छठी कक्षा का छात्र मोहित घर से लापता हो गया. दूध लेने निकला तो वापस घर न आया. 1 सप्ताह बाद एक सज्जन मोहित को घर छोड़ गए. पूछताछ करने पर पता चला कि वह खुद ही घर से भागा था. दरअसल, परीक्षा में उस के नंबर कम आए थे. पिता के खौफ को ?ोलना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. अत: वह घर से भाग गया.
नन्हा बंटू कभी गले में कुछ फंसने की शिकायत करता है तो कभी पेट की. हमेशा गुमसुम और उखड़ाउखड़ा सा रहता है. खाता भी ठीक से नहीं है. छोटीछोटी बातों पर रोने लगता है. डाक्टरी जांच में सब ठीक निकला. दरअसल, ये दोनों बच्चे अपने अभिभावकों के सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार हैं.
क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डाक्टर मैडलिन लेविन ने अपनी पुस्तक ‘प्राइस औफ प्रिवलिन’ में लिखा है कि जो पेरैंट्स अपनी सफलता के लिए बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव डालते हैं वे अनजाने ही उन्हें स्ट्रैस व डिप्रैशन का शिकार बना देते हैं. उन की नजर में ये पेरैंट्स हमेशा अपने बच्चों को, दूसरों से आगे देखना चाहते हैं. चाहे पढ़ाई हो, खेल हो या कोई और ऐक्टिविटी वे हर क्षेत्र में बच्चों को पुश करते हैं. वास्तविकता से दूर जब ऐसा बच्चा मातापिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वह दुख, मायूसी व दुविधा की स्थिति का सामना करता है.
डाक्टर लेविन के अनुसार, संपन्न व धनी परिवारों के बच्चों में साधारण परिवारों के बच्चों के मुकाबले डिप्रैशन व चिंता की स्थिति 3 गुना ज्यादा देखी जाती है. ऐसे बच्चे गलत रास्ते पर जा सकते हैं. वे ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं. कभीकभी तो बच्चे स्वयं से ही नफरत करने लगते हैं. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए जिस वातावरण की जरूरत होती है वह उन्हें नहीं मिल पाता. एक के बाद एक क्लासेज उन की दिनचर्या बन जाती है. स्कूल के बाद कोचिंग, फिर क्लास के होमवर्क के बीच उन्हें अपनी क्रिएटिविटी जानने या टेलैंट पहचानने व उसे निखारने का बिलकुल समय नहीं मिल पाता.
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