ऐन चुनावों से पहले या यों कहिए कि चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश में राज कर रही समाजवादी पार्टी के घर में आपसी झगड़ा बापबेटे और चाचाओं का मसला तय हो या नहीं, यह दूसरों को फायदा जरूर पहुंचा देगा. बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के लिए यह झगड़ा जून की बरसात की तरह ठंडक देने वाला है.
बापबेटे में कहासुनी कोई नई बात नहीं है और दुनियाभर में होती रहती है और अकसर बेटे बाप से नाराज हो कर चले जाते हैं. जहां एक परिवार का धंधा होता है, वहां भी बेटे अपना हिस्सा छोड़ कर अलग काम शुरू कर देते हैं. अखिलेश यादव ने यदि मुलायम सिंह यादव से अलग होने की जिद ठान ली है, तो कोई खास बात नहीं है. चुनावों से पहले ही यह होता है, क्योंकि तभी एकदूसरे के बारे में जौहर दिखाने का मौका मिलता है. कुश्ती हजार आदमियों के सामने दंगल में की जाती है, घर की चारदीवारी में नहीं.
इस का नुकसान मुलायम सिंह परिवार को होगा या नहीं, यह कोई बड़ी बात नहीं. राजनीति में जो भी आता है, वह हार के लिए तैयार हो कर आता है. हर चुनाव में 5-10 लोगों में से एक को सीट मिलती है और हार कर बाकी फिर अगले चुनाव में लग जाते हैं. यह दुकानदारी नहीं है कि बाजार में 10 दुकानें साथसाथ चलती रहें, कुछ अच्छी, कुछ खराब.
हारने को तो समाजवादी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों में ही हार गई थी, जब भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा की 80 में से 71 सीटें जीत ली थीं और समाजवादी पार्टी के लिए बस 5 सीटें छोड़ी थीं. इस घर के झगड़े के बाद अगर समाजवादी पार्टी की हालत कांग्रेस की जैसी हो जाए, तो भी नेताओं को फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जोड़तोड़ कर के वे राजनीति की कमाई पर जीते रहेंगे.
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