‘ये इश्क नहीं आसां...’ यह बात सब जानते हैं. मातापिता, नातेरिश्तेदार, समाज, जाति, धर्म इन सब की दीवार को तोड़ कर एक हो पाना आसान नहीं होता है. लेकिन इन तमाम हदों को पार कर जो एक हो जाते हैं वे अपनी मंजिल जीत लेते हैं. उन्हें लगता है उन्होंने वह सब पा लिया, जो चाहा था. लेकिन जैसेजैसे गृहस्थी की जिम्मेदारी उन के कंधों पर आने लगती है, उन्हें अपनी शादी एक बंधन जैसी लगने लगती है. उन्हें लगता है कि इस से तो शादी के पहले ही ठीक थे. बेकार में शादी के झंझट में फंस गए.
वह रुठनामनाना, एकदूसरे से प्यार जताना सब फालतू की बातें लगने लगती हैं. शादी के 2-3 साल बाद ही उन का शादीशुदा रिश्ता ठंडा पड़ने लगता है और फिर दोनों प्रेमीप्रेमिका न रह कर आम पतिपत्नी बन जाते हैं और छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं. वैसे झगड़ा भी प्यार का ही एक रूप होता है और थोड़ीबहुत नोकझोंक तो हर रिश्ते में होती है, पर बात जब हद से ज्यादा गुजरने लगती है, तो तलाक तक पहुंच जाती है और फिर सब कुछ खत्म हो जाता है.
प्रिया और समीर के साथ भी ऐसा ही हुआ. परिवार और समाज से दुश्मनी ले कर दोनों एक हुए. जिंदगी में नए रंग भी भरे, लेकिन धीरेधीरे उन के प्यार का रंग उतरने लगा. अपने रिश्ते से उन्हें ऊब होने लगी. प्यारव्यार, सब उन्हें बकवास लगने लगा. उन्हें लगने लगा कि प्यार तक तो ठीक था, पर शादी में बंध कर उन्होंने गलती कर दी.
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