भारत में सी-सेक्शन के मामलों में वृद्धि के साथ, अब इस्थोमोसील (Isthmocele) का होना दुर्लभ घटना नहीं है. इस्थोमोसील को सी सेक्शन स्कौर दोष के रूप में भी जाना जाता है, यह सीजेरियन सेक्शन गर्भाशय की दीवार में तरल पदार्थ से भरा पाउच होने जैसी असामान्यता के रूप में दिखाई देता है. मासिक धर्म के बाद रक्तस्राव, श्रोणि क्षेत्र में दर्द, माध्यमिक बांझपन एवं एक्टोपिक स्कार गर्भावस्था इस्थोमोसील के लक्षणों में शामिल हैं. इसके बारे में पर्याप्त जागरूकता की कमी के कारण इससे जुड़ी जटिलताओं में लगातार इजाफा हो रहा है.
सनराइज हौस्पिटल ने हाल ही में गर्भाशय इस्थोमोसील से पीड़ित 34 वर्षीय महिला का इलाज किया है. फरीदाबाद की रीना, जब सनराइज हौस्पिटल आई थी, उन्होने अनियमित मासिकधर्म चक्र, मासिकधर्म के बाद दर्द एवं रक्तस्राव, श्रोणि क्षेत्र में दर्द एवं संबन्धित शिकायतों के साथ सामान्य स्वस्थ जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रही थी. ढाई साल पहले उनकी सी सेक्शन डिलीवरी हुई थी और वह लगभग पिछले 2 साल सेइस हालत से पीड़ित थी.
उनकी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में सीजेरियन निशान के पास एक भरा हुआ तरल पाउच दिखाई दे रहा था. उसकी योनि में फायब्राइड भी था, वही उनका हीमोग्लोबिन स्तर भी 6 के निचले स्तर पर था. इससे पहले रीमा कई स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास जा चुकी थी, लेकिन उनमें से कोई भी उनकी समस्या की पहचान करने में सफल नहीं हो सका था.
सनराइज हौस्पिटल, नई दिल्ली में स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं लैप्रोस्कोपिस्ट्स डा0 निकिता त्रेहान और डा0 शुचिता सिंह ने गर्भाशय इस्थोमोसील के मामले में सफलतापूर्वक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी किया. लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के बाद रीना अब पूरी तरह से से ठीक हो गयी है, अब वह एक खुशहाल महिला है, जिन्हें इस संबंध में अब कोई समस्या नहीं है.
डा0 निकिता त्रेहान, जो एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, लैप्रोस्कोपिक सर्जन एवं सनराइज हौस्पिटल, नई दिल्ली की प्रबंध निदेशक है, के मुताबिक, “ वह प्रत्येक महीने इस्थोमोसील के लगभग 2-3 मामलों का इलाज कर रही है. एक सी-सेक्शन करवाने वाली महिलाओं की अपेक्षा, एक से अधिक सिजेरियन डिलिवरीवाली महिलाओं में इस्थोमोसील होने का जोखिम काफी ज्यादा होता हैं. “
डा. निकिता कहती हैं कि, “हमने पिछले एक साल में लगभग 30 से ज्यादा इस्थोमोसील के मामलों पर कार्य किया हैं. जिनमें ज्यादातर मामले उत्तर भारत से हैं, इस्थोमोसील के मामलों में 15-20% तक बढ़ोतरी की सूचना दर्ज की गयी है, लेकिन मामले इससे और अधिक भी हो सकते है, क्योंकि सभी मामले डाक्टरों के पास नहीं आ पाते, या फिर उनका इलाज नहीं हो पाता.
इस्थोमोसील के मामलों में सीजेरियन सेक्शन गर्भाशय की दीवार के साथ तरल पदार्थ से भरा पाउच जैसी असामान्यता विकसित हो जाती है. गर्भाशय इस्थोमोसेल, आमतौर पर इस्थोमोसील के नाम से जाना जाता है. इसे सीजेरियन स्कार दोष के रूप में भी जाना जा सकता है, क्योंकि समस्या एंडोसर्विकलकैनाल या गर्भाशय के निचले क्षेत्र में भी हो सकती है. गर्भाशय इस्थोमोसील की लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, निश्चित रूप से इसके इलाज का एक सफल तरीका है,इस उपचार से प्रजनन क्षमता में भी सुधार हो सकता है. इस्थोमोसील की मोटाई, इसके प्रति शल्य चिकित्सा के दृष्टिकोण पर निर्धारित करता है. डा0 शुचिता सिंह, स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं लैप्रोस्कोपिक सर्जन, सनराइज हौस्पिटल, नई दिल्ली के मुताबिक, “ ऐसे कुछ मामले होते हैं, जहां इस्थोमोसील का सही तरीके से निदान नहीं किया जाता है. और फिर लंबे समय तक इसके लक्षणों को अनदेखा करने पर, यह बांझपन और कई गंभीर जटिलताओं जैसे सीजेरियन स्कार गर्भावस्था जैसी बीमारियों में परिवर्तित हो सकता है.
डा0 निकिता त्रेहान ने आगे बताते हुये कहा कि, “जब लैप्रोस्कोपिक के माध्यम से उपचार किया जा सकता है, तो ओपेन सर्जरी की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. लैपरोस्कोपी आज सुरक्षित हाथों में है, इस तकनीक की मदद से कई अत्यधिक कठिन मामलों का भी सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जा सका है.“
सनराइज हौस्पिटल ने अपने सीएसआर गतिविधि के तहत, योग्य सर्जनों की कुशल टीम के माध्यम से स्त्री रोग संबंधी जटिल विकारों का इलाज करने के लिए 30 से ज्यादा लैप्रोस्कोपिक सर्जरीयां सफलतापूर्वक पूरा किया है. प्रत्येक सर्जरी की सामान्य तौर पर लागत डेढ़ से दो लाख रुपये के बीच होती है, वही मरीजों ने सर्जरी के लिए नाममात्र के लिए केवल 10-20 हजार रुपये का ही भुगतान किया है. ”
(स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं लैप्रोस्कोपिस्ट्स डा.0 निकिता त्रेहान और डा0 शुचिता सिंह, सनराइज हौस्पिटल, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित)