‘‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’’ व ‘‘पीके’’ सहित कई सफल फिल्में निर्देशित कर चुके फिल्मकार राजकुमार हिरानी पहली बार अपने दोस्त व अभिनेता संजय दत्त के जीवन पर बायोपिक फिल्म ‘‘संजू’’ लेकर आए हैं. पूरी फिल्म देखकर एक बात उभरकर सामने आती है कि फिल्मकार का मकसद कई बुराईयों के बावजूद संजय दत्त को एक साफ सुथरी इमेज वाला कलाकार बताना ही रहा है और इसके लिए फिल्म में संजय दत्त की इमेज को बिगाड़ने या उन्हें टाडा के तहत गिरफ्तार किए जाने पर भी संजय दत्त की ईमेज खराब करने के लिए अखबार, न्यूज चैनलों व पत्रकारिता को ही कटघरों में खड़ा किया गया है. इसी के चलते फिल्मकार ने फिल्म में संजय दत्त की वैयक्तिक जीवन को पेश करने से खुद को दूर ही रखा.
फिल्म शुरू होती है संजय दत्त को पांच वर्ष की सजा सुनाए जाने की खबर से. इस खबर को संजय दत्त व मान्यता दत्त अपने छोटे बच्चों के साथ टीवी पर देखते हैं. संजय नहीं चाहते कि लोग उनके बच्चों को टेररिस्ट के बच्चे कहकर बुलाए, इसलिए आत्महत्या करना चाहते हैं, पर मान्यता दत्त यह कह कर रोक लेती हैं कि इससे उन्हे छुटकारा मिल जाएगा, पर बच्चों को नहीं.
उसके बाद मान्यता के कहने पर सजय दत्त एक मशहूर विदेशी लेखक विनी(अनुष्का शर्मा) को अपने जीवन की दास्तान सुनाते हैं. संजय दत्त चाहते हैं कि विनी उनकी आत्मकथा रूपी किताब लिखें. पर विनी एक टेररिस्ट की जिंदगी पर किताब नही लिखना चाहती. संजू उन्हें समझाता है कि अखबारों में जो छपा वह सच नहीं है. खैर, संजू की कहानी सुनने के लिए दूसरे दिन शाम को विनी मिलने आने वाली होती है, पर सुबह समुद्र के किनारे बीच पर टहलते हुए जुबिन मिस्त्री (जिम सरभ), विनी से मिलकर कहता है कि वह संजू पर किताब न लिखे, क्योंकि वह टेररिस्ट है. पर नाटकीय घटनाक्रम के बाद विनी, संजू से उसकी कहानी सुनने बैठ जाती है.
फिर कहानी शुरू होती है सुनील दत्त(परेश रावल) और नरगिस दत्त(मनीषा कोईराला) के बेटे संजय दत्त उर्फ संजू बाबा(रणबीर कपूर) की पहली फिल्म ‘‘रौकी’’ की शूटिंग से, जिसे स्वयं सुनील दत्त बना रहे होते हैं. किस तरह संजू का दोस्त बना ड्रग्स पैडलर जुबिन मिस्त्री, संजू को सिगरेट व ड्रग्स की लत डालता है. पहली फिल्म में किस तरह से संजू ने अभिनय किया. संजू का अपने माता पिता से औरतबाजी, शराब, ड्रग्स सहित सभी बुरी आदतों को छिपाना, नरगिस दत्त का बीमार होना, अमरीका के अस्पताल में नरगिस दत्त जब कोमा में चली जाती हैं तब नरगिस दत्त और सुनील दत्त के प्रशंसक कमलेश उर्फ कमली (विक्की कौशल) से संजू की मुलाकात, फिल्म रौकी’ के प्रदर्शन से तीन दिन पहले नरगिस दत्त की मौत हो जाना, रौकी के बाद बुरी लतों के चलते संजू को फिल्में न मिलना, कमलेश की सलाह पर सुनील दत्त का संजू को अमरीका के रिहैब सेंटर ले जाना, संजू का रिहैब सेंटर से भागना, सड़क पर भीख मांगकर बस का किराया इकट्ठा कर कमलेश के घर पहुंचना, फिर दुबारा रिहैब सेंटर जाना. बुरी लत छूटने के बाद फिल्में मिलना शुरू होना. जुबिन का सच भी सामने आता है.
तभी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़ने की घटना के बाद संजू को अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिलना, उनसे बचने के लिए संजू का अपने घर में ‘एके 56’ राइफल रखना व पकड़े जाना. अखबार में संजय दत्त के घर के बाहर आरडीएक्स से भरा ट्रक का पकड़े जाने की खबर का छपना और कमलेश का संजय से दूर हो जाना, सुनील दत्त की मौत सहित कई कहानियां संजू सुनाते हैं.
