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साल के आखिरी महीने यानी दिसंबर 2017 में दिल्ली से सटे गौतमबुद्घनगर के ग्रेटर नोएडा में गौड़ सिटी सोसायटी में 15 वर्षीय किशोर बेटे ने अपनी मां और बहन की सिर्फ इस बात पर हत्या कर दी कि उसे पढ़ाई पर मां की डांट और छोटी बहन को मिल रहे ज्यादा प्यार पर बहुत गुस्सा आता था. जरा सोचिए, क्या एक 15 साल का मासूम मन इतना हिंसक हो सकता है कि अपने ही घर में यह खूनी खेल खेले. सच तो यही है, यही हुआ है. लेकिन सवाल है, क्यों? पेन स्टेट शेनंगो में मानव विकास और परिवार पर किए गए अध्ययन के सहयोगी प्रोफैसर विलियम मैकग्यूगन के मुताबिक, जो मातापिता अपने बच्चों को नजरअंदाज करते हैं वे बच्चे हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं. और यह बात दुनिया के हर देश, हर परिवार व समाज पर लागू होती है. आज परिवार और पेरैंट्स के सामने भी यही समस्या सब से बड़ी बन कर उभरी है कि उन के बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. गौड़ सिटी वाले मामले में भी जाहिर है बच्चे को लगता था कि उस की मां उसे नजरअंदाज करती थी. इस का मतलब उपरोक्त अध्ययन बिलकुल सही इशारा कर रहा है कि अगर बच्चे पेरैंट्स द्वारा नजरअंदाज किए जाएंगे तो इस के परिणाम हिंसक होंगे.
पेरैंट्स की गलती अभिभावक और बाल मनोवैज्ञानिक तकनीक, स्मार्टफोन और इंटरनैट के सिर सारा दोष यह कह कर मढ़ देते हैं कि जब से ये गैजेट और इंटरनैट बच्चों के हाथ आया है, तभी से बच्चे हिंसक व गुस्सैल होते जा रहे हैं. हो सकता है किसी हद तक यह बात सच हो लेकिन फिर भी यह अधूरा सच होगा क्योंकि जब बच्चे का जन्म होता है और वह धीरेधीरे बढ़ता है तब तक उसे तकनीक और इंटरनैट की दुनिया से कोई वास्ता नहीं होता. लेकिन जब वह खिलौने, चित्र और आवाजें पहचानने लगता है तो अभिभावक उस के साथ समय बिताने के बजाय उसे टीवी के कार्टून्स, इंटरनैट के वीडियो और स्मार्टफोन के संसार से परिचित करा देते हैं. हां, सिर्फ परिचय के लिए ही नहीं कराते, बल्कि दैनिक स्तर पर उन्हें उस की लत लगा देते हैं ताकि उन्हें अपने कामों की फुरसत मिल सके.
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