एकल परिवारों में जहां मातापिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं वहां बच्चे अपनी समस्या का हल खुद ही निकालने की कोशिश करते हैं और जब वे इस में कामयाब नहीं हो पाते हैं तब कई बार आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.

रंजना एक सिंगल पेरैंट हैं. अपनी बेटी श्रेया को ले कर वे बहुत महत्त्वाकांक्षी रही हैं. वे उसे डाक्टर बनाना चाहती थीं, परंतु श्रेया की साइंस में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी. यह बात वह कभी रंजना को खुल कर नहीं बता पाई. धीरेधीरे वह कुंठित होती गई. घंटों कमरे में बंद रहती. धीरेधीरे डिप्रैशन में चली गई.

हाल ही में एक युवती और एक युवक ने मैट्रो के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली. कारण, युवती की शादी टूट गई थी और वह काफी दिनों से मानसिक तनाव से गुजर रही थी.

युवक की आत्महत्या का कारण बेरोजगारी बताया गया. परिवार वालों का कहना था कि नौकरी न मिलने के कारण वह काफी दिनों से मानसिक तनाव में था.

दोनों ही मामलों में परिवार वाले जानते थे कि वे मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. ऐसे में परिवार वालों की भूमिका अहम हो सकती थी. वे उन्हें समझा सकते थे कि शादी टूटना या बेरोजगार होना जिंदगी का अंत नहीं है, परंतु अक्सर परिवार वाले उन्हें उन के हाल पर छोड़ देते हैं और अंजाम सामने है.

ऐसे कितने ही लोग हमारे आसपास जीते हैं जो मानसिक तनाव से गुजरते हैं और परिवार से कट कर रह जाते हैं. ऐसे में परिवार का फर्ज बनता है कि वह ऐसे व्यक्तियों को मनोचिकित्सक के पास ले जाएं ताकि उन का सही इलाज को सके.

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