सियाने टक बिजनैस स्कूल हैनोवर से एमबीए किया तो भारी पैकेज के साथ गूगल ने उसे अपने यहां नौकरी दे कर उस के वीजा को ऐक्सटैंड करवा दिया. अब कुछ दिनों के लिए वह इंडिया जा रही थी. मगर इतना कुछ हासिल करने के बावजूद सिया के चेहरे पर गमों के बादल मंडरा रहे थे. आंसुओं के बोझ से पलकें सूज गई थीं. यह भी इत्तफाक ही था कि ठीक 2 साल पहले ही दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर अपनों से दूर होने का शोकाकुल मन इमिग्रेशन के लिए सिया के बढ़ते कदमों को बारबार पीछे खींच रहा था और आज वही मन उस से कितनी निर्दयता से आंखमिचौली करते हुए उसे आगे ही नहीं बढ़ने दे रहा था.
बोस्टन की गलियों में सैम की बांहों में बंधी वह अनमनी सी दिन भर घूमती रही. उस के मन में उमड़ रहे विरहवियोग के समंदर को शांत करता सैम हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ले कर स्टैनफोर्ड के चप्पेचप्पे में उसे घुमाता रहा. सिया के दुबलेपतले नाजुक शरीर को अपनी बांहों में भरते हुए सैम भर्राए कंठ से बोला, ‘‘मुझे ऐसे छोड़ कर मत जाओ सिया, मैं तुम्हारे बिना किसी आईने की तरह टूट कर बिखर जाऊंगा... जिसे तुम जानती तक नहीं उसी की होने के लिए लौट रही हो और जिस ने तुम्हें प्राणों से बढ़ कर चाहा उसे छोड़ रही हो.’’
सैम का इतना कहना था कि सिया किसी लता की तरह उस से लिपट गई. दोनों की आंखों से सावनभादो बरस रहे थे. सैम ने बांहों में भरी सिया को ला कर कार की पिछली सीट पर बैठा दिया. उसे आलिंगन में कसते हुए उस के अश्रुपूरित चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. सिया भी प्यार की इस बरसात में बिना किसी प्रतिवाद के भीगती रही. कभी न खत्म होने वाली जुदाई की घडि़यों से घबरा कर दोनों ने प्यार की मर्यादा की सरहद को पार कर लिया. दोनों को कहीं कोई पछतावा नहीं था. दोनों पूर्णता के एहसास में डूबउतरा रहे थे.
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