एक सर्वे के मुताबिक, एशियाई पर्यटक सब से ज्यादा अपने स्मार्ट फोन से चिपके रहते हैं. आप चाहे अपना टूथब्रश व पेस्ट भूल जाएं, पर मोबाइल नहीं भूल सकते. पर्यटकों के मुताबिक स्मार्ट फोन ब्रश, पेस्ट, ड्राइविंग लाइसैंस जैसी जरूरतों से कहीं आगे है.
ऐक्सपीडिया और ऐजेंसिया 2 ऐसी ऐजेंसी हैं, जो यह देखती हैं कि मोबाइल का सफर में कितना इस्तेमाल होता है. इन ऐजेंसियों ने खोज निकाला है कि एशियाई लोगों के लिए मोबाइल फोन अब सब से बड़ी जरूरत है.
एक बार एक लिफ्ट में एक आदमी ने एक महिला, जिस का रंग उड़ा हुआ था और सांसें उखड़ रही थीं, से पूछा, ‘‘आप को दमा की तकलीफ तो नहीं है? या आप का लिफ्ट में दम तो नहीं घुट रहा?’’
औरत ने जवाब दिया, ‘‘मेरा दम घुट रहा है, क्योंकि मेरे मोबाइल पर नैटवर्क का सिगनल नहीं आ रहा.’’
श्मशान भी अछूता नहीं
अब कोई सरकारी फरमान तो नहीं निकाल सकते कि आप अपना मोबाइल कक्षाओं, श्मशानघाट व मीटिंग आदि में न इस्तेमाल करें, क्योंकि लोगों को खुद इतनी जिम्मेदारी दिखानी चाहिए कि कहां मोबाइल पर बात करनी है कहां नहीं. अब ऐसे तो नहीं हो सकता कि मलिंगा रनअप करते विराट कोहली की तरफ तूफानी बौल फैंकने लगे तो कोहली उसे हाथ दिखा कर रोक दे और यह कहे कि 1 मिनट भाईसाहब, मुझे एक ऐड कंपनी से काल आया है. 2 मिनट बात कर लूं फिर आप की बाल खेलूंगा.
सब से बड़ी हैरानी और गुस्सा तब आता है जब श्मशान घाट पर 1 मिनट आंसू बहाते लोग नजर आते हैं और दूसरे पल ही एक साधारण मसले पर बात करने के लिए फोन पर बात करने लगते हैं. कई बार तो ऊंची आवाज में पूरे दृश्य का भी वर्र्णन हो जाता है, ‘‘हां जी, मैं यहां संस्कार पर आया हूं. बस अभी फारिग हो कर तुम्हारे पास आता हूं. फिर शाम की पार्टी का प्लान कर लेते हैं.’’
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