‘‘गुडि़या, अब तुम बड़ी हो गई हो. अब तुम्हारी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी मेरी है. तुम मेरी प्यारी बहन हो. तुम्हें कोई तकलीफ होगी तो मुझे दर्द होगा,’’ सुशांत ने अपनी बहन नेहा को समझाते हुए कहा.
‘‘भाई मैं अब बड़ी हो गई हूं. अपना खयाल रख सकती हूं. आप परेशान न हों, आप भी तो मेरे से केवल 2 साल ही बडे़ हैं,’’ नेहा ने अपना तर्क दिया.
‘‘बहन, मैं जानता हूं कि तुम बड़ी हो चुकी हो. अपना खयाल रख सकती हो. फिर भी मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा का वचन देता हूं. 2 साल ही सही पर हूं तो तुम से बड़ा न,’’ सुशांत ने बात को समझाने का प्रयास किया.
‘‘हां, मान गई भाई, तुम जीते और मैं हारी. अब चौकलेट मुझे दो और मुझे इस का स्वाद लेने दो,’’ भाई के तर्क के आगे हार मानते हुए नेहा ने कहा.
इस तरह की जिम्मेदारी भरी नोकझोंक हर घर में भाईबहन के बीच होती ही रहती है. यह नोकझोंक आज की नहीं है. हर पीढ़ी के बीच होती रही है. नई पीढ़ी की बहन को लगता है कि वह बहुत बड़ी, समझदार और जिम्मेदार हो गई है और उसे भाई की मदद की जरूरत नहीं रह गई है. इस के विपरीत भाई को यह लगता है कि उस की बहन अभी मासूम, छोटी सी गुडि़या है, जिसे समाज में अच्छेबुरे का पता नहीं है. ऐसे में वह परेशान हो सकती है.
कई बार बड़ी होती बहन को लगता है कि सुरक्षा के नाम पर भाई या परिवार के दूसरे लोग उस की आजादी में बाधक हैं. असल में यही वह सोच है जो बहन को समझनी चाहिए. भाई या परिवार का कोई सदस्य उस की आजादी में बाधक नहीं होता. वह यह जरूर चाहता है कि लड़की के दामन पर कोई दाग न लगे, जो जीवन भर उसे परेशान करता रहे.
भावनात्मक सुरक्षा भी जरूरी
जब हम बहन की सुरक्षा की बात करते हैं तो केवल शारीरिक सुरक्षा ही मुद्दा नहीं होता बल्कि बहन की शारीरिक सुरक्षा के साथ ही साथ उस की भावनात्मक सुरक्षा भी जरूरी होती है. बड़ी होती बहन के दोस्तों में केवल लड़कियां ही नहीं होतीं लड़के भी होते हैं. इन दोस्तों में कई मासूमियत का लाभ उठाने के प्रयास में रहते हैं. बहन को लगता है कि सुरक्षा के नाम पर उस की आजादी को रोका जा रहा है. ऐसे में कई बार वह ऐसी बातों को छिपा जाती है, जो उस की सुरक्षा के लिए जरूरी होती हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि बहन के साथ भाई भावनात्मक रूप से जुड़ा रहे. भाई और बहन के बीच उम्र का अंतर काफी कम होता है. इसलिए बहन और भाई की सोच एकजैसी होती है. कई बार बहन अपने मातापिता को कई बातें नहीं बताती पर अपने भाई को बता देती है.
मनोविज्ञानी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘यहां पर भाई की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. वह बहन के साथ इमोशनली ऐसे व्यवहार रखे जिस से बहन हर बात उस को बताती रहे. ज्यादातर परेशानियां वहीं से शुरू होती हैं जब बच्चे अपनी बातें छिपाना शुरू करते हैं. यह केवल बहनें ही नहीं भाई भी करते हैं. जब भाई अपनी बातें बहन को बताएगा तो बहन भी उसे अपनी बातें बताने में संकोच नहीं करेगी. जरूरत इस बात की है कि बहन और भाई के बीच रिश्ता दोस्ताना भी बना रहे. अगर भाई पेरैंट्स की तरह बहन से व्यवहार करेगा तो वह बात को छिपा सकती है. दोस्त की तरह भाई संबंध रखेगा तो परेशानी नहीं आएगी. भाई को शारीरिक सुरक्षा के साथ बहन को भावनात्मक सुरक्षा भी देनी चाहिए.’’
सोच बदलने की जरूरत
लड़की और लड़के के बीच समाज एक तरह का फर्क करता है, जिस की वजह से कुछ बातें भाई के लिए उतनी बुरी नहीं समझी जातीं जितनी बहन के लिए समझी जाती हैं. इस बात को समझने के लिए देखें तो भाई की गर्लफ्रैंड को ले कर उतना हंगामा नहीं होता जितना बहन के बौयफ्रैंड को ले कर होता है.
