यह बात तर्क की नहीं विश्वास की है. चर्च ने इस बुरी तरह अपने भक्तों को अंधविश्वासों में डाल रखा है कि वे अकसर टूटते विवाह को ढोते रहते हैं या अवैध तरीके से रहना शुरू कर देते हैं. जिन औरतों को तलाक के बिना अकेले रहना पड़ता है उन की बहुत दुर्दशा होती है. वे दोबारा विवाह नहीं कर पातीं और अधर में लटकी रहती हैं.
पोप फ्रांसिस ने अब इस प्रक्रिया को आसान बनाने की घोषणा की है ताकि जिन्हें तलाक चाहिए वे बिना तर्कवितर्क, प्रमाण के अनलमैंट, विवाह विच्छेद मांग सकें और फिर दोनों में से कोई भी अपील भी न कर पाए. यह तलाक चर्चों में ही मिल सकेगा और बिना शुल्क के होगा. एक तरह से यह क्रांतिकारी होगा, क्योंकि तलाक का बोझ पटकने के लिए सिविल अदालतों में जाना महंगा और मजबूरी होती है. आशा है कि चर्च विवाह तोड़ते हुए संपत्ति के विभाजन और खर्च पर लंबी बहस न करेगा. सरकारों को चाहिए कि वे भी तलाक कानूनों को बेहद सरल बनाएं और पहली अदालत ने अगर तलाक दे दिया तो अपील की इजाजत बिलकुल न हो. तलाक मिलने के बाद संपत्ति का मुकदमा चलता रह सकता है पर स्त्रीपुरुष व पुनर्विवाह के लिए स्वतंत्र हो जाएं. विवाद बच्चों को ले कर हो सकता है, जमा पैसे पर हो सकता है, गुजारेभत्ते के लिए हो सकता है पर उस दौरान वे विवाहित रहें यह शर्त क्यों हो? दोनों चीजें अलगअलग मानी जानी चाहिए. पोप कोई ईश्वर की वाणी नहीं, क्योंकि ईश्वर स्वयं भ्रम है. पर चूंकि लोग उन्हें मान रहे हैं, तो कानूनी सरकारों को भी उन का आशय समझ कर अपने कानून बदलने चाहिए.
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