दफ्तर में नए जनरल मैनेजर आने वाले थे. हर जबान पर यही चर्चा थी. पुराने जाने वाले थे. दफ्तर के सभी साहब और बाबू यह पता करने की कोशिश में थे कि कहां से तबादला हो कर आ रहे हैं. स्वभाव कैसा है, कितने बच्चे हैं इत्यादि. परंतु कोई खास जानकारी किसी के हाथ नहीं लग रही थी. अलबत्ता उन के तबादलों का इतिहास बड़ा समृद्ध था, यह सब को समझ आने लगा था.
नियत दिन नए मैनेजर ने दफ्तर जौइन किया तो खूब स्वागत किया गया. पुराने मैनेजर को भी बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बिदा किया.
शशांक साहब यानी जनरल मैनेजर वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना होते रहते. न जाने क्यों हर आनेजाने वाले से शंकित निगाहों से बात करते. लोगों में उन का यह व्यवहार करना कुतूहल का विषय था. पर धीरेधीरे दफ्तर के लोग उन के सहयोगपूर्ण और अहंकार रहित व्यवहार के कायल होते गए.
1 महीने की छुट्टी पर गया नीरज जब दफ्तर में आया तो शशांक साहब को नए जनरल मैनेजर के रूप में देख पुलकित हो उठा, क्योंकि वह उन के साथ काम कर चुका था. वैसे ही शंकित रहने वाले साहब नीरज को देख और ज्यादा शंकित दिखने लगे थे. बड़े ही ठंडे उत्साह से उन्होंने नीरज से हाथ मिलाया और फिर तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गए.
मगर ज्यों ही नीरज उन से मिलने के बाद चैंबर से बाहर गया, उन के कान दरवाजे पर ही अटक गए. शशांक को महसूस हुआ कि बाहर अचानक जोर के ठहाकों की गूंज हुई. वे वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना हो गए कि न जाने नीरज क्या बता रहा होगा.