आज जब महिला अधिकारों की बात हो रही है तो बहन भी अपने लिए भाई जैसे अधिकार चाहती है. समाज भाई की गलतियों को उस तरह से नहीं लेता जिस तरह से बहन की गलतियों को लेता है. यह समाज की एक तरह की पुरुषवादी मानसिकता है. यही वजह है कि केवल भाई ही नहीं पेरैंट्स भी बेटी को ले कर बेटे से अधिक सचेत रहते हैं. इस बात से ही लड़कियों का मतभेद होता है. वे इस सोच में भाईबहन के सामाजिक अधिकार के अंतर को ले कर विद्रोही हो जाती हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता विनीता ग्रेवाल कहती हैं, ‘‘लड़कियों के भोलेपन का लाभ उठाने वाला पुरुषवर्ग ही होता है. इस में कई बार करीबी रिश्तेदार तक शामिल होते हैं. जरूरत इस बात की है कि लड़कियों को भी यह समझाया जाए कि वे सही और गलत के फर्क को समझ सकें. हमारे समाज में सैक्स की चर्चा पूरी तरह से बेमानी मानी जाती है ़ऐसे में सैक्स को ले कर लड़कियां जागरूक नहीं होतीं, यह बात उन के लिए मुसीबत का सबब बनती है. सैक्स संबंधों को ले कर ज्यादातर लड़कियां इमोशनली ठगी जाती हैं, जिस का प्रभाव केवल उन के जीवन पर ही नहीं पड़ता बल्कि परिवार पर भी पड़ता है. समाज सीधे सवाल करता है कि लड़की की सुरक्षा का परिवार वालों ने खयाल नहीं रखा. इस वजह से पेरैंट्स और भाई कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं. अपनी आजादी के साथ लड़कियों को इस तर्क को सामने रख कर सोचना चाहिए, जिस से विद्रोह जैसे हालात से बचा जा सकता है.’’
खुद बनें मजबूत
समय बदल रहा है. आज लड़की को लड़के जैसे अधिकार हासिल हैं. वह भी पढ़ाई, कोचिंग, शौपिंग के लिए खुद ही जाना चाहती है. कई घरों में लड़कियों के भाई नहीं हैं, केवल पेरैंट्स ही हैं. ऐसे में हर जगह बहन की सुरक्षा में भाई नहीं मौजूद रह सकता. तब लड़कियों को खुद ही मजबूत बनना पडे़गा. केवल मानसिक रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से भी उसे मजबूत रहना है. यही नहीं कानून ने जो अधिकार उसे दिए हैं वे भी उसे पता होने चाहिए, जिस से पुलिस और प्रशासन से अपने लिए मदद हासिल कर सके. आज सैल्फ डिफैंस के तमाम कार्यक्रम चल रहे हैं, जिन से लड़कियां अपना बचाव कर सकें. ऐसे में जरूरी है कि लड़कियां शारीरिक मेहनत करें और खुद को मजबूत बनाएं. इस के बाद वे जरूरत पड़ने पर अपना बचाव करने में सक्षम हो सकेंगी, जिस पेरैंट्स और भाई को इस बात का यकीन होता है कि लड़की अपनी सुरक्षा खुद कर सकती है तो वह चिंतामुक्त होता है.
रैड बिग्रेड संस्था लड़कियों को आत्मरक्षा के तमाम गुण सिखाती है. संस्था की संचालक ऊषा विश्वकर्मा कहती हैं, ‘‘केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि लड़कियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. इस से कमजोर बौडी वाली लड़कियां भी मजबूत से मजबूत विरोधी को मात दे कर अपना बचाव कर सकती हैं. स्कूल, पेरैंट्स, सरकार और समाज को सहयोग कर के सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग को बढ़ावा देना चाहिए, जिस से लड़की मजबूत ही नहीं होगी, उस के अंदर का डर भी खत्म हो जाएगा.’’
ऊषा को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग देने के लिए कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. वे अपने स्तर से कई तरह की वर्कशौप कर के सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग दे रही हैं.
बढ़ाएं आपसी समझदारी
बहन की सुरक्षा भाई की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में जरूरी है कि भाईबहन के बीच आपसी समझदारी बढे़. जब दोनों के बीच आपसी समझदारी होगी तो उसे किसी भी तरह की परेशानी का अनुभव नहीं होगा. वह यह नहीं सोचेगी कि सुरक्षा के नाम पर उस की आजादी को प्रभावित किया जा रहा है. जब उस को समझाया जाएगा कि यह सुरक्षा क्यों जरूरी है, तो वह किसी बात को छिपाएगी नहीं. जब भाईबहन एकदूसरे से कुछ छिपाएंगे नहीं तो आपस में समझदारी बढ़ेगी, जिस से खुद ही सुरक्षा का एहसास होगा. सुरक्षा का यह एहसास खुद में आत्मविश्वास पैदा करेगा. आज के दौर में समाज और हालात बहुत बदल चुके हैं. ऐसे में बच्चों के बीच आपसी समझदारी जरूरी है.
अंश वैलफेयर की अध्यक्षा श्रद्धा सक्सेना कहती हैं, ‘‘बदलते दौर में भाई और बहन दोनों को समान अवसर मिले हैं. ऐेसे में जरूरी है कि वे आपसी समझदारी दिखाएं. केवल बहन पर ही नहीं अगर भाई पर भी कोई उंगली उठती है तो बहन को भी उतनी ही तकलीफ होती है. टीनएज में होने वाले क्रश का प्रभाव केवल बहन पर ही नहीं पड़ता भाई का जीवन और कैरियर भी उस से प्रभावित होता है. ऐसे में जब भाईबहन समझदारी भरा व्यवहार करते हैं आपस में बातें शेयर करते हैं तो मुसीबतों से बचे रहते हैं, कई घरपरिवार में बहन बड़ी होती है, ऐसे में वह भाई को पूरी सुरक्षा देती है. भाई केवल बहन को ही नहीं बहन भी भाई को खुश और सुरक्षित देखना चाहती है.’’