सवाल
मैं एक युवक से बहुत प्यार करती थी और वह भी मुझे उतना ही चाहता था. मगर किसी बात के कारण हमारी बात 2 साल नहीं हो पाई, लेकिन हम दोनों एकदूसरे को नहीं भूल पाए. एक अन्य युवक, जो 2 साल से मुझे प्यार करता है और मैं भी उसे मन ही मन चाहने लगी हूं. लेकिन उसे मैं अपने पहले प्यार की तरह नहीं चाहती हूं. मगर इस युवक से मेरे घर वाले शादी के लिए मान गए हैं. अब जब शादी होने वाली है तो पहले वाला युवक मेरी जिंदगी में दोबारा आ गया है. मैं उस से अब भी प्यार करती हूं और अब वह भी मुझ से शादी करने को कह रहा है. बताएं मैं क्या करूं?
जवाब
वास्तव में आप दोनों को ही धोखा दे रही हैं. जिन कारणों से आप का पहले युवक से मनमुटाव हुआ था और 2 साल तक बात नहीं हुई, क्या वे कारण दोबारा उत्पन्न नहीं होंगे? आप अपने पेरैंट्स से बात करें. यह गुड्डेगुड्डी का खेल तो है नहीं कि चलो वह नहीं, तो दूसरा फिट हो जाएगा. सोचसमझ कर ही निर्णय लें.
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प्यार की बदलती परिभाषा
21 वर्षीया सीमा होंठों पर प्यारी सी मुसकान लिए और हाथों में गुलाब का बड़ा सा गुलदस्ता लिए दिल्ली के आईटीओ बस स्टैंड पर किसी का इंतजार कर रही है. उसे देख यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह किस का इंतजार कर रही है. भले यह वैलेंटाइन डे की शाम न हो फिर भी उस के हावभाव कह रहे हैं, वह अपने दिलदार का इंतजार कर रही है. सीमा के हाथ में खूबसूरत से लिफाफे में बंद एक बड़ा डब्बा भी है, जो शायद उस के बौयफ्रैंड के लिए बर्थडे गिफ्ट होगा.
पिछले कुछ सालों में सीमा जैसी युवतियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. हालांकि प्यार चाहे आदिम युग में किया गया हो या इंटरनैट युग में, वह कभी नहीं बदला. लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह हर क्षेत्र में आमूलचूल ढंग से परिवर्तन देखने को मिले हैं, प्यार भी इन बदलावों से अछूता नहीं है. आज इजहार का तरीका बदल गया है, इकरार के अंदाज बदल गए हैं. इंटरनैट युग में हर चीज तुरतफुरत वाली हो गई है. ऐसे में भला प्यार कैसे पीछे रह सकता था? अब न कोई लड़का प्रेम प्रस्ताव देने के लिए कई दिनों का इंतजार करता है और न ही कोई लड़की उस की हामी में वक्त लगाती है.
अगर कहा जाए कि आज की तारीख में प्यार पहले की तुलना में ज्यादा वास्तविक हो गया है तो कतई गलत नहीं होगा. जी, हां. लैलामजनू, हीररांझा जैसे प्यार अब बमुश्किल ही देखने को मिलते हैं. इस का मतलब यह कतई नहीं है कि प्यार पहले के मुकाबले अब लोगों में कम हो गया है या फिर अब वादों और इरादों की जगह खत्म हो गई है. दरअसल, प्यार अब गिव ऐंड टेक की पौलिसी बन चुका है. बेशक ये शब्द थोड़े रूखे हैं लेकिन वास्तविकता यही है. ऐसा नहीं है कि यह बदलाव एकाएक देखने को मिल रहा है. पिछले कुछ सालों में धीरेधीरे चल कर यह बदलाव यहां तक पहुंचा है.
इस में सब से बड़ी वजह महिलाओं का आत्मनिर्भर होना है. इन बातों को बहुत समय नहीं गुजरा है जब प्रेमी जोड़े एकसाथ बाहर घूमने जाया करते थे, लड़कियां आमतौर पर लड़कों पर पूरी तरह निर्भर होती थीं. यहां तक कि कहां घूमने जाना है, क्या खाना है जैसे सारे फैसले लड़के ही करते थे. मगर अब ऐसा नहीं है.
