बौलीवुड अदाकारा करिश्मा कपूर ने अपने पति संजय कपूर से तलाक लेने का फैसला किया. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में आपसी रजामंदी से तलाक लेने और विवादों का निबटारा करने के कागजात पर दस्तखत किए थे.
करिश्मा कपूर ने 29 सितंबर, 2003 को दिल्ली के बिजनैसमैन संजय कपूर से शादी की थी. लेकिन 2012 में दोनों अलग हो गए. दोनों के 2 बच्चे समायरा और कियान हैं. करिश्मा संजय कपूर की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली शादी डिजाइनर नंदिता मथानी से हुई थी. संजय और नंदिता पढ़ाई के दौरान मिले थे. दोनों ने लव मैरिज की, मगर यह अधिक दिनों तक नहीं टिक सकी.
नंदिता से तलाक लेने के महज 10 दिनों बाद ही संजय ने करिश्मा से शादी कर ली. मगर यह शादी भी आखिर टूट गई और वजह रही संजय का प्रिया सचदेव से रिश्ता.
इसी तरह 33 साल की हौलीवुड अदाकारा बिली पाइपर ने भी अपने दूसरे पति लौरेंस फौक्स से कुछ समय पहले तलाक लेने की घोषणा की.
दरअसल, बिली पाइपर की पहली शादी तब हुई थी जब वे महज 19 साल की थीं. उन का पहला पति क्रिस इवेंस 35 वर्ष का था. दोनों ने लास वेगास में चुपके से शादी की थी, पर 3 साल बाद ही दोनों अलग हो गए. उस वक्त उन के तलाक को ले कर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, क्योंकि बिली तब परिपक्व नहीं थीं. उन की कोई संतान भी नहीं थी, इसलिए तलाक के बाद वे जल्दी मजबूत बन कर फिर उभर आईं.
मगर अब जबकि फौक्स और उन के 2 बच्चे हैं तथा शादी के कईं साल बीत चुके हैं और ऊपरी तौर पर दोनों का रिश्ता भी परफैक्ट नजर आ रहा था. ऐसे में उन के रिश्ते के टूटने को सहजता से नहीं लिया जा सकता.
तलाक लेना कोई आसान फैसला नहीं होता. वर्षों के सहेजे रिश्ते का महल जब टूटता है, तो उस की किरचें व्यक्ति के मनमस्तिष्क को बुरी तरह बेध डालती हैं. खुद की टूटन के साथ ही जमाने द्वारा दिए जाने वाले तानों व सवालों के बाण अलग से सितम ढाते हैं खासकर जब तलाक दूसरी दफा हुआ हो. सिर्फ भारत ही नहीं, कमोबेश विदेशों में भी यही स्थिति है.
दूसरे तलाक का मलाल
पहले तलाक की बात अलग होती है. उस वक्त व्यक्ति कम उम्र का होता है, अपरिपक्व होता है. वह जिंदगी और रिश्तों के प्रति उतना संजीदा नहीं होता. तलाक के बाद लोग उसे सहानुभूति की नजरों से देखते हैं और सोचते हैं कि जरूर वह गलत व्यक्ति के साथ बंध गया होगा या किन्हीं कारणों से तालमेल नहीं बैठा पाया होगा. उसे लोगों का सहयोग मिलता है.
मगर दूसरे तलाक में बात अलग हो जाती है. व्यक्ति परिपक्व और अनुभवी हो चुका होता है. माना जाता है कि वह दूसरे जीवनसाथी का सावधानी से चुनाव करेगा. उस की आंखें खुलीं होंगी और वह पुरानी गलतियां दोहराना नहीं चाहेगा. मगर यदि दूसरी दफा भी बात न बने तो लोग उसे नीची नजरों से देखने लगते हैं. उन्हें लगता है कि जरूर इस में ही कोई कमी है. तभी इस की किसी से नहीं निभ पाती.
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पहले तलाक को दुर्घटना माना जा सकता है, पर दूसरे तलाक को कहीं न कहीं लापरवाही और स्वभावगत दोष माना जाता है. व्यक्ति काफी समय तक हताशा और शर्मिंदगी के दौर से गुजरता है खासकर महिलाओं के साथ स्थिति ज्यादा गंभीर होती है. एक तरफ उन्हें आर्थिक चिंता सताती है तो दूसरी तरफ बच्चों के भविष्य की. ऊपर से जमाना भी औरत पर आरोप लगाने से नहीं हिचकता.
