गर्भ धारण करना किसी भी महिला के जीवन की सब से बड़ी खुशी होती है. मगर इस दौरान उसे कई सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. आज नारी पर घरबाहर दोनों जिम्मेदारियां हैं. वह घर, बच्चों, औफिस सभी को हैंडल करती है.
आधुनिक युग की नारी होने के नाते कुछ महिलाएं धूम्रपान और शराब आदि का भी सेवन करने लगी हैं. यही वजह है कि गर्भावस्था में उन्हें अपनी खास देखभाल की जरूरत होती है. थोड़ी सी सावधानी बरतने पर मां और शिशु दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं.
पौष्टिक आहार लेना जरूरी
आप मां बनने वाली हैं, तो यह जरूरी है कि आप पौष्टिक आहार लें. इस से आप को अपने और अपने गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल जाएंगे. इन दिनों आप को अधिक विटामिन और खनिज, विशेषरूप से फौलिक ऐसिड और आयरन की जरूरत होती है.
गर्भावस्था के दौरान कैलोरी की भी कुछ अधिक जरूरत होती है. सही आहार का मतलब है कि आप क्या खा रही हैं, न कि यह कि कितना खा रही हैं. जंक फूड का सेवन सीमित मात्रा में करें, क्योंकि इस में केवल कैलोरी ज्यादा होती है बाकी पोषक तत्त्व कम या कह लें न के बराबर होते हैं.
मलाई रहित दूध, दही, छाछ, पनीर आदि का शामिल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन खाद्यपदार्थों में कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन बी-12 की ज्यादा मात्रा होती है. अगर आप को लैक्टोज पसंद नहीं है या फिर दूध और दूध से बने उत्पाद नहीं पचते, तो अपने खाने के बारे में डाक्टर से बात करें.
पेयपदार्थ
पानी और ताजे फलों के रस का खूब सेवन करें. उबला या फिल्टर किया पानी ही पीएं. घर से बाहर जाते समय पानी साथ ले जाएं या फिर अच्छे ब्रैंड का बोतलबंद पानी ही पीएं. ज्यादातर रोग जलजनित विषाणुओं की वजह से ही होते हैं. डब्बाबंद जूस का सेवन कम करें, क्योंकि इन में बहुत अधिक चीनी होती है.
वसा और तेल
घी, मक्खन, नारियल के दूध और तेल में संतृप्त वसा की ज्यादा मात्रा होती है, जो ज्यादा गुणकारी नहीं होती. वनस्पति घी में वसा अधिक होती है. अत: वह भी संतृप्त वसा की तरह शरीर के लिए अच्छी नहीं है. वनस्पति तेल वसा का बेहतर स्रोत है, क्योंकि इस में असंतृप्त वसा अधिक होती है.
समुद्री नमक या आयोडीन युक्त नमक के साथसाथ डेयरी उत्पाद आयोडीन के अच्छे स्रोत हैं. अपने गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन शामिल करें.
गर्भावस्था से पहले आप का वजन कितना था और अब आप के गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं, उस हिसाब से अब आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है, यह डाक्टर बता सकती हैं.
गर्भावस्था में क्या न खाएं
गर्भावस्था के दौरान कुछ खाद्यपदार्थों का सेवन न करें. ये शिशु के लिए असुरक्षित साबित हो सकते हैं. जैसे अपाश्चयुरिकृत दूध (भैंस या गाय का) और उस से बने डेयरी उत्पादों का सेवन गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं है. इन में ऐसे विषाणुओं के होने की संभावना रहती है, जिन से पेट के संक्रमण का खतरा रहता है. कहीं बाहर खाना खाते समय भी पनीर से बने व्यंजनों से बचें.
सभी किस्म के मांस को तब तक पकाएं जब तक कि उस से सभी गुलाबी निशान न हट जाएं. अंडे को भी अच्छी तरह पकाएं. विटामिन और खनिज की अधिक खुराक लेना भी शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है. कोई भी
दवा बिना डाक्टर की सलाह के न लें.
आज बहुत सी महिलाएं कामकाजी हैं, जो प्रैगनैंसी के दौरान भी औफिस जाती हैं और उन की डिलिवरी भी सामान्य होती है. लेकिन आप की प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस हैं, तो सफर में अपना खास खयाल रखें. सफर पर जाने से पहले डाक्टर से जरूर मिल लें.
