सांवली रंगत और औसत कदकाठी वाली नीलू (बदला हुआ नाम) का जन्म महाराष्ट्र के पुसद शहर में हुआ था. 8 भाईबहनों में एक नीलू का परिवार काफी गरीबी में गुजरबसर करता था. 13 साल की छोटी सी उम्र में उस की शादी कर दी गई. उस का पति शराबी निकला. रोज मारपीट करता.
नीलू ने 2-3 सालों तक सबकुछ सहा. इस बीच वह गर्भवती हो गई. मगर इस नाजुक स्थिति में भी किसी ने उस की सहायता नहीं की. उलटा, पति द्वारा मारपीट किया जाना जारी रहा. आजिज आ कर वह घर से भाग गई. इस दौरान उस की मुलाकात एक महिला से हुई जो उसे घरेलू काम दिलाने के बहाने नांदेड़ ले गई.
नीलू काम की चाह में नांदेड़ चली गई. बाद में उसे पता चला कि उस महिला ने उसे बेच दिया है. रोज उस के पास ग्राहक भेजे जाते. इस तरह, परिस्थितिवश, वह एक सैक्सवर्कर बना दी गई.
एक साल बाद वहां के दलाल ने उसे राजस्थान के बीकानेर शहर में ला कर बेच दिया. करीब 6 महीने तक बीकानेर में रहने के बाद वह वापस भाग कर पुसद आ गई.
फिलहाल नीलू पुसद में भाड़े के घर में अपने पार्टनर के साथ रह रही है. उस की उम्र अब 24 साल है और बेटा 8 साल का हो चुका है. वह अपने बच्चे को पढ़ा रही है, साथ ही सैक्सवर्कर का काम भी कर रही है. वह अब इस बात की परवा नहीं करती कि समाज क्या कहेगा.
कुछ ऐसी ही कहानी सविता की भी है. सविता की शादी कम उम्र में हो गई थी. जल्दी ही उस की 2 बेटियां भी पैदा हुईं मगर वैवाहिक जीवन ज्यादा चल नहीं सका. सविता का तलाक हो गया. वह अपनी दोनों बेटियों के साथ अलग रहने लगी. इस बीच, उस की छोटी बेटी ने गलती से चूहे मारने की दवा पी ली.
सविता तुरंत उसे अस्पताल ले कर गई. डाक्टरों ने कहा कि बच्ची को आईसीयू में रखना होगा और कुल खर्च 16 हजार रुपए से जयादा आएगा.
यह बात करीब 14-15 वर्षों पहले की है. सविता के पास उस वक्त बिलकुल भी रुपए नहीं थे. वह बहुत परेशान हो गई कि इतने पैसे कहां से आएंगे. तब उस की एक सहेली उसे रुपए देने को तैयार हो गई. वह सहेली एक सैक्सवर्कर थी. उस ने शर्त रखी थी कि सविता को भी इस पेशे में आना होगा. सविता के पास कोई और चारा नहीं था. सहेली से रुपए ले कर उस ने बेटी का इलाज कराया. बाद में स्वयं एक सैक्सवर्कर बन गई. सहेली उस के पास ग्राहक भेजने लगी.
इन दोनों की तरह भारत में कितनी ही ऐसी महिलाएं हैं जो इस पेशे से जुड़ी हैं. आंकड़ों की मानें तो अकेले भारत में 1.2 करोड़ से ज्यादा सैक्सवर्कर हैं. सैक्सवर्कर या वेश्या, यानी वह स्त्री जो अपने शरीर का सौदा करती है. सामान्यतया हम वेश्याओं को बहुत ही नीची नजरों से देखते हैं. इस पेशे को समाज के लिए कलंक और इस से जुड़ी महिलाओं को तुच्छ समझते हैं.
इतिहास पुराना है
देखा जाए तो भारत में वेश्यावृत्ति का इतिहास बहुत पुराना है. बहुत पहले भारत के कुछ हिस्सों में यह पेशा दरबारी नर्तकी कहलाता था. ये ऐसी महिलाएं होती थीं जो शिक्षित होने के साथसाथ नृत्य, संगीत, राजनीति, साहित्य जैसी विभिन्न विधाओं में भी पारंगत होती थीं. ये पुरुषों को रिझाने और उन का मन बहलाने का काम करती थीं. इस में सैक्स इन्वौल्व हो भी सकता था और नहीं भी. ये महिलाएं राजनीति, सेना, प्रशासन से जुड़े अहम फैसलों को भी प्रभावित करती थीं.