आज लड़कियां पढ़ीलिखी हैं, समझदार हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण ही अब वे किसी और पर फैसले नहीं छोड़तीं और न ही दूसरे के फैसले खुद पर लदने देती हैं. कहीं जाना हो, कुछ खाना हो या कोई तोहफा खरीदना हो तो वे मन मार कर नहीं रहती हैं. वे बिंदास हो कर इन बातों को अपने बौयफ्रैंड से साझा करती हैं.
यही कारण है कि अब प्यार बेफिक्री का नाम भी हो गया है. लड़कियों में बढ़ती आत्मनिर्भरता के कारण लड़कों में भी बेफिक्री की आदत आ गई है. बदलते दौर के प्यार के कारण लड़कों में बचपना भर गया है. अब तक माना जाता रहा है कि जिंदगी से जुड़े तमाम फैसले सिर्फ लड़के को ही करने होते हैं. आखिर वह भविष्य में घर का मुखिया बनता है. इसलिए जवानी के दिनों से ही उसे गंभीर होना होता है. यही वजह है कि वह हमेशा अपने संबंधों में भी गंभीर ही रहता था. लेकिन लड़कियों के फैसले लेने की ताकत ने लड़कों को बेफिक्र कर दिया है. ऐसा नहीं है कि लड़कियां परेशानियों और फैसले करने के बोझ तले दबती जा रही हैं. लड़कों ने इस संबंध में लड़कियों का हाथ बराबरी देने के लिए थामा है.
अब अजय को ही लें. 26 साल का अजय 2 साल बाद अपनी गर्लफ्रैंड रैना से शादी करने वाला है. रैना एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. उस की मासिक आय इतनी है कि एक परिवार न सिर्फ गुजरबसर कर सकता है बल्कि ऐश की जिंदगी भी जी सकता है. अजय को आर्थिक रूप से घर के लिए ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. रैना महत्त्वाकांक्षी है. लेकिन जब से उस की मुलाकात अजय से हुई है तब से रैना की जिंदगी में तमाम बदलाव हुए हैं.
पहले जहां काम के चलते रैना हमेशा परेशान दिखती थी, वहीं अब प्यार ने उस में मिठास भर दी है. उन की जिंदगी से जुड़े सारे फैसले दोनों मिल कर करते हैं. 2 साल बाद शादी का फैसला भी दोनों ने मिल कर किया है. अजय तो अपने भविष्य को ले कर बेफिक्र हुआ ही है, साथ ही रैना को भी अपनी आजादी, अपने फैसलों को लेने में कोई कठिनाई नहीं होती. वह जानती है कि अजय उस का हर मोड़ पर साथ देगा. इस संबंध में वह बिलकुल बेफिक्र है.
यह बात और है कि अब भी ऐसे प्रेमी युगलों की कमी नहीं है जहां फैसले आमतौर पर लड़के ही करते हैं. बावजूद इस के, यह कहने में हमें जरा भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि प्यार पहले की तुलना में ज्यादा वास्तविक हो गया है. अब प्यार हवाहवाई नहीं रहा. अब प्रेमी जोड़े वादे करने से हिचकते हैं. क्यों? क्योंकि वे ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहते जो उन्हें झूठा साबित करे. अगर कोई वादा करते हैं तो उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते हैं.
वास्तव में वे अपनी भावनाओं का सम्मान करते हैं. इसलिए दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से डरते हैं. कहने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि पहले के लोग दूसरों की भावनाओं का सम्मान नहीं करते थे. असल में पहले प्यार आदर्शवादी किस्म का हुआ करता था. अब वह आदर्शवादी ढांचा टूट चुका है.
लोग अब अपनी जिंदगी को महत्त्व देते हैं. वे नहीं चाहते कि उन के द्वारा लिया गया कोईर् भी फैसला उन के लिए मुसीबत बन जाए. इसलिए कुछ समय साथ गुजारने के बाद अगर वे एकदूसरे के साथ रहना नापसंद करें तो एकदूसरे को हंसतेहंसते अलविदा कह देते हैं. यह आदर्शवादी किस्म का प्यार नहीं है. आप कह सकते हैं यहां तो बात वही हो गई कि तू नहीं कोई और सही, और नहीं कोई और सही…लेकिन समझने की बात यह है कि दूसरों के सामने मिसाल बनने के लिए खुद को सूली पर चढ़ाना सही नहीं है. कुल मिला कर कहने की बात यह है कि आज की तारीख में लड़केलड़कियां दोनों कामकाजी हो गए हैं और बदलती जीवनशैली ने प्यार की परिभाषा भी बदल दी है.
