‘‘उद्योगपति वैश्य परिवार से संबंध रखने वाले 25 वर्षीय एमबीए स्मार्ट लड़के के लिए सुयोग्य कन्या चाहिए. लड़के के पिता का साउथ दिल्ली की पौश कालोनी में घर है.’’

‘‘खत्री सिख परिवार की 23 वर्षीय गोरी, सुंदर, फैशन डिजाइनर कन्या के लिए व्यापारी/पेशेवर वर की तलाश है. परिवार की साउथ दिल्ली में कोठी है.’’

इन दोनों विज्ञापनों के कंटैंट में साउथ दिल्ली वाले कोण के रूप में ही समानता देखी. अगर आप वैवाहिक विज्ञापनों के ताजा कंटैंट का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि दिल्ली के साउथ दिल्ली वाले हिस्से के बाशिंदों ने अपने को बाकी दिल्ली से अलग कर लिया है. वे जब अपनी या अपने किसी करीबी की शादी की बात करते हैं, तो साउथ दिल्ली के भीतर ही रहना चाहते हैं. वे दिल्ली के बाकी हिस्सों से बचते हैं. औनली साउथ दिल्ली के विचार को ले कर प्रतिबद्ध साउथ दिल्ली वाले जाति, मजहब की दीवारों को भी गिरा चुके हैं. वे एक हैं और एक तरह से सोच रहे हैं. उन का नारा है, औनली साउथ दिल्ली.

बैंड, बाजा, बरात का सीजन लौट आया है. शादियों के कार्ड मिलने शुरू हो गए हैं. जाहिर है आप के घर में भी इस मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया होगा कि आप को किस शादी को अटैंड करना है और किसे छोड़ना है. बहरहाल, साउथ दिल्ली वालों ने अपने लिए कुछ अलिखित नियम बना लिए हैं. वे शादी को ले कर इन नियमों का बड़ी शिद्दत से पालन भी करने लगे हैं. साउथ दिल्ली वालों की ख्वाहिश रहती है, अपने लाड़ले या लाडली के लिए साउथ दिल्ली की काल्पनिक दीवारों के भीतर ही आइडियल मैच तलाश करना. यह हम नहीं कह रहे, ये बता रहे हैं अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापन. और तो और उन की तसदीक कर रहे हैं मैरिज ब्यूरो से जुड़े लोग.

‘दुलहन वही जो पाठकजी दिलवाएं’ मैरिज ब्यूरो की नीलम पाठक दावा करती हैं, ‘‘मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकती हूं कि साउथ दिल्ली में रहने वाले पेरैंट्स जब अपने बेटे या बेटी के लिए मैच तलाशने निकलते हैं, तो वे साउथ दिल्ली से निकलने के बारे में सोचते भी नहीं. वे अपने को खास समझते हैं. जाहिर है, वे अपने वैवाहिक विज्ञापनों में भी अपने साउथ दिल्ली कनैक्शन का जिक्र करने का खयाल रखते हैं.’’ औनली साउथ दिल्ली ट्रैंड का अध्ययन करने के इरादे से हम ने राजधानी से छपने वाले एक प्रमुख अंगरेजी अखबार के बीते 4, 11, 18, 25 जनवरी, 2015 के 4 रविवारों के अंकों में छपे विज्ञापनों का गहन अध्ययन किया. जानने की चेष्टा की कि शादी की दुनिया के अंदर क्याक्या स्वादिष्ठ पक रहा है. इन अंकों में कुल 7,740 वैवाहिक विज्ञापन छपे. उन में 122 में विज्ञापनदाताओं ने अपने साउथ दिल्ली से संबंधों का साफतौर पर जिक्र किया. विज्ञापन में लिखा कि वर के पिता का साउथ दिल्ली में घर, फ्लैट, कोठी, बंगला है. मात्र 3 अलगअलग विज्ञापन छपे जिन में बताया कि उन का नोएडा या नौर्थ दिल्ली में आशियाना है.

‘लांबा फेरे मैरिज ब्यूरो’ की सलाहकार रेखा बताती हैं, ‘‘अगर साउथ दिल्ली में रहने वाला कोई शख्स बाहर निकलना भी चाहे तो उस के बच्चे उसे हतोत्साहित करते हैं. बड़ों से बढ़ कर उन के बच्चे हैं. वे तो किसी भी सूरत में साउथ दिल्ली से बाहर जाने को राजी नहीं हैं.’’

