हाल के वर्षों में बदन तराशने का एक फैशन सा चल पड़ा है. इसे देखते हुए भारत के बड़े शहरों से ले कर छोटे कसबों तक में जिम एवं फिटनैस सैंटरों की बाढ़ सी आ गई है. आप को जिम और फिटनैस सैंटर तो हर जगह मिल जाएंगे, लेकिन कुशल ट्रेनर शायद ही कहीं मिलें. इसी वजह से फिटनैस के दीवानों को लेने के देने पड़ जाते हैं. कई बार ट्रेनर की हिदायत के बावजूद जनूनी युवा जल्दी आकर्षक शरीर पाने के लिए जरूरत से ज्यादा व्यायाम कर शरीर को बिगाड़ लेते हैं.
बी.टैक के छात्र नरेश पंड्या को हाल ही में कंधे में दर्द की शिकायत हुई. जांच से पता चला कि कंधे की रोटेटर कफ मसल में खिंचाव आ गया है. नरेश ने बताया कि हाल ही में उस ने अपनी मांसपेशियां बढ़ाने की चाह में जिम में कुछ ज्यादा ही जोरआजमाइश कर ली थी, जबकि पिछले कई वर्षों से व्यायाम नहीं करता था. इसीलिए उस की मांसपेशियां अचानक ज्यादा वजन सहने को तैयार नहीं हो पाई थीं. उस के ट्रेनर ने उसे कई बार आराम से अभ्यास करने की हिदायत दी, लेकिन इस के बावजूद वह अधिक से अधिक वजन उठाता रहा. अपनी इसी आक्रामक प्रवृत्ति के कारण नरेश को मांसपेशियों में खिंचाव का शिकार होना पड़ा.
जिम में अभ्यास करते वक्त आप को जिनजिन इंजरीज का खतरा अधिक रहता है, उन में शामिल हैं- मांसपेशियों में खिंचाव, टैंडिनिटिस, शिन स्पलिंट, नी इंजरी, कंधे की इंजरी, कलाई में मोच आना आदि. अकसर गलत प्रशिक्षण और अस्वास्थ्यकर दैनिक लाइफस्टाइल के कारण ही ऐसी इंजरीज होती हैं.
वर्कआउट संबंधी आम इंजरीज
कंधा: निष्क्रिय और कम श्रम वाले लाइफस्टाइल के कारण मांसपेशियां प्रभावित होती हैं. कंधे की मांसपेशियां भी कमजोर पड़ जाती हैं. इस के अलावा कंप्यूटर के सामने बैठ कर प्रतिदिन एक ही मुद्रा में काम करने वालों के कंधों में खिंचाव आ जाता है. यदि बिना प्रशिक्षण के अपनी मांसपेशियों पर ज्यादा जोर डालते हैं, तो कमजोर मांसपेशियां जकड़ सकती हैं. मांसपेशियों के समूह रोटेटर कफ कहलाते हैं, जिन से मूवमैंट नियंत्रित होता है और जोड़ों को स्थिरता मिलती है. कंधे के दर्द का एक बड़ा कारण रोटेटर कफ मसल्स हड्डियों की संरचना के बीच अन्य सौफ्ट टिशूज में घर्षण होना है. इसे शोल्डर इंपिंजमैंट कहा जाता है. इसे सुप्रास्पिनेट टैंडिनिटिस के नाम से अधिक जाना जाता है.
टखने में मोच: यह समस्या ऐथलीटों में अधिक होती है. लिगामैंट्स टिशू की ही पट्टियां होती हैं, जो हड्डियों को जोड़ कर रखती हैं. टखने पर अधिक दबाव आप के लिगामैंट को इंजर्ड कर सकता है. जो लोग ऊबड़खाबड़ सतहों पर टहलते या दौड़ते हैं, उन में इस समस्या का खतरा अधिक रहता है. यदि आप वर्कआउट के तहत दौड़ते या हलकी दौड़ लगाते हैं, तो पैरों में अच्छी तरह फिट आने वाले जूते ही पहनें और समतल सतह पर दौड़ लगाएं.