मुगलजान भी एक दरबार में थी जो गायिका और लेखिका भी थी. वह मिर्जा गालिब जैसे मशहूर कवि की कविताओं को संगीत देती थी. बेगम सामरा भी एक दरबारी नर्तकी थी, जिस ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर शासन भी किया. इसी तरह मारन सरकार, जो एक नर्तकी थी, 1802 में राजा रणजीत सिंह की रानी बनी. उसे लोगों ने बहुत इज्जत दी.
मुगल शासनकाल में भी ऐसी महिलाएं थीं. तब इन का नाम तवायफ होता था. तवायफें आमतौर पर नृत्य कर के पुरुषों का मनोरंजन करतीं. शारीरिक जुड़ाव जरूरी नहीं था. मुगल बादशाहों, जमींदारों, अमीरों और दरबारियों ने इन्हें संरक्षण दिया था. राजा जहांगीर के हरम में 6 हजार से ज्यादा तवायफें थीं जिन्हें धन, सत्ता और शक्ति सब हासिल थे.
इस से पहले मंदिरों में देवदासी प्रथा थी. यह अभी भी चल रही है. दिल्ली में एक जानामाना रैडलाइट एरिया जीबी रोड है. सैक्सवर्कर महिलाओं के कारण यह इलाका सदैव ग्राहकों व दलालों से भरा होता है. मध्यवर्ग व उच्चवर्ग के अधेड़ और कमउम्र लड़के भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं. दिल्ली के खास उच्चवर्ग के सदस्यों को यहां के मशहूर कोठा नंबर 64 के आसपास चक्कर लगाते हुए अकसर देखा जा सकता है.
मुंबई का कामाठीपुरा, कोलकाता का सोनागाछी, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का पैठ आदि भी बदनाम इलाके हैं. इन में ज्यादातर लड़कियां नेपाल और बंगलादेश से ट्रैफिकिंग द्वारा लाई जाती हैं. महज 10-12 साल की आयु में इन्हें मुंबई, कोलकाता आदि के वेश्यालयों में बेच दिया जाता है. ये बुरी तरह इस चंगुल में फंस जाती हैं. इन का निकलना कठिन हो जाता है.
भारत में वेश्यावृत्ति के कई रूप हैं जिन में प्रमुख हैं :
- स्ट्रीट प्रौस्टिट्यूट
- बार डांसर्स
- कौल गर्ल्स
- रिलीजियस प्रौस्टिट्यूट
- एस्कौर्ट गर्ल्स
- रोड साइड ब्रोथेल
- चाइल्ड प्रौस्टिट्यूट
हमारे देश का कानून वेश्यावृत्ति पर शिकंजा कसता है. इस से जुड़े और इसे चलाने व संरक्षण देने वालों को सजा दिए जान का प्रावधान है. होटल, लौज के या दूसरे कमरों को खुलेआम वेश्यालय के रूप में प्रयोग करने वालों को कानूनी गिरफ्त में लिया जा सकता है.
ऐसी महिलाओं का जीवन आसान नहीं होता. अपने पेशे की वजह से इन्हें कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है, जिन में सब से प्रमुख एचआईवी यानी एड्स है. सविता बताती है कि अकसर ग्राहक सुरक्षा का उपाय नहीं करते, जिस से इस तरह की बीमारियों के होने का खौफ बना रहता है.
इस के अलावा सर्वाइकल कैंसर, साइकोलौजिकल डिस्और्डर्स आदि होने के खतरे बने रहते हैं.
नाइंसाफी
सैक्सवर्कर्स एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही अकसर तथाकथित सभ्य घरानों के लोग अपनी भौंहें चढ़ा लेते हैं. इस काम से जुड़ी महिलाओं को लोग नीची नजरों से देखते हैं. वे इन का साया भी अपने घर क्या, महल्ले तक से दूर रखना चाहते हैं. पर अफसोस कि इन्हीं सभ्य घराने के पुरुष यदि इन महिलाओं के दर पर जाते हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती.
