जूही का मन अचानक 10 वर्षों बाद नीरव को देख कर अशांत हो उठा था. 10 वर्षों पहले का वाकेआ उस की आंखों के सामने तैरने लगा. ठंड की भरी दोपहरी में हाथपैर सुन्न पड़ते जा रहे थे. वह तो अपनी सहेली के घर एक छोटे से फंक्शन में आई थी पर यों अचानक नीरव यहां टकरा जाएगा, उस ने कभी सोचा भी न था.
जूही न चाहते हुए भी नीरव के विषय में सोचने को मजबूर हो गईर् थी. ‘क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था वह? क्यों मुझे एहसास कराया उस ने अपने प्यार का? क्यों कहा था कि मैं हमेशा साथ दूंगा? आखिर क्या कमी थी मुझ में? ‘कितने झूठे हो न तुम... डरपोक कहीं के.’ आज भी इस बात को सोच जूही के चेहरे पर दर्द की गहरी रेखा उभर गई थी, पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल जेहन में आने लगे कि वह मुझे क्यों छोड़ गया था? आज क्यों फिर मुझ से मिलने आ गया? यों सामने आए सौरव को देखते ही मन में बेचैनी और सवालों की झड़ी लग गई थी.
जूही ने दोबारा उस कागज के टुकड़े को खोला और पढ़ा. नीरव ने केवल 2 लाइनें लिखी थीं, ‘प्लीज, एक बार बात करना चाहता हूं. यह मेरा मोबाइल नंबर है... हो सके तो अपना नंबर एसएमएस कर दो.’
यही पढ़ कर जूही बेचैन थी और सोच रही थी कि अपना मोबाइल नंबर दे या नहीं. क्या इतने वर्षों बाद कौल करना ठीक रहेगा? इन 10 वर्षों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं, किस हाल में हूं. कभी कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की उस ने. फिर क्यों वापस आया है? सवाल कई थे पर जवाब एक का भी नहीं था.