तलाक से जुड़ी भावनात्मक अवस्थाएं
विवाह के बाद जब व्यक्ति तलाक की त्रासदी से गुजरता है तो भावनात्मक रूप से वह कई अवस्थाओं को पार करता है:
दुख और हताशा: व्यक्ति को ऐसा लगता है जैसे किसी महत्त्वपूर्ण रिश्ते का अंत हो गया हो. वह इतना दुख महसूस करता है जैसे किसी फैमिली मैंबर की मौत हो गई हो. सामान्यतया यह अवधि 18 माह से 3-4 सालों तक हो सकती है.
पछतावा: असफलता का एहसास व्यक्ति के अंदर पछतावे की भावना पैदा करता है. व्यक्ति को महसूस होता है जैसे वह स्वयं की, परिवार वालों की व समाज की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका है. उसे अपराधबोध होता है कि वह उम्र भर के रिश्ते को नहीं निभा सका. यह तब और भी खतरनाक हो जाता है जब दर्द व शर्मिंदगी, गुस्से व हताशा में बदल जाती है.
डर और चिंता: तलाक से पहले और तलाक के बाद भी महिलाओं के दिल में तनाव और खौफ यह सोच कर होता है कि उन के बच्चों का भविष्य क्या होगा या फिर न जाने किनकिन आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. यदि जल्दी कोई उपयुक्त जीवनसाथी नहीं मिल पाए, तो जिंदगी की यह अवस्था भी लंबी खिंच जाती है.
तलाक को शर्मिंदगी से न जोड़ें
इस संदर्भ में दिल्ली के मैरिज काउंसलर डा. विख्यात सिंह कहते हैं, ‘‘तलाकशुदा स्त्रियों को ले कर समाज की गलत सोच का ही नतीजा है कि ऐसी महिलाएं स्वयं को दयनीय मानने लगती हैं. यह प्रवृत्ति उचित नहीं. मुझे लगता है निराश होने या तलाक से घबराने के बजाय असहनीय परिस्थितियों में तलाक ले लेना ही बेहतर विकल्प है.
‘‘दरअसल, शादी एक ऐसी संस्था है, जिस में पति और पत्नी दोनों के लिए एकदूसरे को समझना और एकदूसरे का सम्मान करना बेहद जरूरी है. यदि इस रिश्ते में आप को पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है तो फिर साथ रहने का कोई औचित्य नहीं.
‘‘याद रखें, हर किसी को शांति और सम्मान के साथ जीने का हक है. आप स्वयं को हीन महसूस न करें और न ही दुखी और परेशान हों, क्योंकि अशांति, तनाव और हीनभावना कहीं न कहीं आप को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करेगी. जीवन खत्म करने से अच्छा है स्वयं को एक और मौका दें.’’
प्रत्यूषा बनर्जी का ही उदाहरण लें. पहले वह मकरंद के साथ रिलेशनशिप में थी. फिर ब्रेकअप के बाद वह राहुल के संपर्क में आई. जाहिर है, इस रिश्ते को वह हर हाल में कायम रखना चाहती थी. प्रत्यूषा का राहुल से इतना ज्यादा इमोशनल अटैचमैंट था कि वह उस के बिना जीने की सोच भी नहीं सकती थी. नतीजा, जब जिंदगी ने उस से सवाल किए और इस रिलेशनशिप का भविष्य खतरे में नजर आया तो उस ने आत्महत्या कर ली.
मगर यह कोई समाधान नहीं और न ही किसी भी तौर पर इसे उचित ठहराया जा सकता है. यदि आप की दूसरी शादी खतरे में है, तो भी घबराएं नहीं और न ही स्वयं को दोषी मानें वरन मानसिक रूप से मजबूत बनें. मानसिक मजबूती के साथ आर्थिक मजबूती भी सुनिश्चित करें.