स्वस्ति संस्था की रीजनल औफिसर गिरिजा ठाकुर कहती हैं, ‘‘पुरुष वही काम करे तो उस के चरित्र पर कलंक नहीं लगता मगर स्त्री करे तो उसे कुलटा करार दिया जाता है. धर्म भी उन की इस स्थिति का जिम्मेदार है. धर्मगुरु नहीं चाहते कि वे वापस समाज में स्थान पाएं. धर्म ने लोगों को गुलाम बनाया हुआ है ताकि लोग धर्मगुरुओं से डरें. स्त्री यदि मजबूरीवश इस काम को अपना व्यवसाय बनाती है तो इतनी हायतोबा क्यों?’’
सामाजिक कार्यकर्ता अनुजा कपूर कहती हैं, ‘‘वेश्याएं भी इंसान हैं, इन्हें भी जीने का हक है. मगर समाज इन पर ‘गंदी औरत’ का तमगा लगा देता है और इन्हें जलालतभरी नजरों से देखता है. कोई वेश्या अस्पताल जाती है तो इस के इलाज की सही व्यवस्था नहीं हो पाती. इन के साथ अन्याय होता है. कोई इन के पैसे छीनता है तो ये महिलाएं कहीं जा कर गुहार नहीं लगा सकतीं. सरकार द्वारा इन के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की जाती. इस वजह से इन्हें इसी व्यवसाय को करते रहना पड़ता है. यदि सनी लियोनी को समाज पलकों पर बिठा सकता है तो दूसरी महिलाओं ने क्या दोष किया है? सब को मौका मिलना चाहिए अपनी जिंदगी संवारने का. समाज को इन्हें सहजरूप से स्वीकार करना चाहिए.’’
वेश्यावृत्ति दुनिया के सब से पुराने पेशों में से एक है. बंगलादेश समेत ऐसी बहुत से देश हैं जहां इसे एक काम का दरजा दिया गया और इसे कानूनी माना गया है.
बंगलादेश की राजधानी ढाका में टैंजिल नामक इलाके में कांडापारे नामक बाजार है. यह वहां का सब से पुराना और बड़ा वेश्यालय है. पिछले 200 सालों से यहां इस तरह का काम होता रहा है. 2014 में इसे नष्ट कर दिया गया था, मगर स्थानीय एनजीओ की सहायता से इसे फिर से शुरू किया गया है.
हाल ही में एक फोटो जर्नलिस्ट वहां घूम कर आई और वहां की जिंदगी का आंखोंदेखा हाल बयान किया. अमूमन 12-14 वर्षों की उम्र की अवस्था में लड़कियां इस पेशे में आती हैं. उस वक्त वे बंधुआ होती हैं. उन्हें किसी तरह का अधिकार नहीं होता. उन बंधुआ लड़कियों की एक मालकिन होती है. वे अपनी मालकिन की गुलाम होती हैं. कम से कम 5 सालों तक उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं होती, न ही उन्हें अपने काम का कोई पारिश्रमिक ही मिलता है.
जब वे अपना कर्ज चुका लेती हैं तो स्वतंत्ररूप से अपना काम कर पाती हैं. उन्हें हक मिल जाता है कि वे अपने रुपए अपने पास रख सकें या फिर किसी ग्राहक से न कह सकें.
ऐसा ही कुछ हाल भारत में भी है. शुरुआत के कई साल यहां भी सैक्सवर्कर का अपनी कमाई पर हक नहीं होता. वह एक गुलाम होती है.
मलाल क्यों
नीलू बताती है, ‘‘शुरुआत में एक ग्राहक से उसे 100 रुपए मिलते थे. इस में से 50 रुपए ही उस के होते. बाकी के 50 रुपए दलाल को देने पड़ते थे. अब उसे इस बात का डर नहीं लगता कि लोग क्या कहेंगे. जब वह मजबूर थी तो किसी ने उस का साथ नहीं दिया. सब ने अपना स्वार्थ देखा. अब भला
वह किसी की परवा क्यों करे? जिसे जो सोचना है, सोचे, वह अपना काम कर रही है, ताकि अपना व बच्चे का पेट पाल सके और बच्चे को शिक्षा दिला सके.’’
