पत्नी के किसी से संबंध बन जाएं तो पतिपत्नी के रिश्ते पर तो आंच आती ही है, एकाध का खून हो जाना भी संभव रहता है. दिल्ली में बिजली के ठेकेदार को मथुरा ले जा कर पति ने इसलिए मार डाला कि पत्नी के उस से तब संबंध बन गए जब वह ठेकेदार पतिपत्नी के घर में ही रहता था और दोनों साथ काम करते थे. पत्नी पर हक बहुत पुराना मामला है. राम ने सीता को वापस पाने के लिए जहां पूरा युद्ध लड़ा, वहीं पत्नी के अपमान का बदला लेने के लिए महाभारत का युद्ध चचेरे भाइयों में हुआ. शक पर बनी फिल्मों में ‘संगम’ अच्छेअच्छों को आज भी याद होगी, जिस में तीसरा खुद आत्महत्या कर लेता है. नानावटी का मामला महीनों सुर्खियों में रहा.

पत्नी पर इस तरह का हक कि वह अपनी मरजी से किसी और से शारीरिक संबंध न बना सके, आज और ज्यादा विवाद का कारण बन रहा है. इस बारे में कानून एकतरफा सा है. पत्नी से उस की मरजी से बने संबंध पर पति तीसरे पर फौजदारी का मुकदमा कर सकता है और यदि संबंध साबित हो जाए तो दूसरे आदमी को सजा भी हो सकती है. पर अगर पति का दूसरी किसी औरत से संबंध हो तो सजा न पति को दिलवाई जा सकती है, न सौतन को. कुछ वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने पत्नियों के दूसरों से संबंध बनाने के हक पर उन के खिलाफ फैसला दिया था क्योंकि इस कानून से सजा पत्नी को नहीं, तीसरे पुरुष को ही मिलती है.

कानून चाहे आज भी पत्नी को पति की संपत्ति मानता हो पर सच यह है कि पति या पत्नी के किसी और से संबंध को तलाक की वजह तो माना जा सकता है पर न अपराध और न अपराध करने की छूट. यदि आज की औरत किसी से संबंध बनाती है तो वह सारी ऊंचनीच देख कर बनाती है. यह सामाजिक तौर पर भले गलत हो पर समाज के नाम पर पत्नी को एक औरत के सामान्य हकों से वंचित नहीं करा जा सकता. शारीरिक संबंध वैवाहिक संबंधों से अलग है. विवाह साथ रहने, साझा घर शेयर करने, एकदूसरे का खयाल रखने का वादा है, पर जब विवाह में खटास आ जाए और पति या पत्नी को किसी और की चाहत हो जाए तो इसे इस विवाह की कमजोर कड़ी माना जा सकता है. इस पर तलाक लिया जाए या नहीं, यह दोनों की अपनी मरजी है पर इस में पति, पत्नी या तीसरे के खून को सामाजिक हक या संभावना का नाम नहीं दिया जा सकता.

दिल्ली के इस मामले में पति उमेश ने पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर तपन को मार कर सजा दे दी पर अब क्या होगा? उमेश वर्षों जेल में रहेगा और पत्नी वर्षों तक उस दर्द को झेलती रहेगी कि उस के साथ न तो प्रेमी है और न ही पति. विवाह का क्या यही हक है कि इस कारण 3-3 जीवन खराब हो जाएं? यह पुरुषों की ही सोच नहीं है, औरतों की भी है. पतिपत्नी दोनों एकदूसरे पर अधिकार जमातेजमाते हदें पार कर लेते हैं. उन्हें जरा भी भूलचूक स्वीकार्य नहीं होती और बहुत मामलों में आपा खो दिया जाता है. यह सिर्फ हमारे यहां हो रहा हो ऐसा नहीं, यह दुनिया भर में होता है. आज जब औरतों का अपना वजूद बन रहा है, वे पति पर ही आशरित नहीं हैं, नई तरह की सोच विकसित करनी होगी. एक को लगता है कि दूसरा उसे धोखा दे रहा है तो तलाक का रास्ता खुला तो है, मारपीट पर क्यों उतारू हो जाए जिस में कुछ हाथ नहीं लगता.

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