शासा काफी ऐक्साइटेड थी. वह कई दिनों से अपने कपड़ों और ज्वैलरी को सैट करने में लगी थी. वजह थी उस की हमउम्र सखी की रिश्तेदार सुषमा की गोदभराई की रस्म. लेकिन उस के उत्साह और उतावलेपन पर पानी तब फिर गया जब आमंत्रणपत्र उस के नाम से नहीं परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से आया. ध्यान से देखने पर भी सदस्यों की सूची में उस का नाम कहीं नहीं दिखा. उस का अंतर्मन कराह उठा. निराश हो कर वह खुद से ही सवाल कर बैठी कि आखिर उस का दोष क्या है? क्या रमेश के साथ बने और कई साल तक चले रिश्ते का टूटना यानी संबंध विच्छेद अन्य रिश्तों पर इतना प्रतिकूल असर डालता है? क्या जीवनसाथी से किया गया संबंध विच्छेद अन्य पारिवारिक रिश्तों में भी कड़वाहट पैदा कर देता है?

ऐसे तमाम सवाल तलाकशुदा महिलाओं के जेहन में लगातार घूमते रहते हैं. हजारों तलाकशुदा महिलाएं ऐसी हैं, जो इस बेकद्री और अपमान को लगातार सहती रहती हैं और अपने अंतर्द्वंद्व के चक्रवात में हिचकोले खाती रहती हैं. क्या संबंधों की शाख सिर्फ पतिपत्नी के प्रणय रिश्तों पर ही टिकी होती है? परिवार में जब कोई स्त्री बहू बन कर जाती है, तो कई संबंधों की डोर में बंध जाती है. वह पत्नी होने के अलावा बहू, मां, भाभी, चाची और ताई आदि संबंधों को भी अपने भीतर सहेज लेती है. इन रिश्तों पर तलाक की स्थिति आने पर अचानक परदा गिरना वाकई सालता है. दांपत्य सूत्र में बंधे रिश्ते अन्य तमाम रिश्तों पर भारी पड़ते हैं, इसलिए यह खासकर लड़की के लिए काफी कष्टदायी होता है. हमारे समाज में एक आम धारणा बैठ गई है कि तलाकशुदा औरतों के पग अशुभ होते हैं. विधवाओं की तरह वे अपने साथ अमंगलदायी संकेत और कष्ट व क्लेश की छाया लाती हैं. इसलिए उन्हें तीजत्योहारों या किसी शुभ अवसर पर बुलाना वर्जित माना जाता है. और तो और तलाकशुदा औरतों को हिकारत और उपेक्षा की नजर से भी देखा जाता है. उन्हें ऐसा महसूस कराया जाता है कि उन्होंने समाज के बंधेबंधाए नियम को तोड़ कर महापाप किया है. बाहर और भीतर दोनों ही जगह उन से दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. वे उपेक्षित होती हैं और उन के स्त्रीत्व पर हमेशा एक प्रश्नवाचक चिह्न बना रहता है. इस से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन को कितनी ठेस पहुंचती होगी.

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