घरघर सामान पहुंचाने का पीढ़ियों का काम अब एक नया रूप ले रहा है. एक जमाने में जब औरतों के लिए घर से बाहर निकलने पर पाबंदियां थीं, दुकानदार खुद तरहतरह का सामान ले कर घर भर पहुंचते थे. अमेरिका में सेल्समैन खास बने संदूक में घर भर के लिए उपयोगी सामान 100 किलोग्राम तक पीठ पर लाद कर मीलों चल कर पहुंचाते थे. फिर दुकानें खुलने लगीं. मौल बने और अब मोबाइल और ई कौमर्स का जमाना आ गया है.
अब शौपिंग सामान देख कर नहीं ब्रैंड का नाम और दामों में छूट देख कर की जा रही है और उत्पादक और ग्राहक के बीच केवल बिचौलिया ई कौमर्स कंपनियां रह गई हैं, जो अपने सौफ्टवेयर के बल पर अरबोंखरबों कमा रही हैं. अब व्यापारियों की कडि़यां कम होने लगी हैं. थोक व्यापारी और खुदरा सामान बेचने वाले दुकानदारों का वजूद अब खतरे में है. खास सामान खास दुकानों में ही मिलेगा की जगह अब ई कौमर्स कंपनियां हर चीज बेचने लगी हैं, सूई से ले कर लहंगे तक और हथौड़े से ले अलमारियों तक. भारत सरकार देशी और विदेशी ई कौमर्स कंपनियों को ज्यादा प्रोत्साहन दे रही है, क्योंकि उसे लगता है इस से काले धन में कमी आएगी. पर असल में हो यह रहा है कि जो ब्लैक इकौनौमी के हिस्से थे वे ही समाप्त होने लगे हैं. नई सरकार इस तरह कैशलैस व्यापार पर तुली है कि वह नुक्कड़ के स्टोरों से ले कर थोक मंडियों तक को समाप्त करने में लगी है.
इस से हो सकता है कि बड़ी कंपनियों को लाभ मिले और उन के शेयरों के दाम आसमान को छूने लगें पर लाखों घरों का दिवाला निकल जाएगा. कल तक जो छोटामोटा व्यापार कर रहे थे वे बेकार हो जाएंगे और नई नौकरियां पीठ पर सामान लाद कर घरघर पहुंचाने वालों को ही मिलेंगी. अमेरिका में ब्रिक ऐंड मोर्टार स्टोर्स अब बंद होने लगे हैं, क्योंकि वे दामों में ई कौमर्स का मुकाबला नहीं कर पा रहे. लाखों छोटे मझोले व्यापारी तो समाप्त होंगे ही साथ ही औरतों के शौपिंग के बहाने मिलने वाले घूमने के अवसर भी समाप्त हो जाएंगे. भारत जैसे देश में यह बदलाव सरकार जनता पर जबरन नोटबंदी और जीएसटी के सहारे थोप रही है.
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