डिलिवरी के बाद बहुत कम महिलाएं ही नियमित व्यायाम कर पाती हैं. ज्यादातर महिलाओं को अपने शरीर की कैलोरी कम करने के लिए पर्याप्त समय और प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है, क्योंकि वे डिलिवरी के बाद बच्चे के लालनपालन और सामान्य स्थिति में लौटने की जद्दोजहद में जुट जाती हैं.
अधिक वजन के कारण शरीर के उन जोड़ों पर अधिक कष्टदाई दबाव पड़ता है, जो पूरी जिंदगी हमारे शरीर का वजन सहते हैं यानी घुटने. जैसेजैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, शरीर के अन्य जोड़ों की तरह ही हमारे घुटनों में भी घिसाव होने लगता है और शरीर के अधिक वजन के कारण यह प्रक्रिया अधिक तेजी से होने लगती है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अपने जीवनकाल में अधिक बोन डैंसिटी गंवाती हैं. उन में औस्टियोपोरोसिस की आशंका भी अधिक रहती है. औस्टियोपोरोसिस हड्डियों को पतला और कमजोर करने की समस्या है, जिस से महिलाओं की स्थिति और बिगड़ जाती है. आधुनिक लाइफस्टाइल में टैक्नोलौजी का अधिक इस्तेमाल और न्यूनतम शारीरिक श्रम करना भी इस की एक वजह है.
घुटनों की खराब सेहत का दुष्परिणाम
जोड़ों में घिसाव बढ़ते रहने के कारण औस्टियोआर्थ्राइटिस की समस्या हो जाती है और इस वजह से सुरक्षा प्रदान करने वाले कार्टिलेज में भी घिसाव बढ़ने लगता है, जो जोड़ों में अकड़न, दर्द एवं घुटनों के जोड़ों में लौकिंग की समस्या बढ़ा देता है.
चूंकि अधिक वजन घुटनों पर अधिक दबाव बढ़ाता है, इसलिए अधिक वजन के कारण कार्टिलेज एवं लिगामैंट में भी घिसाव बढ़ने लगता है, जिसे जोड़ों का सपोर्ट सिस्टम माना जाता है. कार्टिलेज में जल्दी घिसाव शुरू होने से बचने के लिए हमें अपने वजन पर काबू रखना जरूरी है.