‘‘तुम्हारी टैस्ट रिपोर्ट ठीक नहीं है, मालिनी. लगता है, अबोर्शन करवाना ही पड़ेगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, डा. अणिमा. मां हो कर क्या मैं हत्यारिन बनूं?’’

‘‘इस में हत्या जैसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे रोग का इलाज जरूरी है. अच्छी तरह सोच लो.’’

‘‘सोच लिया है, मैं ऐसी कोई दवा नहीं लूंगी जिस से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में बाधा आए.’’

‘‘तुम समझती क्यों नहीं, मालिनी,’’ बहुत देर से मौन बैठे हर्ष भी अब उत्तेजित हो गए थे.

‘‘सब समझती हूं मैं. मुझे कैंसर है. इस रोग के लिए दी जाने वाली दवाएं व रेडियोथेरैपी गर्भस्थ शिशु के लिए सुरक्षित नहीं हैं. लेकिन आप लोग अपना निर्णय मुझ पर मत थोपिए.’’

घर आ कर मालिनी ने कहा, ‘‘कल मम्मीपापा आ रहे हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं ऊपर के दोनों कमरों की सफाई करवा देता हूं,’’ हर्ष बोले.

अगले दिन ठीक समय पर मालिनी के मातापिता आ गए. बेटी को स्वस्थ, प्रसन्न देख कर उन्हें अच्छा लगा. मालिनी और हर्ष ने कुछ नहीं बताया था किंतु 2 दिन बाद डा. अणिमा से उन की मुलाकात हो गई. मालिनी के कैंसर की जानकारी उन्हें डाक्टर से मिली तो उन की आंखों के आगे तो मानो अंधेरा ही छा गया.

‘‘कैसी हो, मां?’’

‘‘ठीक हूं. थोड़ी देर मेरे पास बैठो, कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहिए मां.’’

‘‘देखो बेटी, मैं ने हमेशा तुम्हारा सुख चाहा है. हर्ष से तुम ने प्रेम विवाह किया, हम बाधक नहीं बने. अब समय है कि तुम हमारा मान रखो. सबकुछ जान कर हम तटस्थ तो नहीं रह सकते. डाक्टर कहेंगी तो हम इलाज के लिए तुम्हें अमेरिका ले चलेंगे.’’

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