प्रोफैसर अमर्त्य सेन ने एक बार कहा था, ‘‘भारत एकमात्र ऐसा देश है जो अशिक्षित व स्वास्थ्यहीन श्रमबल के आधार पर वैश्विक आर्थिक शक्ति होने की कोशिश कर रहा है. ऐसा किसी देश में कभी नहीं हुआ. यह असंभव है.’’ अमर्त्य सेन का यह तंज समझने की जरूरत है और सरकार को कोरी लफ्फाजी वाले वादों, दावों, 56 इंच का सीना, विश्वगुरु का सपना और पौराणिक काल की संस्कृति व धर्म के बखान व सब्जबाग दिखाने के बजाय शिक्षा व रोजगार की मूलभूत कमियों को दूर कर नए सार्थक, स्वस्थ रोजगार के अवसर मुहैया कराने पर जोर देने की जरूरत है. मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के नतीजे इस साल चौंका देने वाले थे. हर किसी को यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ था कि इस साल 10वीं में 65.54 और 12वीं में 68.07 फीसदी छात्र उत्तीर्ण हुए. केवल एक साल में कुल कामयाब छात्रों की संख्या 12 लाख 54 हजार 920 के लगभग है. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस दौर के युवा पढ़ाई पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. इन छात्रों को कम उम्र में समझ आ गया है कि अगर अच्छी नौकरी चाहिए तो लगन और मेहनत से पढ़ाई करनी जरूरी है.

हर साल की तरह इस साल भी मैरिट में आए छात्रछात्राओं के इंटरव्यू न्यूज चैनल्स व अखबारों ने दिखाए व छापे. शिवपुरी जैसे पिछड़े जिले से टौप पर रहे 12वीं के ललित पचौरी की इच्छा सिविल सेवा में जाने की है तो 10वीं की टौपर रही विदिशा की अनामिका साध सौफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहती है. मोटी तनख्वाह वाली प्राइवेट या रसूखदार सरकारी नौकरी मैरिट से चूक गए छात्रों का भी ख्वाब है. इस के लिए उन्हें समझ आ गया है कि आइंदा और ज्यादा मेहनत से पढ़ना है. अच्छे नतीजे देने में घटिया क्वालिटी की पढ़ाई के लिए बदनाम सरकारी स्कूलों के छात्र भी पीछे नहीं रहे. 300 के लगभग बनी विभिन्न संकायों की मैरिट में 43 छात्र सरकारी स्कूलों के थे. उन का परीक्षा परिणाम भी 50 फीसदी के लगभग रहा.

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