मेरी एक रिश्तेदार की शहर में बड़ी कोठी है. मैं उस से मिलने उन के घर गई थी. एक सफाईकर्मी उन के घर काम कर रहा था. पहले तो उस ने सारे टौयलेट की सफाई की. फिर उन के घर की नालियों की. जब वह बाथरूम में जाने को होता तो आवाज देता, ‘‘बीबीजी, परदे खिसका लें.’’

मेरी रिश्तेदार जल्दी से परदे खिसकाती, तब वह सफाई करता यानी उसे पूरे घर में किसी चीज को छूने का कोई अधिकार नहीं था. मेरी रिश्तेदार उसे लगातार डांटे जा रही थी, क्योंकि वह 2 दिन से नहीं आया था.

‘‘बीबीजी, रमा बाई तो आ रही थी न?’’ सफाईकर्मी ने सिर खुजलाते हुए कहा, ‘‘ उस से सफाई करा लेतीं.’’

‘‘अब रमा बाई टौयलेट या नालियों की सफाई थोड़े न करेगी. उन की सफाई मैला साफ करने वाला ही तो करेगा,’’ मेरी रिश्तेदार ने कहा.

आखिर में जब वह जाने लगा तो बासी खाना पौलिथीन में बांध उस के हाथ पर ऊपर से यों टपकाया ताकि छू न जाए. इस बीच रमा बाई उन सारी जगहों पर पोंछा लगा रही थी जहां से वह गुजरा था.

बदलाव का दौर

कुछ देर वहां बैठ मैं वापस चली आई पर मैला साफ करने वाला वाक्य बहुत देर तक जेहन पर हथौड़े बरसाता रहा. 2 दिनों से उन की नालियों और टौयलेट की सफाई नहीं हुई थी. न तो उन्होंने खुद यह काम किया और न उन के यहां काम करने वाली बाई ने. आखिर अन्य जातियां ऐसी सोच क्यों रखती हैं कि यह काम मैला साफ करने वाला का ही है? गंदगी भले खुद की हो.

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