हड़बड़ी में न लें तलाक
कई दफा मामला सिर्फ आत्मसम्मान का नहीं होता. रिश्तों के टूटने की वजह स्थितियां या स्वभाव सही न होना भी हो सकता है. इसलिए कभी तलाक का फैसला जल्दबाजी में न लें. हो सकता है कई जगह गलतियां आप की भी हों. इसलिए अपनी गलतियों पर फोकस करते हुए उन्हें सुधारें और जीवनसाथी की सोच को महत्त्व दें.
आवेश में फैसला करने के बजाय थोड़ा वक्त स्वयं को और अपने रिश्ते को दें. चाहें तो एक छत के नीचे ही कुछ दिन अलगअलग रहें. इस दौरान आप को अपनी गलतियां भी समझ में आने लगेंगी. आप यह भी कर सकती हैं कि कुछ समय के लिए अपने मायके या फिर किसी और रिश्तेदार के यहां जा कर रहें. इस से दिलोदिमाग में उठ रहे तूफान और क्रोध का आवेग थोड़ा संयत हो जाएगा और आप दोनों को ठंडे दिमाग से सोचने का समय मिलेगा.
दूसरी शादी से पहले
दूसरा तलाक व्यक्ति के जख्म पर दोबारा चोट लगने के समान है. जो दिल पहले ही टूटा हुआ था उस के फिर से टूटने की तकलीफ सहना आसान नहीं होता. ऐसा लगता है जैसे वह सैकंड टाइम लूजर बन गया हो.
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जब आप दूसरी दफा बंधन में बंध रहे हों, तो अपनी जिंदगी को खुली किताब बना कर रखिए. इस में कोई बुराई नहीं. अपने मूल्यों व अपेक्षाओं को ले कर ईमानदारी से बातचीत करें. साफसाफ बताएं कि मनी, पेरैंटिंग व इंटीमेसी के संदर्भ में आप के विचार क्या हैं. भले ही इसे क्रिटिकल कवर सैशन कहा जाए, मगर दूसरी दफा रिश्ते में कमिटमैंट करने से पहले इन बातों पर चर्चा बहुत जरूरी है. इस से आप भविष्य में अपने रिश्ते को सुलझा हुआ पाएंगे और छोटीछोटी बातों पर बहस से बच सकेंगे.
सलाह तो यह भी दी जाती है कि दूसरी शादी करने से पहले आप एक विवाहपूर्व समझौता कर के रखें ताकि यदि दोबारा तलाक की नौबत आए तो आप बेहतर ढंग से अपने इशूज सामने रखते हुए उन पर नियंत्रण कर सकें. इस से मनी मैटर्स मैनेज करने में भी आसानी होती है और आप को ज्यादा तनाव से भी नहीं गुजरना पड़ता है.
इस ऐग्रीमैंट में आप का भावी जीवनसाथी जिस तरह से आप को स्थान देता है वही यह दर्शाता है कि वह आप को शादी के बाद किस तरह ट्रीट करने वाला है.
यदि आप को लगता है कि ज्यादातर मामलों में आप के और पार्टनर के विचार नहीं मिल रहे और मतभेद हो रहे हैं, तो समझ जाएं कि आगे जा कर आप दोनों की वैवाहिक जिंदगी खुशहाल नहीं गुजरने वाली, उलटे हनीमून पीरियड के बाद ही तकरार शुरू होने वाली है. यह न सोचें कि शादी के बाद आप का पार्टनर बदल जाएगा. चाहें तो अपने मैरिज काउंसलर से भी इस विषय पर चर्चा कर सकते हैं.
दूसरी शादी के दौरान मन में काल्पनिक सोच न रखें. इस वक्त तो आप को अपनी आंखें ज्यादा खुली रखनी चाहिए. हर पहलू पर विचार करने के बाद ही दूसरी दफा बंधन में बंधना चाहिए ताकि यह दोबारा न टूटे.
