एकल परिवारों में जहां मातापिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं वहां बच्चे अपनी समस्या का हल खुद ही निकालने की कोशिश करते हैं और जब वे इस में कामयाब नहीं हो पाते हैं तब कई बार आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.
रंजना एक सिंगल पेरैंट हैं. अपनी बेटी श्रेया को ले कर वे बहुत महत्त्वाकांक्षी रही हैं. वे उसे डाक्टर बनाना चाहती थीं, परंतु श्रेया की साइंस में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी. यह बात वह कभी रंजना को खुल कर नहीं बता पाई. धीरेधीरे वह कुंठित होती गई. घंटों कमरे में बंद रहती. धीरेधीरे डिप्रैशन में चली गई.
हाल ही में एक युवती और एक युवक ने मैट्रो के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली. कारण, युवती की शादी टूट गई थी और वह काफी दिनों से मानसिक तनाव से गुजर रही थी.
युवक की आत्महत्या का कारण बेरोजगारी बताया गया. परिवार वालों का कहना था कि नौकरी न मिलने के कारण वह काफी दिनों से मानसिक तनाव में था.
दोनों ही मामलों में परिवार वाले जानते थे कि वे मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. ऐसे में परिवार वालों की भूमिका अहम हो सकती थी. वे उन्हें समझा सकते थे कि शादी टूटना या बेरोजगार होना जिंदगी का अंत नहीं है, परंतु अक्सर परिवार वाले उन्हें उन के हाल पर छोड़ देते हैं और अंजाम सामने है.
ऐसे कितने ही लोग हमारे आसपास जीते हैं जो मानसिक तनाव से गुजरते हैं और परिवार से कट कर रह जाते हैं. ऐसे में परिवार का फर्ज बनता है कि वह ऐसे व्यक्तियों को मनोचिकित्सक के पास ले जाएं ताकि उन का सही इलाज को सके.
मानसिक अस्वस्थता लाइलाज नहीं
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने राज्य सभा में आंकड़े प्रस्तुत किए जिन के अनुसार देश की 6 फीसदी से भी ज्यादा आबादी किसी न किसी तरह के मानसिक असंतुलन का शिकार है.
लगभग 2 करोड़ लोग सीजोफ्रेनिया और लगभग 5 करोड़ लोग डिप्रैशन, चिंता और तनाव से ग्रस्त हैं. ये आंकड़े काफी चिंतित करने वाले हैं.
हमारे समाज में एकल परिवारों के बढ़ने के चलते व्यक्ति का अकेलापन बढ़ गया है. युवावर्ग से ले कर बुजुर्ग तक मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं.
प्रत्येक आयुवर्ग के लोग अपनीअपनी समस्याओं से घिरे हैं. उन की समस्याएं विकट हैं पर इतनी नहीं कि उन के हल ही न निकाले जा सकें. विकास एक निरंतर प्रक्रिया है और उस प्रक्रिया में भाग लेने वाले प्राणी उस के मुहरे हैं फिर चाहे वे बच्चे हों, युवा हों अथवा बड़ेबुजुर्ग. बुजुर्गों में बढ़ता अकेलापन जहां हमारे देश का सामाजिक और आर्थिक वातावरण तेजी से बदल रहा है, वहीं एक पीढ़ी का दूसरी पीढ़ी के साथ तालमेल न होना संबंधों में खटास पैदा कर रहा है, इस से हमारे बुजुर्गवर्ग में अकेलापन बढ़ता जा रहा है. उन की अत्यधिक उपेक्षा बच्चों के साथ उन के संबंधों में दरार डाल रही है.
गलीमहल्लों के नुक्कड़ों में बैठे ठहाके लगाते बुजुर्ग अब गायब होते जा रहे हैं. उन्होंने अपनेआप को चारदीवारी में बंद कर लिया है.
ऐसे में जरूरत है कि कोई उन्हें समझाए, उन्हें काउंसलिंग दे ताकि वे डिप्रैशन में जाने से बचें. हमारे समाज में आज भी यह भ्रांति है कि मनोचिकित्सक के पास जाने का अर्थ व्यक्ति का पागलपन है.