इस बीच संजू को बाइज्जत बरी कराने के लिए सुनील दत्त की अपनी जद्दोजहद की कहानी भी सामने आती है. पांच साल तक जेल की सजा काटकर जब संजू बाहर निकलते हैं तो कमलेश उनसे मिलता है. संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त(दिया मिर्जा) हमेशा उनके साथ चट्टान बनकर खड़ी नजर आती हैं.
यूं तो फिल्म की शुरूआत के दस मिनट काफी शुष्क व धीमी गति के हैं, पर फिर फिल्म गति पकड़ती है. फिल्म के पटकथा लेखक- अभिजात जोशी और राज कुमार हिरानी ने संजय दत्त के जीवन की सर्वविदित कहानी को भी इतने रोचक तरीके से सेल्यूलाइड के परदे पर पेश किया है कि दर्शक टकटकी बांधे फिल्म देखता रहता है.
फिल्म में तमाम भावनात्मक दृश्यों के दौरान दर्शकों की आंखे भी नम होती है. राज कुमार हिरानी का निर्देशन भी कमाल का है. मगर फिल्म में कई जगह एडिटिंग कर दृश्यों को छोटा करने की जरुरत महसूस होती है. कई जगह फिल्म ढीली भी होती है. पूरी फिल्म देखने के बाद एक ही बात उभरकर आती है कि यह फिल्म संजय दत्त का महिमा मंडन करने के लिए बनाई गई है और जिस तरह से फिल्म में अखबार, न्यूज चैनल व पत्रकारिता को कोसा गया है, उससे फिल्म खराब ही हुई है और यह लेखक व निर्देशक के तौर पर राज कुमार हिरानी की सबसे बड़ी कमजोरी है. राज कुमार हिरानी पूरी फिल्म में संजय दत्त को मीडिया द्वारा शोषित कलाकार ही चित्रित किया गया है. फिल्म का क्लायमेक्स अटपटा सा है.
फिल्म में एक जगह संजय दत्त कबूल करते हैं कि उनके 308 औरतों से संबंध रहे हैं. पर संजय दत्त के कई हीरोईनो संग इश्क की कहानियों, मान्यता दत्त से शादी की कहानी, पहली पत्नी रिचा शर्मा और बेटी त्रिशाला, कलाकारों के बीच दोस्ती, मित्रता, नफरत के रिश्ते आदि को लेकर एक शब्द नहीं कहा गया. ऐसे में फिल्म ‘संजू’ संजय दत्त की बायोपिक फिल्म कैसे हो गई?
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो यह फिल्म रणबीर कपूर, परेश रावल व विक्की कौशल की है. रणबीर कपूर खुद को पूर्णरूपेण संजय दत्त के किरदार में ढालने में सफल रहे हैं. रणबीर कपूर ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर अभिनय क्षमता कूट कूट कर भरी हुई है. मगर उन्हें अच्छे निर्देशक, अच्छी पटकथा व किरदार न मिले, तो वह क्या करें. परेश रावल के साथ रणबीर कपूर के सभी दृश्य जीवंत बनकर उभरे हैं.
संजय दत्त की बौडीलैंगवेज के साथ ही संजय दत्त के माइंडसेट/दिमागी सोच को समझने में भी रणबीर कपूर पूरी तरह से सफल रहे हैं. सुनील दत्त के किरदार में परेश रावल से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता था. नरगिस दत्त के किरदार में मनीषा कोईराला का भी अभिनय ठीक ठाक है. कमलेश उर्फ कमली के किरदार में विक्की कौशल ने एक बार फिर अपने अभिनय का जादू दिखा दिया है. वहीं संजय दत्त की प्रेमिका रूबी के छोटे से किरदार में सोनम कपूर अपनी छाप छोड़ जाती हैं.
अनुष्का शर्मा के हिस्से कुछ खास करने को है नहीं. जिम सरभ ने नकारात्मक जुबिन मिस्त्री के किरदार में जबरदस्त अभिनय किया है. दर्शकों को रणबीर कपूर के बेहतरीन अभिनय का रसास्वादन करने के लिए फिल्म ‘संजू’ देखना चाहिए. यदि फिल्मकार की ईमानदार कोशिश की चाह रखकर सिनेमाघर जाएंगे, तो सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी.
दो घंटे 21 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘संजू’’ का निर्माण विधु विनोद चोपड़ा व राज कुमार हिरानी ने किया है. फिल्म के निर्देशक राज कुमार हिरानी, पटकथा लेखक अभिजात जोशी व राज कुमार हिरानी, कैमरामैन रवि वर्मन, एडीटर राज कुमार हिरानी तथा कलाकार हैं- रणबीर कपूर, दिया मिर्जा, परेश रावल, मनीषा कोईराला, अनुष्का शर्मा, विक्की कौशल, जिम सरभ, सोनम कपूर, बोमन ईरानी, महेश मांजरेकर, संजय दत्त, अदिति गौतम, अरशद वारसी व अन्य.