शादी कभी इस वजह से न करें कि आप अकेलापन महसूस कर रहे हैं और आप को किसी के साथ की जरूरत है. इस तरह की सोच और शादी में जल्दबाजी से नुकसान
अपना ही होता है. यह तो खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. जब आप हड़बड़ी में दोबारा गलत जीवनसाथी का चुनाव कर लेते हैं तब जिंदगी में फिर वही घटता है, जो पहले के बंधन में घटा था
मुश्किल हो जाती है जिंदगी
‘‘तलाक शब्द स्वयं में ही काफी पीड़ादायक है और जब बात दूसरे तलाक की हो तो स्थिति और भी दुष्कर हो जाती है. महिला को लगता है जैसे उस की दुनिया ही खत्म हो गई है. वह सोचने लगती है कि जरूर गलती उसी की थी. लोग भी महिला पर ही दोषारोपण करते हैं. सैलिब्रिटीज की बात छोड़ दी जाए तो मध्यवर्गीय परिवार की महिला के लिए तलाक के बाद आर्थिक दृष्टि से मजबूत रहना और बच्चों को पालना बहुत कठिन होता है. मांबाप भी तलाकशुदा बेटी को अपने पास रखने से कतराने लगते हैं. लोग ताने मारते हैं वह अलग. ऐसे में महिला तलाक लेने से बेहतर आत्महत्या करना बेहतर समझती है.’’
डा. अनुजा कपूर, मनोचिकित्सक
बढ़ती जाती हैं दूरियां
‘‘दूसरी शादी में अकसर व्यक्ति अपने नए जीवनसाथी से बहुत ज्यादा अटैच हो जाता है और समाज से कट सा जाता है. वह अपना पूरा ध्यान उसी व्यक्ति पर केंद्रित रखता है और खुद ज्यादा से ज्यादा अकेला होता जाता है. डौमिनेट किए जाने के बावजूद ऐसा व्यक्ति खासकर महिलाएं, उसी रिश्ते में बंधी रहने का प्रयास करती हैं, जो उचित नहीं. ऐसे में अवसाद व्यक्तित्व पर हावी होने लगता है. ऐसी स्थिति का शिकार बनने, कंप्रोमाइज करने, शोषण सहने या आत्महत्या करने के बजाय अलग हो जाना यानी तलाक लेना ही बेहतर विकल्प है क्योंकि हर किसी को खुशहाल जिंदगी जीने का अधिकार है.’’
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विख्यात सिंह, मैरिज काउंसलर
तलाक बनता शर्मिंदगी की वजह
हाल ही में यूके में 1000 तलाकशुदा लोगों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि तलाक शर्मिंदगी की वजह बन जाता है. अलग हुए दंपतियों में से 50% ने स्वीकारा कि वे तलाक के बाद शर्मिंदगी और असफलता की भावना महसूस कर रहे हैं. उन्हें लगता है जैसे उन की जिंदगी और व्यक्तित्व पर न मिटने वाला धब्बा लग गया है, उन का सब कुछ बिखर गया है. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने दोगुनी मात्रा में शर्म और टूटन महसूस की.
करीब एकतिहाई लोगों ने तलाक से बचने का हरसंभव प्रयास किया, क्योंकि तब तक यह परंपरावादी सोच उन के दिल में बरकरार थी कि विवाह हमेशा के लिए किया जाता है. 46% तलाकशुदाओं ने स्वीकारा कि उन्हें रोज लोगों के जजमैंट से गुजरना पड़ता है. लोगों के मन में उन के प्रति पूर्वाग्रह ने जन्म ले लिया है.
वहीं 10 में से 1 व्यक्ति का कहना था कि वह अपने विवाह को सफल बनाने का प्रयास इसलिए करता रहा कि उसे लगता है कि तलाक एक कलंक है, धब्बा है.
10 में से 6 लोगों का कहना था कि उन्होंने तलाक के बाद अपने सारे दोस्त खो दिए. महिलाओं के लिए नए दोस्त बनाना पुरुषों के मुकाबले दोगुना ज्यादा कठिन रहा.
एक आम सवाल जो प्राय: सभी तलाकशुदाओं को सुनना पड़ा वह यह कि आप का तलाक क्यों हुआ?
यह सवाल सदैव गलत मकसद से पूछा गया हो, ऐसा नहीं है. कभीकभी यह सवाल उस शख्स के साथ नया रिश्ता जोड़ने में रुचि रखने वालों द्वारा भी पूछा गया ताकि वे यह अनुमान लगा सकें कि उन के रिश्ते का भविष्य क्या होगा. इस सवाल का जवाब व्यक्ति के चरित्र और दूसरे पहलुओं पर प्रकाश डालता है.