गुजरात के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक होने के साथ-साथ रानी की वाव में अपने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कई सारी दिलचस्प चीजें हैं. इस खूबसूरत बावली की वास्तुकला और ऐतिहासिक प्रासंगिकता निश्चित तौर पर सराहनीय हैं. अगर आप इस बार गुजरात की यात्रा पर जाने की योजना बना रहे हैं, तो इस ऐतिहासिक खूबसूरती का दीदार करना मत भूलियेगा.

सरस्वती नदी के तट पर पाटण में स्थापित इस खूबसूरत कला से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें भी हैं, जो इसके आकर्षण को और निखारती हैं. पाटण को पहले ‘अन्हिलपुर’ के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी हुआ करती थी.

रानी द्वारा करवाया गया निर्माण

भारत में कई ऐसे स्मारक हैं, जिन्हें किसी राजा ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था. इन सबसे विपरीत रानी की वाव सबसे अलग और अद्वितीय है क्योंकि इसे वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयामति द्वारा बनवाया गया था.

बावली की वास्तुकला

बावली को उल्टे मंदिर की तरह बनाया गया है, जिसमें सात स्तरों में सीढ़ियां निचले स्तर तक बनी हुई हैं. बावली के हर स्तर में खूबसूरत नक्काशियां की गई हैं और कई पौराणिक और धार्मिक चित्रों को उकेरा गया है. वाव की खूबसूरत शैलियां सोलंकी वंश की कला में समृद्धि को बखूबी दर्शाती है.

सिद्धपुर तक जाने वाली सुरंग

हर स्मारक का एक रहस्य होता है, उसी तरह रानी की वाव का भी है. बावली के सबसे निचले चरण की सबसे अंतिम सीढ़ी के नीचे एक दरवाजा है जो 30 मीटर लंबे सुरंग की ओर ले जाती है और यह सुरंग सिद्धपुर गांव में जाकर खुलता है, जो पाटण के नजदीक ही है.

रोग के इलाज में इस्तेमाल

ऐसा माना जाता है कि, 5 दशक पहले इस बावली में औषधीय पौधे हुआ करते थे और इनके साथ यहां जमे पानी को मौसमी बुखार और अन्य बिमारियों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता था.

बावली में बनी मूर्तियां

बावली के अंदरूनी दीवारों में लगभग 800 से ज्यादा मूर्तियां उकेरी गई हैं. इन दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं.

विश्व विरासत स्थल

22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया, जो यूनेस्को की सूचि में शामिल दुनिया की सबसे पहली बावली बनी. इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित रखा गया है.

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