‘‘कितनी खुश होती हैं वे पत्नियां जिन के पति रोज सुबह उन्हें चाय का कप थमा कर जगाते हैं... चाय का कप तो दूर की बात है कभी 1 गिलास पानी तक नहीं मिला इन के हाथों से,’’ पत्नी शालू को हमेशा पति विवेक से शिकायत रहती. पत्नी की रोजरोज की शिकायत दूर करने के लिए एक दिन सुबह जल्द उठ कर विवेक ने 2 कप चाय बनाई और फिर जबान में मिठास घोलते हुए बोला, ‘‘गुडमौर्निंग डार्लिंग... गरमगरम चाय हाजिर है.’’
यह सुन शालू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. मुसकराते हुए पति के हाथ से चाय का कप ले लिया. मगर एक घूंट पीते ही बुरा सा मुंह बना कर बोली, यह क्या बकवास चाय बनाई है? न चायपत्ती का कोई हिसाब न चीनी का... दूध तो जैसे डाला ही नहीं... सुबहसुबह मूड खराब कर दिया.
विवेक को भी गुस्सा आ गया. बोला, इधर गिरो तो कुआं उधर गिरो तो खाई... कुछ करो तो बुरा, न करो तो निकम्मा... मुझे तो बस बुराई ही मिलनी है...
रमेश औफिस से आ कर मूड फ्रैश करने के लिए अपना सोशल अकाउंट और मेल चैक करने लगा. तभी सीमा ने पूछा, ‘‘खाने में क्या बनाऊं?’’
कुछ भी बना लो, जो तुम्हें पसंद हो, रमेश ने फेसबुक पर दिनभर की पोस्ट पढ़ते हुए जवाब दिया.
‘‘क्यों, खाना क्या सिर्फ मैं खाती हूं? तुम्हारी कोई पसंद नहीं? पूछो तो नौटंकी और न पूछो तो ताने कि हमारी पसंद तो कोई पूछता ही नहीं,’’ सीमा ने भन्नाते हुए कहा.
तब रमेश को एहसास हुआ कि जानेअनजाने उस ने गृहविवाद की शुरूआत कर दी है. वह बहस को और आगे बढ़ा कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहता था, इसलिए हथियार डालते हुए बोला, ‘‘अच्छा, तुम अपने औप्शन बताओ.’’
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