गहने हर औरत की सुरक्षा की गारंटी भी होते हैं व उस के सौंदर्य और व्यक्तित्व की पहचान भी. जब सोने का दाम कम हुआ था तो लगा था कि उस की मांग बढ़ेगी पर जब सरकार ने इस पर टैक्स लगा दिया और खरीदने पर पैन नंबर देना जरूरी कर दिया तो यह धंधा लगभग चौपट हो गया. हाल ही में जब ब्रिटेन ने यूरोपीयन यूनियन से बाहर जाने का फैसला किया तो सोने का दाम और बढ़ गया, जबकि भारत में मांग घट गई.
सोने के प्रति भारतीय महिलाओं का मोह असीम है. असल में यह उन की संपन्नता की निशानी है. औरत अपने पति या पिता की सफलता को गहनों से ही प्रदर्शित कर सकती है और इसीलिए सदियों से सोने का व्यापार चल रहा है. सोने को न खा सकते हैं, न पहन कर सर्दीगरमी से बच सकते हैं पर फिर भी राजाओं से ले कर गरीबों तक में सोने का मोह कभी खत्म नहीं हुआ.
सोने के व्यापार पर ज्यादा अंकुश लगाना सरकारों की बेवकूफी है. सोने में लगा पैसा एक अजीब आत्मविश्वास देता है और परिवार के उत्साह को एक छिपा हुआ बल देता है. इसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. यह न अमीरी का ढिंढोरा है और न आदमी की मेहनत की बरबादी. नागरिकों की मेहनत तो असल में सरकारी दफ्तरों, सरकारी कार्यक्रमों, मंदिरों, मसजिदों में कहीं ज्यादा बरबाद होती है, जो न सरकार को बल देती है न भक्त को.
सरकार को टैक्स लगा कर सोने की खपत को कम करने की जगह उसे खुद के खर्चों को नियंत्रित करना चाहिए जो समाज के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होगा.
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