सैरोगेसी विशेषज्ञों और गे ऐक्टिविस्ट्स ने पिछले साल 24 अगस्त को यूनियन कैबिनेट के बनाए ड्राफ्ट सैरोगेसी बिल-2016 की आलोचना की है. बिल का उद्देश्य है कि सैरोगेसी व्यवसाय न बन जाए. यह बिल अविवाहित पुरुषों और स्त्रियों को सैरोगेट मां की मदद लेने से रोकने के लिए है, पर इस से बेऔलाद दंपतियों की मुश्किलें भी बढ़ने वाली हैं.

मुंबई के एक प्रसिद्ध डाक्टर जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, का कहना है, ‘‘इस से हजारों सैरोगेट मांओं की रोजीरोटी भी छिनेगी और अगर निकट संबंधी ही सैरोगेसी कर सकता है तो विवाहित दंपती के लिए भी इस में मुश्किलें बढ़ेंगी. इस से सिंगल और गे लोगों को बहुत मुश्किल होगी.’’

अभी तक सैरोगेसी में एक स्त्री एक दंपती के लिए या 1 सिंगल पुरुष अथवा स्त्री के लिए बच्चे को जन्म देती है और फिर उस व्यक्ति को बच्चा सौंप देती है. वह सैरोगेसी जिस में सैरोगेट मां और इंश्योरैंस कवरेज के लिए मैडिकल खर्च के अलावा कोई और धन या फीस नहीं ली जाती, उसे जनसेवी सैरोगेसी कहा जा सकता है. यदि सैरोगेट मां अपनी सेवाओं के लिए पैसे लेती है, तो उसे कमर्शियल सैरोगेसी कहा जाता है. नए ड्राफ्ट बिल के अनुसार तो अभिनेता तुषार कपूर अपने पिता बनने का सपना पूरा न कर पाते, शाहरुख खान भी जिन की तीसरी संतान सैरोगेसी से हुई है न कर पाते, क्योंकि केवल बेऔलाद दंपती ही ड्राफ्ट बिल के अनुसार इस के अधिकारी हैं.

क्या है नया कानून

समान अधिकार समाजसेवी अशोक कवि का कहना है, ‘‘हम अदालत में इस बिल को चैलेंज करेंगे. यह व्यक्ति की समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है. कानून को धोखा देने के लिए लोग रास्ता ढूंढ़ ही लेंगे. आप कैसे तय कर सकते हैं कि होमोसैक्सुअल पेरैंट्स के द्वारा पाला गया बच्चा समाज के लिए बुरा होगा? नैतिकता की बातें दूर रख कर हमारे देश को सैक्सुअलिटी की बातों का सामना करना आना चाहिए.’’

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