यह कहानी सिर्फ नीलू की नहीं, बल्कि ऐसी कितनी ही सैक्सवर्कर्स की है जो परिस्थितिवश आजीविका के लिए इस क्षेत्र में आई हैं. मगर इस बात का अब उन्हें मलाल नहीं. हां, वे जमाने के नजरिए और अपने साथ हो रही ज्यादतियों से परेशान जरूर रहती हैं.
सवाल यह भी उठता है कि इन महिलाओं को खुलेआम किसी को अपना पेशा बताने का हक क्यों नहीं? जिस तरह वकील और डाक्टर अपने नाम के साथ पेशा लिख सकते हैं, उसी तरह ये महिलाएं अपना पेशा बिना डरे, उजागर क्यों नहीं कर सकतीं?
पुलिस की ज्यादती
सैक्सवर्कर सविता कहती है, ‘‘हम मोबाइल के जरिए ग्राहकों से संपर्क करते हैं. कम उम्र में मैं 2-3 हजार रुपए तक कमा लेती थी. इन्हीं पैसों से मैं ने अपनी दोनों बेटियों की शादी अच्छे घरों में कर दी. मगर अब मेरा धंधा बहुत मंदा पड़ गया है. उम्र बढ़ने के साथसाथ काम घटता गया. उस पर ज्यादतियों का सामना भी करना पड़ता है. पुलिस अकसर हमारे अड्डों पर रेड डालती है. अक्तूबर 2016 में हमारे लौज पर पुलिस ने रेड डाली. मैं पकड़ी गई और करीब 22 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रही. अब मुझे इस काम में डर लगने लगा है. ग्राहकों की संख्या भी घटने लगी है.’’
दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ इन महिलाओं का शरीर गिरने लगता है और चेहरे पर भी पहली जैसी रौनक नहीं रह जाती. ऐसे में इन की कमाई कम हो जाती है. इन्हें कई बार साथ रहने के लिए
पार्टनर मिल जाता है मगर शादी नहीं होती. ऐसे में उम्र बढ़ने के बाद ये किसी पुरुष पर आश्रित रहना नहीं चाहतीं. इसलिए समय रहते ही वे अपना घर और बच्चों से जुड़े दायित्त्व पूरे कर लेना चाहती हैं.
जिंदगी बहुत छोटी है और यह अपने वश में भी नहीं. तो फिर जमाने की परवा क्यों की जाए. सभी को हक है कि वे अपने तरीके से जिएं. वक्त और परिस्थितियों ने जिन्हें जिस मुकाम पर खड़ा किया है, वहीं से उन्हें अपनी जिंदगी के रास्ते ढूंढ़ने होते हैं.
कोई भी पेशा गंदा नहीं होता और यदि होता है तो स्त्रीपुरुष दोनों के लिए उस के मापदंड एक होने चाहिए.
सुरक्षित भविष्य के लिए मार्गदर्शन जरूरी
कुछ संस्थाएं हैं जो जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं की सहायता करती हैं. स्वस्ति एक ऐसी ही संस्था है जो फैक्टरी वर्कर्स, सैक्सवर्कर्स और शहरी कमजोर तबके के लोगों के स्वास्थ्य व बेहतर जिंदगी के लिए काम करती है.
इस संस्था से जुड़े रोहन देशपांडे कहते हैं, ‘‘हम अपने प्रोग्राम के तहत सैक्सवर्कर्स को वित्तीय ज्ञान और सुरक्षा देते हैं. हम उन्हें पैसों को खर्च करने और उन्हें भविष्य को सुरक्षित रखने से जुड़ी वित्तीय योजनाओं की जानकारी देते हैं ताकि वे अपने पैसों का समुचित प्रयोग कर सकें. उन्हें अपने आईडैंटिटी कार्ड्स जैसे पैन कार्ड, आधार कार्ड आदि बनवाने में भी सहायता करते हैं.
‘‘यदि कोई सैक्सवर्कर उम्रदराज हो गई है या वह अब यह काम नहीं करना चाहती तो हम उसे वैकल्पिक आय के स्रोतों की जानकारी देते हैं. जरूरी हुआ तो ट्रेनिंग भी दी जाती है. हमारे पास सैल्फहैल्थ गु्रप हैं जिन के जरिए उन्हें आसानी से लोन मिल जाता है और सैक्सवर्कर्स छोटेछोटे बिजनैस की शुरुआत भी कर सकती हैं.’’