हीरा होता तो हमेशा के लिए है पर फिलहाल उस की बाजार की चमक कम हो रही है. दुनिया भर में या तो ठंडे पड़ते व्यापारों या ग्राहकों की पसंद बदलने के कारण हीरे की मांग कम होने लगी है और खानों की मालिक कंपनियां डीबीयर्स, अलरोजा, रियोटिंटो आदि चीन, लेटिन अमेरिका और पश्चिमी एशिया में धुआंधार प्रचार की तैयारी कर रही हैं ताकि इस बाजार में चमक लाई जा सके. भारत को इस से बहुत फर्क पड़ता है, क्योंकि दुनिया में बिना तराशे निकाले गए 15 में से 14 हीरे भारत ला कर काटे जाते हैं और फिर इन का निर्यात होता है. इस साल के 6 माहों में ही निर्यात 17% घट गया है.

हीरे के व्यापारी अब रूस और दक्षिण अफ्रीका, जहां हीरे की खानें ज्यादा हैं, से मांग कर रहे हैं कि हीरा बेल्जियम के ऐंटवर्प में पहले न जा कर सीधे भारत ले जाया जाए और फिर तराशने के बाद इस को भेजा जाए ताकि लागत कम हो. अगर हीरे की लागत कम होगी तो बहुत से दिलों को जीतने के लिए आसानी हो जाएगी, क्योंकि भारतीयों में अब सोने से ज्यादा हीरे की कीमत होने लगी है चाहे उस की जरूरत के समय बिक्री बहुत संतोषजनक न हो. सोना तो गरीब लोग पहनते हैं. अमीरों की शान तो हीरे ही हैं और वे भी बड़े, कईकई कैरेटों के. सस्ता हीरा औरतों के लिए नएनए तरीके से हीरे के उपयोग का रास्ता खोलेगा. आज उस की मांग सिर्फ औरतों में है और कोई कारण नहीं कि यह प्रचार कर के आदमियों को भी पहना न दिया जाए. पहले राजा इसे अपने मुकुटों में लगवाया करते थे और अमीर अपने कुरतों के बटनों में. हीरा सस्ता हुआ तो इस का फैशन फिर लौट सकता है.

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