पिछले कुछ सालों से महिलाओं के बीच पीने का चलन तेजी से बढ़ा है, जिस की एक खास वजह है, शराब की कंपनियों का शराब पीने वाली महिलाओं को आधुनिक, आजाद व पुरुषों के समतुल्य प्रचारित करना. बीयर, शैंपेन आदि तो पुराने पड़ चुके शगल हैं, अब तो शराब के ढेरों ब्र्रैंड बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं.

महिलाओं की पसंद में भी तबदीली आ गई है. पहले शराब भारत में इक्केदुक्के होटलों में ही मुहैया होती थी, लेकिन अब महिलाओं के शौक को देखते हुए तमाम होटलों, बारों, पबों, डिस्कोथिक आदि में शराब के ढेरों ब्रैंड आसानी से उपलब्ध हैं. वोदका, वाइन, व्हिस्की आदि के कौकटेल कालेज की छात्राओं व गृहिणियों में काफी प्रचलित हो रहे हैं. वे किट्टी पार्टियों, शादी की सालगिरह आदि मौकों पर पीनेपिलाने से कतई नहीं हिचकतीं.

शराब सेवन की पुरानी परंपराओं में पहले शराब पीने वाली महिलाएं 2 विपरीत वर्गों से संबंध रखतीं. पहले वर्ग में झुग्गी बस्तियों में रहने वाली दलित, वेश्याएं आती हैं. जिन के लिए नशा आजीविका का साधन रहा है, तो दूसरे वर्ग में पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित और भौतिक सुखसुविधाओं की प्रचुरता के चलते पेशेवर समाज की महिलाएं आती हैं, जो लेट नाइट पार्टियों अथवा पति के साथ ऐग्जीक्यूटिव पार्टियों में पीने को स्टेटस सिंबल समझती हैं. अब एक तीसरा नया वर्ग कालेज जाने वाली युवतियों का है, जो देर रात तक डांस फ्लोर पर थिरकने की चाह के चलते नशे के आगोश में घिरती जा रही हैं.

इस विषय में एसएमएस हौस्पिटल, जयपुर की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. शकुंतला यादव कहती हैं, ‘‘पेशेवर वर्ग की महिलाओं में पीना स्टेटस सिंबल है. वे पीने से खुद को पुरुष के बराबर का समझती हैं. भौतिक सुख की प्रचुरता के कारण जब पुरुष पी सकता है, तो वे क्यों नहीं? यही धारणा उन्हें पीने के लिए प्रेरित कर रही है.’’

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