1972 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिका के कैनेथ एरो ने 1963 में ही चेतावनी दे दी थी कि स्वास्थ्य सेवा को बाजार के हवाले कर देना आम लोगों के लिए घातक साबित होगा.
इस चेतावनी का दुनियाभर में जो भी असर हुआ हो लेकिन हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं का स्वास्थ्य उद्योग में तबदील हो जाना क्या और कैसेकैसे गुल खिला रहा है, इस की ताजी बानगी बड़े वीभत्स, शर्मनाक और अमानवीय तरीके से बीती 1 दिसंबर को सामने आई.
दिल्ली के शालीमार बाग इलाके में स्थित मैक्स सुपर स्पैशलिटी हौस्पिटल के डाक्टरों ने एक दंपती को उन के जुड़वा बच्चों को पोलिथीन में पैक कर यह कहते थमा दी थी कि ले जाइए, ये दोनों मर चुके हैं.
जानना और समझना जरूरी है कि मैक्स सुपर स्पैशलिटी अस्पताल के डाक्टरों ने किस तरह की लापरवाही और अमानवीयता दिखाई थी जिस ने पूरे देश को झिंझोड़ कर रख दिया था. हालांकि महंगे पांचसितारा प्राइवेट अस्पतालों में होती आएदिन की लूटखसोट का यह पहला या आखिरी मामला नहीं था जिस ने सहज ही कैनेथ एरो की चेतावनी याद दिला दी, बल्कि ऐसा हर समय देश में कहीं न कहीं हो रहा होता है. और डाक्टरों को लुटेरा व हत्यारा तक कहने में लोगों को कोई संकोच या ग्लानि महसूस नहीं होती.
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जबकि जिंदा था बच्चा
शिकायतकर्ता पति या पिता आशीष की मानें तो उस ने 6 महीने की गर्भवती पत्नी वर्षा को उक्त अस्पताल में भरती किया था. भरती करने के बाद मैक्स के डाक्टरों ने गर्भस्थ जुड़वा शिशुओं के जिंदा रहने यानी बचने की संभावना महज 10-15 फीसदी ही बताई थी. निम्न मध्यवर्गीय आशीष यह सुन कर मायूस और परेशान हो उठा.
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