सरकारकी धौंस दुनिया भर में नागरिकों को परेशान करती है पर जो मनमानी नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी कर के दिखाई है इस से बूढे़, बिजनैसमैन, औरतें तो परेशान हैं हीं, लाखों युवा भी परेशान व हताश हैं जो अपने घरों में रह रहे हैं या घरों से सैकड़ों मील दूर पढ़ने या काम करने के लिए आए हुए हैं और अब तक या तो छोटी कमाई पर जीते थे या घर से पैसा मंगाते थे और जिन के पास अपने रहने के ठीहे में 4 दिन का खाना भी नहीं होता.
ये युवा आजकल 8 नवंबर के बाद से मारेमारे फिर रहे हैं. इन के पुराने नोट कुछ मिनटों में सरकारी डकैती के शिकार हो गए. इन्होंने कितने ही संभाल कर रखे हों, वे मिनटों में बेकार हो गए, बरबाद हो गए. बहुत से इन दिनों परीक्षाओं की तैयारियों में लगे हैं पर उन्हें किताबों को छोड़ कर बैंकबैंक एटीएमएटीएम भटकना पड़ रहा है.
आम घरों में 10-12 दिन का खाना होता है, तेलसाबुन होता है, बिजली का बिल देने में समय होता है. कुछ दिन लायक गैस होती है. पर इन युवाओं के पास आज कल या परसों तक का ही इंतजाम रहा है, क्योंकि ये जरूरत के हिसाब से रोज खरीदते हैं. 1000 व 500 के नोटों को छीन लेने के बाद मोदी सरकार ने हजारोंलाखों युवाओं को कंगाल बना दिया जिन्हें खाने तक के लिए जहां रह रहे हैं वहां के दोस्तों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
कहने को यह नोटबंदी कालेधन को खत्म करने के लिए की गई थी पर यह ऐसा ही है जैसे शहर में चोरियां हो रही हों तो शहर को ही उजाड़ दो. न कोई रहेगा, न चोरी होगी. सरकार इतनी छोटी सोच की व इतनी दंभी और बेरहम हो सकती है, यह उम्मीद न थी. जिस सरकार को अच्छे दिनों के लिए लाया गया था, उस ने युवाओं को 50 दिन की सजा दी है, 150 दिन की या 500 दिन की कहा नहीं जा सकता.