तनु की सास के देहांत के बाद उस के ससुर अकेले रह गए. तनु और उस के पति दोनों दिनभर औफिस में रहते. घर में उस के ससुर सारा दिन अकेले रहते.
उन्हें चिड़चिड़ा होते देख कर तनु ने पति को उन्हें मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. इस पर उस के पति भड़क उठे. उन का कहना था कि पिताजी उदास हैं. कुछ दिनों में ठीक हो जाएंगे.
बुजुर्ग महिलाएं अपने को घर के कामकाज में व्यस्त कर लेती हैं, परंतु पुरुषों के लिए घर पर रह कर समय काटना बहुत मुश्किल हो जाता है. इस पर एक पार्टनर के जाने पर अकेलापन उन्हें डिप्रैशन में ले जाता है.
डिप्रैशन रोकने के उपाय
अकसर लोग डिप्रैशन के शिकार लोगों को पहचान ही नहीं पाते. वे सब के बीच में रह कर अजीबअजीब हरकतें भी करते हैं पर उन की बीमारी पकड़ में नहीं आती. जब तक वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते उन्हें मनोचिकित्सक के पास नहीं ले जाया जाता. इसलिए जरूरी हो जाता है कि पारिवारिक रिश्तों में मधुरता रहे और अपना सामाजिक दायरा मजबूत बना रहे. समाज में मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता भी कम है, इसलिए भी समय पर इन का इलाज नहीं हो पाता.
हिंसक व्यवहार
पिछले साल तेलंगाना में 26 साल के डिप्रैशन से गुजर रहे एक सौफ्टवेयर इंजीनियर ने इसी हालत में 22 लोगों को तलवार से घायल कर दिया था, जिन में उस के अपने मातापिता भी थे.
सिविल सर्विस परीक्षा में असफल होने के बाद से वह गहरे डिप्रैशन में था. वह हमेशा पढ़ाई में टौपर रहा था, इसलिए इस असफलता को सहन नहीं कर पाया.
अगर समय रहते उस का इलाज हो जाता तो ऐसी नौबत न आती. बाद में वह पुलिस फायरिंग में मारा गया.
परिवार की भूमिका
हमारे देश में हमेशा से संयुक्त परिवार की प्रथा रही है. उस समय घर का कोई सदस्य भी परिवार में अकेला नहीं होता था. आज स्थिति बदल गई है. एकल परिवार और आर्थिक दबावों की वजह से जीवन में तनाव बढ़ गया है, इसलिए इन सब से जूझने के लिए परिवार में एकदूसरे के प्रति आत्मीयता जरूरी है.
अगर घर का कोई सदस्य तनाव में रहता है तो उस का समुचित इलाज कराएं व उस का विशेष ध्यान रखें. उस की पसंदनापसंद का विशेष खयाल रखें ताकि वह अपनेआप को उपेक्षित न महसूस करे. चाहे बच्चा हो या बूढ़ा उस की जरूरतें और उस के कार्यों के लिए वक्त निकालें.
आमतौर पर लोग मनोचिकित्सक के पास जाना अच्छा नहीं मानते. हमें इस भ्रांति को तोड़ना होगा. जिस प्रकार बाकी बीमारियों का इलाज दवा से होता है उसी प्रकार मानसिकरूप से अस्वस्थ व्यक्ति का इलाज भी दवा से संभव है.
मानसिक बीमारी के लक्षण
– किसी भी कार्य में मन न लगना.
– बेवजह खाते जाना या भूखेप्यासे घंटों बिस्तर पर पडे़ रहना.
– कटेकटे रहना.
– किसी को खुश देख कर चिड़चिड़ा हो जाना आदि.
इस तरह के लक्षण अगर किसी भी व्यक्ति में नजर आएं तो परिवार के सदस्यों को उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाने में देरी नहीं करनी चाहिए और उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करनी चाहिए.