कालेज शुरू हुए कुछ दिन बीते थे मगर फिर भी पहले साल के विद्यार्थियों में हलचल कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. युवा उत्साह का तकाजा था और कुछ कालेजलाइफ का शुरुआती रोमांच भी था. एक अजीब सी लहर चल रही थी क्लास में, दोस्ती की शुरुआत की. हालांकि दोस्ती की लहर तो ऊपरी तौर पर थी, लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं प्यार वाली लहरों की भी हलचल जारी थी. दोस्ती की लहर तो आप ऊपरी तौर पर हर जगह देख सकते थे, लेकिन प्यार की लहर देखने के लिए आप को किसी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ सकती थी. कनखियों से देखना, इक पल को एकदूसरे को देख कर मुसकराना, ये सब आप खुली आंखों से कहां देख सकते हैं. जरा ध्यान देना पड़ता है, हुजूर. मैं खुद कुछ उलझन में था कि वह मुझे देख कर मुसकराती है या फिर मुझे कनखियों से देखती है. खैर, मैं ठहरा कवि, कहानीकार. मेरे अतिगंभीर स्वभाव के कारण जो युवतियां मुझ में शुरू में रुचि लेती थीं वे अब दूसरे ठिठोलीबाज युवकों के साथ घूमनेफिरने लगी थीं. यहां मेरी रुचि का तो कोई सवाल ही नहीं था, भाई, मेरे लिए भागते चोर की लंगोटी ही काफी थी, लेकिन मेरे पास तो उस लंगोटी का भी विकल्प नहीं छूटा था.
लेकिन कुछ लड़कों का कनखियों से देखने व मुसकराने का सिलसिला जरा लंबा खिंच गया था और प्यार का धीमाधीमा धुआं उठने लगा था, अब वह धुआं कच्चा था या पक्का, यह तो आग सुलगने के बाद ही पता चलना था. खैर, उन सहपाठियों में मेरा दोस्त भी शामिल था. गगन नाम था उस का. वह उस समय किसी विनीशा नाम की लड़की पर फिदा हो चुका था. दोनों का एकदूसरे को कनखियों से देखने का सिलसिला अब मुसकराहटों पर जा कर अटक चुका था. मैं इतना बोरिंग और पढ़ाकू था कि मुझे अपने उस मित्र के बारे में कुछ पता ही नहीं चल सकता था. खैर, उस ने एक दिन मुझे बता ही दिया.