नीनूजोंस जैसे ही कोच्चि हवाईअड्डे के परिसर में पहुंचती हैं, ढेरों लोग उन्हें उन के 23वें जन्मदिन की बधाइयां देने लगते हैं. नीनू लंबी सी मुसकराहट के साथ सब को धन्यवाद कहती हैं और राहत की सांस ले कर अपने परिवार के साथ आगे बढ़ जाती हैं. दरअसल, नीनू पेशे से नर्स हैं और युद्घ से जर्जर हो चुके इराक में तकरीबन 1 माह सांसत में बिताने के बाद वतन लौटी 46 नर्सों में से एक हैं.

गौरतलब है कि इराक में इसलाम धर्म के 2 समुदायों सुन्नी और शियाओं के बीच छिड़े संघर्ष की वजह से आतंकवादी गुट इसलामिक स्टेट औफ इराक एवं अलशाम ने सैकड़ों भारतीयों को बंदी बना लिया. इन बंदियों में भारत के केरल राज्य की कई नर्सें भी शामिल हैं. ये सभी नर्सें इराक के तिकरित शहर के एक अस्पताल में नर्सिंग का काम करती थीं. आतंकवादियों द्वारा अस्पताल को कब्जे में लेने के बाद ये नर्सें वापस वतन लौटने की उम्मीद ही छोड़ चुकी थीं. ऐसे में इराक से सुरक्षित वापस आ जाने पर वे बेहद खुश तो हैं, लेकिन इस खुशी के साथसाथ अब उन्हें जीविका से जुड़ी कठोर सचाइयों का भी सामना करना पड़ेगा.

दरअसल, तिकरित से वापस लौटी कई नर्सों के मांबाप ने उन्हें भारी कर्ज ले कर नर्सिंग की शिक्षा पूरी करवाई थी. बाद में विदेश भेजने के लिए दलालों को भी कर्ज ले कर मोटी रकम दी थी, जिसे अदा करने के लिए अब इन्हें कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है.

भारत में आमतौर पर क्व6 हजार से क्व10 हजार कमाने वाली नर्सों को इराक जैसे देशों में क्व40 से क्व50 हजार तक कमा लेने का मौका मिलता है, जो नर्सों और उन के परिवार वालों के लिए किसी ख्वाब के पूरा होने जैसा है. लेकिन तिकरित में शियासुन्नी टकराव के बाद से कई नर्सों को पूरी तनख्वाह नहीं मिली है. कुछ तो ऐसी भी हैं जिन्हें काम करते 4 से 5 माह हो चुके हैं, लेकिन पहली तनख्वाह भी नहीं मिली है. फिर भी अब ज्यादातर नर्सों के मांबाप उन्हें नौकरी के लिए वापस इराक भेजने को तैयार नहीं हैं.

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