उन कारणों का खुलासा करते हुए रेखा ने बताया कि साउथ दिल्ली के यंगस्टर्स मानते हैं कि वे बाकी के मुकाबले ज्यादा ट्रैंडी और स्मार्ट हैं. उन के साथ गैरसाउथ दिल्ली वाले की पटेगी नहीं. वे मानते हैं कि साउथ दिल्ली की कायदे से सरहद पालम से शुरू होती है और वसंत विहार में खत्म हो जाती है. इस के बीच उन्हें लाइफपार्टनर मिलना चाहिए. अपने को साउथ दिल्ली का बताने में फख्र महसूस करने वाले कुल विज्ञापनदाताओं में 54 का संबंध पंजाबी जातियों जैसे खत्री, गुरसिख, अरोड़ा, खुखरैन वगैरह से था. हिंदी और पंजाबी के लेखक और कवि प्रो. प्रताप सहगल को औनली साउथ दिल्ली ट्रैंड में पंजाबियों की बढ़ती भागीदारी से हैरानी नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘राजधानी के पंजाबियों ने कड़ी मेहनतमशक्कत करने के बाद पैसा कमाया. वे देश के विभाजन के बाद पूरी तरह से लुटपिट कर आए थे. वे कमाने के बाद संचय में कम, खर्च करने में ज्यादा यकीन करने लगे. वे जो कुछ भी करते हैं उसे दिखाने में यकीन करने लगे इसलिए वैवाहिक विज्ञापनों में अपनी प्रौपर्टी से ले कर महंगी कार तक का जिक्र करते. मगर अब गैरपंजाबी भी उन के नक्शेकदम पर चल रहे हैं.’’

23 वैश्य, 14 ब्राह्मण, 10 कायस्थ, 7 डाक्टर (अगर उन्हें भी आप जाति ही मानें), 5 मुसलमान, 4 जाट, 3 राजपूत तथा 2 मांगलिक ने भी साउथ दिल्ली में कोठी, फ्लैट, बंगला बता कर अपना रोब गालिब कर ही दिया. साउथ दिल्ली का क्रेज मैरिज से कहीं आगे निकल गया है. एनसीआर में सक्रिय रीयल ऐस्टेट कंपनी आईएलडी की निदेशक नुजत अलीम कहती हैं, ‘‘मैं ने महसूस किया है कि साउथ दिल्ली की सरकारी कालोनियों जैसे आर.के.पुरम, नेताजी नगर, सरोजनी नगर, आईएनए वगैरह में रहने के बाद जब लोगों को अपना सरकारी घर खाली करना पड़ता है तो उन की पहली कोशिश यही होती है कि वे किराए पर साउथ दिल्ली में ही घर लें.’’

औनली साउथ दिल्ली के सफर को आगे बढ़ाते हुए एक बड़ा गौरतलब ट्रैंड यह भी सामने आया है कि जाति से जकड़े भारतीय समाज में जाति का बंधन तब खुलने लगता है जब किसी इनसान को पुनर्विवाह करना होता है. दूसरा विवाह करने की चाहत रखने वाले करीबकरीब सभी विज्ञापनों में ‘जाति बंधन नहीं’ लिखा गया था. हालांकि इन में विज्ञापनदाताओं ने अरोड़ा, जाटव, वैश्य, सिख, ब्राह्मण जैसी अपनी जातियों का उल्लेख तो कर ही दिया था. नीलम पाठक कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि जो अपनी जाति का उल्लेख अपने विज्ञापनों में करते हैं, वे अपनी जाति से बाहर निकलने के लिए तैयार ही नहीं हैं. चूंकि हमारे यहां विवाह जाति बतानेजानने का रिवाज है इसलिए इस का उल्लेख हो ही जाता है. हालांकि कुछ साल पहले तक तो दूसरे विवाह के वक्त भी लोग अपनी जाति के इर्दगिर्द ही रहते थे.’’

पंडित सुरेश पांडे ने बताया कि उन के पास दूसरा विवाह करने से पहले लोग जन्मपत्री भी दिखाने के लिए नहीं आते. मतलब साफ है कि वैवाहिक जीवन की दूसरी पारी में चाहत यही रहती है कि किसी जीवनसाथी के साथ शेष जीवन जैसेतैसे बीत जाए. रंगभेद के अभिशाप से भले ही साउथ अफ्रीका मुक्त हो गया हो पर हमारे कम से कम शादी के संसार में रंगभेद साफतौर पर अपनी जड़ें जमाए हुए है. होने वाली वधू या बहू ‘गोरी’ या ‘फेयर’ मिल जाए तो सोने में सुहागा ही माना जा रहा है. हमें वधू कौलम के 55 विज्ञापनों में पढ़ने को मिला कन्या गोरी है. उधर नईनवेली बहू चाहने वाले 16 को इंतजार है किसी गोरी कुड़ी के मिलने का.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...