अधिकतर मामलों में प्रैगनैंसी के दौरान ट्रैवलिंग सेफ होती है, फिर भले ही आप ट्रैवलिंग कार से कर रही हो, बस से या फिर ट्रेन से. लेकिन कुछ प्रिकौशंस को ध्यान में रखें तो आप और आप के बच्चे को किसी भी अचानक होने वाली घटना से बचाया जा सकता है.
प्रैगनैंसी में शुरू के 3 महीने और आखिर के 3 महीने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान सफर करने से बचें. अगर किसी महिला को डाक्टर ने प्रैगनैंसी के हाई रिस्क पर होने की वजह से पूरी तरह बैड रैस्ट की सलाह दी है तो ऐसी महिलाओं के लिए यात्रा करना हानिकारक हो सकता है.
इन बातों को रखें याद
सब से पहले तो किसी भी हालात में शरीर में पानी की कमी न होने दें. अगर आप विमान से सफर कर रही हैं तो नमी का स्तर कम होने के कारण डीहाईडे्रशन की संभावना रहती है. पैर फैलाने के लिए पर्याप्त जगह वाली सीट लें. रैस्टरूम सीट के करीब हो.
अगर आप कार द्वारा लंबी दूरी का सफर तय कर रही हैं, तो सीट बैल्ट पेट के नीचे बांधें. कार की अगली सीट पर बैठें और स्वच्छ हवा के लिए खिड़की खुली रखें. ब्लडप्रैशर सामान्य रखने, ऐंठन और सूजन से बचने के लिए पैरों को फैलाती और मूवमैंट में रखें.
गर्भावस्था के दूसरे फेज यानी 3 से 6 महीने के बीच का समय सुरक्षित होता है. इन महीनों के दौरान मौर्निंग सिकनैस, अधिक थकान, सुस्ती जैसी शिकायतें कम ही होती हैं.
ऐसी जगह जाने से बचें जहां किसी संक्रमित बीमारी का प्रकोप फैला हो.
गर्भावस्था के 14 से 28 सप्ताहों के बीच ही यात्रा करें.
सफर के दौरान डाक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए दवा साथ रखें. डाक्टर के पेपर्स और उन का फोन नंबर हमेशा साथ रखें ताकि आपातकाल में उस का उपयोग कर पाएं.
सफर में ज्यादा भागदौड़ न करें, क्योंकि आप जितनी अशांत रहेंगी, आप के बीमार होने की आशंका उतनी ही अधिक होगी.
नशीले पदार्थों से दूर रहें
गर्भावस्था में महिलाएं नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहें. साथ ही उन दवाओं से भी परहेज करें, जिन में ड्रग्स की मात्रा अधिक हो. यदि इस अवस्था में महिला शराब, सिगरेट, तंबाकू, पान, बीड़ी या गुटका का सेवन करती है तो इस का गर्भ में पल रहे शिशु पर प्रतिकूल असर पड़ता है. उस में शारीरिक दोष, सीखने की अक्षमता और भावनात्मक समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
गर्भावस्था के शुरू के 10 हफ्तों के बाद शिशु के शरीर का विकास तेजी से होने लगता है और इस में नशीले पदार्थों के सेवन का असर इतना खतरनाक पड़ता है कि उस के नर्वस सिस्टम के साथ आंखें भी खराब हो सकती हैं. इस के अलावा बच्चा ऐब्नौर्मल पैदा हो सकता है, समयपूर्व प्रसव भी हो सकता है, जिस से शिशु पर जान का जोखिम बना रहता है.
कैफीन की मात्रा भी कम करें. प्रतिदिन 200 मिलीग्राम से अधिक कैफीन लेने से गर्भपात और कम वजन वाले शिशु के जन्म का जोखिम बढ़ जाता है. इसलिए प्रतिदिन 2 कप इंस्टैंट कौफी या 2 कप चाय से अधिक का सेवन न करें.
अगर आप मांस नहीं खाती हैं, तो अनाज, साबूत व पूर्ण अनाज, दालें और ड्राईफू्रट्स आप के लिए प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. शाकाहारियों को प्रोटीन के लिए प्रतिदिन 45 ग्राम ड्राईफू्रट्स और 2/3 कप फलियों की आवश्यकता होती है. 1 अंडा, 14 ग्राम ड्राईफू्रट्स या 2 कप फलियां लगभग 28 ग्राम मांस के बराबर मानी जाती हैं. अगर मांसाहारी हैं तो मछली, चिकन आदि प्रोटीन के बेहतर स्रोत हैं.