घुटना: घुटने में मोच भी वर्कआउट इंजरी की एक समस्या है. यह अकसर जोड़ों के अति इस्तेमाल के कारण होती है. ट्रेडमिल का अधिक इस्तेमाल करने वालों में नी इंजरी होने का खतरा अधिक रहता है. ट्रेडमिल के कारण घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ जमीन पर दौड़ लगाने पर घुटनों को ज्यादा आसानी होती है, क्योंकि यहां आप को मशीन की क्षमता के मुताबिक नहीं चलना पड़ता है. घुटनों के जोड़ों के ऊपर आवरण के तौर पर लगे कार्टिलेज और लिगामैंट्स अत्यधिक दबाव के कारण बारबार स्ट्रैस इंजरी का शिकार हो जाते हैं. कार्टिलेज का नुकसान ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि इस की मरम्मत नहीं हो पाती. लोअर बैक: वेट लिफ्टिंग का लोअर बैक यानी कमर पर सब से ज्यादा असर पड़ता है. हमारी कमर ही पूरा दिन हमारे सारे शरीर का ज्यादातर दबाव झेलती है, जिस का मतलब है कि इस में हमेशा खिंचाव बना रहता है. यदि आप बहुत ज्यादा वजन उठाते रहते हैं, तो लोअर बैक की मांसपेशियों में इंजरी हो सकती है. कई मामलों में भारी वजन उठाने पर स्लिप डिस्क का भी खतरा हो सकता है.
बचाव
इंजर्ड मसल्स, लिगामैंट या कार्टिलेज को स्वस्थ करने में लंबा समय लग सकता है. लिहाजा, बचाव ही सर्वोत्तम उपाय है. व्यायाम और वर्कआउट को स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. लेकिन इस में हमेशा सुधार और कुशल निरीक्षण की जरूरत रहती है. जैसे:
1. भारी व्यायाम करने से पहले वार्मअप जरूरी है. नाकआउट करने से पहले पार्क में जौगिंग, नियमित स्टै्रचिंग और साइक्लिंग आप की मांसपेशियों को ताकतवर बनाएगी. व्यायाम से पहले स्ट्रैचिंग करना शरीर को लचीलापन प्रदान करने के लिए महत्त्वपूर्ण है. इस से शरीर कठिन व्यायाम करने में भी सक्षम हो जाता है.
2. व्यायाम करते वक्त निर्धारित पद्धति का पालन करना भी महत्त्वपूर्ण है. एक ही प्रकार की मसल्स पर अधिक जोर आजमाइश नहीं करनी चाहिए. हाथों, कूल्हों, पैरों, नितंबों और बाइसैप्स पर समान रूप से उचित ध्यान देना जरूरी है. अत्यधिक थकान वाले व्यायाम और एक ही तरह की मांसपेशियों के लिए बारबार व्यायाम करने से मांसपेशियों में खिंचाव और अकड़न आ सकती है.
3. यदि आप वजन उठाने वाला व्यायाम शुरू कर रहे हैं, तो वजन में धीरेधीरे वृद्धि करें ताकि आप की मांसपेशियां उस तनाव में ढल सकें और अधिक इस्तेमाल से खिंचाव की स्थिति में न आएं. कम वजन उठाने से शुरुआत करें. यह ट्रेनिंग 1 सप्ताह तक जारी रखें और फिर धीरेधीरे वजन बढ़ाएं.
4. फिटनैस अभ्यास के दौरान शरीर को पर्याप्त आराम दें. यदि आप को कोई शारीरिक परेशानी महसूस हो रही हो तो थोड़ी देर आराम करें.
5. वेट लिफ्ंिटग रूटीन शुरू करने से पहले ट्रेनर की सलाह लें. ट्रेनर आप की ताकत और कमजोरी को समझ आप को व्यायाम के तौरतरीके बताएगा. इस के अलावा वर्कआउट शुरू करने से पहले उपयुक्त पोशाक पहनें.
6. किसी ऐसे ट्रेनर की निगरानी में ट्रेनिंग लें जो आप के शरीर की संरचना जानता हो.
7. अपने शरीर के हाइड्रेशन लैवल का खयाल रखें. वर्कआउट शुरू करने से पहले वर्कआउट के दौरान और बाद में थोड़ा पानी पी लें.
वर्कआउट इंजरी से कैसे करें बचाव