अगर डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन साथ बैठ कर एक मेज पर खाना खा सकते हैं, समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं, साथ लगभग हाथ में हाथ डाले घूम सकते हैं और फिर ट्रंप किम को अपनी गाड़ी का मुआयना तक करा सकते हैं तो किसी भी सासबहू, जेठानीदेवरानी, पड़ोसीपड़ोसी में दोस्ती हो सकती है.

कोरिया का इतिहास खून से भरा है. कोरिया के शासक ने 1950 में दक्षिणी इलाके पर कम्यूनिस्ट शासन थोपने के लिए उस पर युद्ध छेड़ा था, तो अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता ले कर उसे बचाने के लिए अपनी सेनाएं भेजी थीं. अमेरिका के अपने 35 हजार सैनिक मारे गए थे और दोनों कोरियाओं के 10 लाख से अधिक लोग मारे गए या घायल हुए और लाखों परिवार देश के विभाजन के कारण रिश्तेदारों से अलग हो गए.

1953 के बाद से दोनों कोरियाओं में तनातनी बनी रही. दक्षिणी कोरिया ने 30-40 सालों में बेहद आर्थिक उन्नति की तो उत्तरी कोरिया ने विशाल सेना खड़ी की और परमाणु बम बनाने शुरू कर दिए. किम उल सुंग और उन के बेटे के बाद वर्तमान चेयरमैन किम जोंग उन ने विवाद को विरासत में पाया और गंभीरता से बमों के बदले अपना रोब गांठना चाहा.

पर न जाने क्यों और कैसे इस साल के शुरू में मौसम बदलने लगा. दक्षिणी कोरिया में हुए खेलों में उत्तरी कोरिया ने पहली बार अपनी टीम भेजी. फिर किम जोंग उन ने दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति से मिलने की अनुमति दी और इस मुलाकात से पहले वे खास ट्रेन में बैठ कर चीन में जिनपिंग से भी मिल आए.

चाहे दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाकात सीमा के पास ही हुई फिर भी किम की बौडी लैंग्वेज और छोटेछोटे हावभावों ने साफ कर दिया कि कहीं हृदय परिवर्तन हो चुका है. 12 जून को जब सिंगापुर में डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की मुलाकात हुई तो दुनिया ने चैन की सांस ली कि अब एक खपती पागल से शासक के क्रूर फैसले को शायद नहीं झेलना पड़ेगा. चाहे इस मुलाकात में सिर्फ औपचारिक हस्ताक्षर हुए हों, यह साफ है कि फिलहाल दोनों में मतभेद कम हो रहे हैं और अगर इन दोनों में फैसला हो सकता है तो दुनिया की किसी भी सासबहू और जेठानीदेवरानी को समझौता करने से कोई नहीं रोक सकता.

लड़ाई में कुछ नहीं रखा कहना भी सही नहीं है, क्योंकि यदि उत्तरी कोरिया ने परमाणु बम न बनाए होते तो ट्रंप उसे कभी कोई भाव न देते. अब छोटे से टुच्चे से गरीब उत्तरी कोरिया के किम ट्रंप के साथ बराबरी का व्यवहार इसीलिए कर पाए कि वे लड़ने में सक्षम हैं. इसी तरह यह एक फलसफा है कि यदि सम्मान पाना है तो खुद को सक्षम बनाओ. अपने बलबूते पर. उत्तरी कोरिया ने न रूस से भीख मांगी है न चीन से जबकि दोनों कम्यूनिस्ट हैं. अपने बल पर बराबरी का स्तर पाया है. उस की गरीब जनता ने पेट काट कर शासकों की सनक को पूरा करा है.

अगर जेठानी से समझौता करना है तो झुक कर नहीं उस के बराबर बन कर करिए मैडम.

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