गंदगी हमारे देश में लोगों के जीवन का इतना बड़ा हिस्सा बनी हुई है कि यहां साफसफाई को जीवन में दखल मान लिया जाता है. दिल्ली की जामिया कालोनी के पास के एक रिहायशी कौंप्लैक्स की औरतों ने खुद पैसा जमा कर, खुद मजदूरों के साथ मिल कर एक गली की सफाई कराई, तो वहां खड़ी होने वाली गाडि़यों के मालिकों और वहां रोज कूड़ा फेंकने वालों ने साफसफाई करने पर न सिर्फ झगड़ा किया, 2 सौ लोगों को जमा कर साफ की गई जगह को गंदा कर डाला.

गरीबी और गंदगी आमतौर पर साथ चलती हैं. दुनिया के सभी गरीब देश या अमीर देशों के गरीब इलाके गंदे ही रहते हैं. सड़कोंगलियों पर कूड़ा, टूटे शीशे, मैले मकान, बिखरे डब्बे, गंदभरी नालियां, बदबूदार माहौल आंखों को ही नहीं सुहाता, बल्कि वह बीमारियां भी पैदा करता है और लोग आमतौर पर आधाअधूरा काम करते हैं.

अब गंदगी गरीबी को पैदा करती है या इस का उलटा होती है, इस चकरघिन्नी में न पड़ कर समझा जाना चाहिए कि गरीबी हटाना आसान नहीं है, पर गंदगी हटाना बेहद आसान है. हमारे हिंदू धर्म में गंदगी को ही जाति के भेदभाव का तरीका बताया गया है, पर आज जब नीची जातियां, जिन में गरीब पिछड़े, दलित, गरीब मुसलिम व ईसाई शामिल हैं, गंदगी के खिलाफ मुहिम अपनी ओर से शुरू करें. सरकार ने तो 2 साल पहले स्वच्छ भारत का नाटक कर के छोड़ दिया था और अब नोटबंदी कर के गरीबों पर और गरीबी थोप दी है, पर सरकार या ऊंची जातियां और धर्म की जाति व्यवस्था का इस्तेमाल गंदगी थोपने के लिए नहीं कर सकतीं. गंदगी हटा कर गरीबी में शान से जीने लायक बनाया जा सकता है.

गंदगी हटाने के लिए बहुतकुछ नहीं करना होता. यह ठीक है कि हमारे देश में गंदगी फेंकने की जगहें आसानी से नहीं मिलतीं. गलियों और महल्लों से कूड़ा हटा कर ले जाना आसान नहीं है. पहले घोड़ागाड़ी, बैलगाड़ी मिल जाते थे, जो सस्ते में कूड़े को हटा देते थे. अब ट्रक लगाने पड़ते हैं, पर उन का इंतजाम करना और उन्हें चलाना मुश्किल है. शहरी निकायों, पंचायतों के पास ये हों तो भी मुश्किल से मिलते हैं, क्योंकि या तो खराब रहते हैं या चलाने वाले निकम्मे बने रहते हैं.

यह एक तरह से साजिश का हिस्सा है. शहरों की बात हो या कसबोंगांवों की, अमीर लोगों की इच्छा रहती है कि साफसफाई और गंदगी एक लाइन की तरह इस्तेमाल हो–जाति दिखाने की. गंदगी का मतलब है नीची जाति. अफसोस यह है कि बराबरी की मांग करने वाली नीची जातियां महात्मा गांधी की शुरू की गई सफाई का मतलब नहीं समझीं. महात्मा गांधी सफाई से जाति की खाई को पाटना चाहते थे, पर गंदगी में रहने को आदी हो गए नीची जातियों के लोगों ने गंदगी को तमगा बना कर सीने से लगा लिया, इसीलिए दिल्ली की मुसलिम गरीब बस्ती में सफाई को जाति व्यवस्था पर हमला समझ लिया.

समाज का पिछड़ों का ही एक वर्ग नहीं चाहता कि उन से निचले सफाई को अपनाने की जुर्रत करें.  

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