हक चाहती हैं लड़कियां
यह बात कहने और सुनने में बड़ी अजीब लगती है मगर सच यही है कि लड़कों ने लड़कियों को हमेशा दबा कर रखा है. अब से पहले कभी लड़कियों को बराबरी का दरजा नहीं दिया. फिर चाहे वे दोनों एकदूसरे को बेइंतहा क्यों न चाहते रहे हों. एक बार लड़की ने किसी का हाथ थामा, उसी क्षण से उसे अपने फैसले करने का हक जाता रहा. लड़कियों की इच्छाओं को दरकिनार कर दिया जाता था. जी हां, इस किस्म के परिवेश को अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है. लड़की भी लड़के की कही हर बात को पत्थर की लकीर समझ कर मान लिया करती थी.
लेकिन अब माहौल में खासा बदलाव आया है. लड़कियां हां और ना में जवाब देने लगी हैं, अपने फैसले सुनाने लगी हैं. यहां तक कि अगर कोई लड़का उसे बीच चौराहे पर छोड़ने का फैसला कर ले तो वे उसे रोकने की जहमत भी नहीं उठातीं. सवाल है, ऐसा क्यों है? क्या लड़कियां अब भावुक नहीं रहीं? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. असल में लड़कियां अब दूसरों के फैसलों पर सिर्फ हामी नहीं भरती हैं. प्यार के मसले में भी यह बात सौ फीसदी लागू हो रही है.
रिश्तों में पनपती साफगोई
ताज्जुब होता है कि कुछ साल पहले तक अगर लड़की को उस का बौयफ्रैंड छोड़ने की बात तक कहता था तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो जाता था. लेकिन अब स्थिति ईद का चांद हो गई है. असल में अब रिश्तों में पहले से ज्यादा साफगोई देखने को मिलती है. कोई भी किसी को भी गले की फांस नहीं बनाना चाहता. यही बात लड़कियों के साथ भी है. अगर वह किसी को छोड़ना चाहती है तो बेझिझक एक फोन कौल से, मैसेज से या फिर मेल के जरिए अपने दिल की बात उस तक पहुंचा देती है.
कुछ लोग कह सकते हैं कि अब प्यार मजाक बन कर रह गया है. लोगों में सहनशीलता नहीं है. लोग संवेदनाहीन हो रहे हैं. लोगों में अपने प्यार को बांधे रखने की ताकत खत्म हो रही है. जबकि यह हकीकत नहीं है. अब प्यार में खुलापन आ गया है. प्यार पहले से भी ज्यादा नाजुक हो गया है. जैसा कि पहले ही जिक्र किया गया है कि कोई भी किसी की भी गले की फांस नहीं बनना चाहता है. लड़कियां अब ऐसे लड़के को एक दिन भी बरदाश्त नहीं कर सकतीं जो उन्हें अपने संबंध में बराबरी नहीं दे सकता. यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि लड़कियों को प्यार भीख में नहीं चाहिए. लड़कियां इस बात को सहज ही समझ जाती हैं कि कौन उसे प्यार करता है और कौन उस का इस्तेमाल कर रहा है. आज प्यार का सीधा सा सिद्धांत है, प्यार करोगे तो प्यार पाओगे. लड़कियां अब किसी एक लड़के को अपना सब कुछ नहीं समझ लेतीं. वे आजादीपसंद हो चुकी हैं.
असल में एक बार रिश्ते में बंध जाने के बाद लड़के को लगता है कि उस की प्रेमिका से जुड़े सारे फैसले करने का हक सिर्फ उसे ही है. लेकिन लड़कियों को अब अपनी आजादी का एहसास हो गया है. वे न तो प्यार भीख में लेती हैं और न ही आजादी. लड़कियां इस बात को भलीभांति समझ गई हैं कि आजादी और प्यार दोनों में ही उन का हक है. इन में किसी एक को ज्यादा महत्त्व देना, प्यार से बेमानी होगी.
