एक व्यावसायिक बैंक मुख्यत: दो प्रकार के काम करता है. बैंक अपने ग्राहकों को लोन देता और उनसे जमा राशियां स्वीकार करता है. ऐसा करते समय बैंक विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश भी करता है. बैंक अमूमन व्यक्तियों व कंपनियों को धनराशि उधार देता है लेकिन उधार बांटी गई उस राशि में से कुछ धनराशि एनपीए (नौन परफौर्मिंग असेट्स) बन जाती है. सरल शब्दों में कहें तो जब ग्राहक बैंक का कर्ज समय पर नहीं चुकाते हैं तो वह फंसा हुआ कर्ज एनपीए में तब्दील हो जाता है.

तीन मासिक किश्त अटकी तो एनपीए हो जाता है लोन एकाउंट

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार बैंक को जब किसी परिसंपत्ति (असेट्स) से आय अर्जित होना बंद हो जाती है तो उसे एनपीए मान लिया जाता है. उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति ने कार खरीदने के लिए बैंक से औटो लोन लिया. अगर वह व्यक्ति किसी कारणवश लगातार तीन महीने तक मासिक किश्तों का भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक को अपने बही-खाते में यह राशि एनपीए के रूप में दर्ज करनी होगी. बैंकों का एनपीए दो स्थिति में बढ़ता है. पहली, जब अर्थव्यवस्था में कारोबार सुस्त रहता है. दूसरी, जब कोई व्यक्ति या कंपनी जानबूझकर बैंक का कर्ज नहीं चुकाते हैं. जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले को ‘विलफुल डिफौल्टर’ कहते हैं. इस तरह लगातार 90 दिन तक मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान न होने पर लोन खाता एनपीए बन जाता है.

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क्या हैं स्पेशल मेंशन अकाउंट?

कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है, इसकी पहचान करने के लिए आरबीआई ने नियम बनाए हैं. इसके तहत व्यावसायिक बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर चिन्हित करना होता है. उदाहरण के लिए अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 1 से 30 दिन तक नहीं होता है तो उसे एसएमए-0 कहा जाता है. अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 31 से 60 दिन तक न हो तो इसे एसएमए-1 कहा जाता है. इसी तरह अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 61 से 90 दिन तक न हो तो उसे एसएमए-2 कहा जाता है. इस तरह 90 दिन पूरे होने के बाद बैंक को उसे एनपीए घोषित करना होता है.

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