प्यार एक मीठा एहसास है. प्यार में एकदूसरे के लिए जान लुटाने का माद्दा होता है. लेकिन वहीं प्यार का एक पहलू यह भी है कि इस में बराबरी और सम्मान का एहसास महत्त्वपूर्ण हो गया है. महिलाओं की बदलती आर्थिक स्थिति ने उन्हें यह फैसला करने का हक दिया है कि उन्हें किस के साथ बंधना है, किस के साथ रहना है. हैरानी की बात तो यह है कि लड़कियों के दोस्तों की सूची कितनी लंबी होगी, यह फैसला भी एक जमाने में लड़के ही किया करते थे. मगर अब कहानी पलट गई है. समझौता सिर्फ एक पर आश्रित बन कर नहीं रह गया है. क्योंकि प्यार अब भीख में लीदी जाने वाली चीजभर नहीं है. प्यार जरूरत भी है और चाहत भी.
क्या कहते हैं लड़कियों जैसे ये लड़के…
यह मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस हो सकता है और राजधानी दिल्ली का कनौट प्लेस भी. यह कोलकाता का सौल्ट लेक हो सकता है और हैदराबाद का बंजारा हिल्स भी. आप को ऐसे दृश्य कहीं भी देखने को मिल सकते हैं जब आप को भ्रम हो जाए कि लड़का कौन है और लड़की कौन है. एक जैसे जूते, एक जैसे ओवरकोट, एक जैसा हेयरस्टाइल. यहां तक कि पैंट और शर्ट में भी अब बहुत फर्क नहीं बचा. जी हां, यह यूनीसैक्स का दौर है. जी हां, यह बराबरी की एक नई दुनिया है.
कुछ लोगों को लग सकता है लड़कों का पतन हो रहा है. कुछ पुराने खयालों के मर्दवादी मन कह सकते हैं आजकल के लड़के तो मर्द जाति के नाम पर धब्बा हैं. लेकिन गौर से सोचें, ध्यान से देखें तो यह व्यवहार में अब दिखने लगी वह बराबरी है जिस की कहे, अनकहे ईमानदारी से सदियों से बातें की जाती रही हैं. शायद यह पहला ऐसा दौर है जब लड़के व लड़कियों में बहुत सारी चीजें एक जैसी होने लगी हैं या फिर यों कहा जाए कि जिंदगी में अब बड़ी सहजता आ गई है.
अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता जब पहनावा, बोलनेचालने का ढंग और यारदोस्तों के साथ मौजमस्ती के तमाम रंग लड़के और लड़कियों के बिलकुल अलहदा होते थे. सच बात तो यह थी कि खानेपीने में भी लड़के और लड़कियों का फर्क साफ दिखता था. पिछली सदी के 70, 80 और किसी हद तक 90 के दशक तक लड़के चाटपकौडि़यां खाने से झिझकते थे. लड़कियों की तरह सूंसूं करते मिर्च की चटनी खाते और उंगलियां चाटते लड़के नहीं दिखते थे. गोलगप्पे, पानीपूरी, दहीभल्ले इन से लड़के दूर रहते थे मगर अब बहुतकुछ बदल गया है. लड़के लड़कियों के साथ चाटपकौडि़यों की दुकान में दिखने लगे हैं.
बोलना और यहां तक कि चलना भी एक जमाने में लड़कियों और लड़कों के लिए पूरी भिन्न सीख हुआ करती थी. लड़कियों को बड़े से बड़े संकट में भी अदब से और अव्यक्त शब्दों में मदमाते हुए चलने की सीख दी जाती थी और लड़कों को तेजतेज, बेफिक्र अंदाज में कदम बढ़ाने की सीख दी जाती थी. आज लड़कियां भी लड़कों की तरह लंबेलंबे डग भरते दिख जाएंगी. वे भी उन्हीं की तरह गला फाड़ कर चिल्लाने में गुरेज नहीं करतीं जबकि एक जमाने में ऊंची आवाज में लड़कियों का बोलना बुरा समझा जाता था. माना जाता था ऐसी लड़कियों में लड़कीपन नहीं रहता…तो बदलते दौर में बहुतकुछ बदल रहा है. ये जो लड़कियों जैसे लड़के दिख रहे हैं या लड़कों जैसी लड़कियां दिख रही हैं, उन्हें हम मजाक में कुछ भी कहें, लेकिन सचाई यही है कि यह बदलाव का एक व्यावहारिक व दिखने वाला तरीका है.
VIDEO : फंकी लेपर्ड नेल आर्ट
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